मंगलवार, 1 मार्च 2016

मलेरिया, डेंगू पर खर्च असहनीय

सवा सौ करोड़ की आबादी में हर साल लगभग 16 लाख लोग मलेरिया से पीडि़त होते हैं और डेंगू से ग्रस्त होने वालों की तादाद भी अच्छी खासी है. आजादी के समय 33 करोड़ आबादी में से 7.5 करोड़ यानि जनसंख्या का 20 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा मलेरिया से पीडि़त रहता था. राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम जारी करने के छह साल बाद मलेरिया 20 लाख लोगों तक सीमित हो गया. फिर ढिलाई का दौर चला और 1976 में मलेरिया से बीमार होने वालों की संख्या 65 लाख से ऊपर दर्ज की गई. हर साल हजार लोगों की मलेरिया से मौत हो जाती है. दूसरा स्याह पहलू यह है कि भारत में सिर्फ मलेरिया के उपचार पर 11640 करोड़ रूपए खर्च हो रहे हैं. डेंगू के बढ़ते मरीजों का खर्च 6000 करोड़ रूपए से अधिक हो गया है. 
मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर चलाया जाता है और मच्छरजनित रोगों पर काबू पाने की जगह उसकी बढ़ोतरी इस समूचे अभियान पर सवाल-दर-सवाल खड़ा करती है. डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, जीका जैसी बीमारियों ने विश्व भर के देशों के नागरिकों का सामाजिक-आॢथक भार बढ़ा दिया है, तो भारत की बहुसंख्यक गरीब जनता के लिए इन बीमारियों के उपचार का भार उठाना असहनीय हो गया है. सरकारी स्तर पर जिस तरह की लापरवाही बरती जाती है, वह किसी से छिपी नहीं है. मच्छरों से होने वाली बीमारियों के लिये उनके पैदा होने की जगह को निशाना बनाया जाना सर्वमान्य पद्धति है, लेकिन गलियों में धुंआ करना और जल जमाव वाले अनावश्यक स्थानों को हमेशा के लिए छोड़ देने की प्रवृत्ति बनी हुई है. स्वास्थ्य विभाग से राष्ट्रीय कार्यक्रमों का संचालन होता है लेकिन जितनी राशि मिलती है, उसका बहुत मामूली हिस्सा ही खर्च होता है. राशि के बड़े हिस्से की बंदरबाट हो जाती है. 
अमानक दवाओं की खरीदारी के प्रसंग आए दिन प्रकाश में आते ही रहते हैं. मलेरिया संवेदी क्षेत्रों में मच्छरदानी से लेकर अन्य बचाव की सामग्री कभी कभार ही पहुंच पाती है. कुल जमा मामला यह है कि इस कार्यक्रम की सारी प्रणाली का मूलाधार आवंटित राशि को हजम करना बनता जा रहा है. सरकारी कार्यक्रमों से परेशान लोग निजी चिकित्सालयों की ओर रूख करते हैं जहां भारी कीमत देकर उपचार कराने की विवशता होती है. देश की बहुसंख्यक आबादी जब गरीब हो, बेरोजगारी चरम पर हो और क्रय शक्ति न के बराबर हो तो निजी चिकित्सालयों के जरिये बीमारियों का सामना कैसे किया जा सकता है. स्थानीय प्रशासन स्वास्थ्य और सफाई को लेकर जितना निरंकुश और गैर-जिम्मेदार है, यह भी तथ्य छिपा हुआ नहीं है. सफाई, स्वच्छता का अभी तक सब्जबाग ही दिखाया जाता है और हमारे प्रदेश के शहर देश के सबसे गंदे, सबसे प्रदूषित स्थानों की सूची में अग्रणी रहते हैं. मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और आने वाली बीमारी जीका देश की जनता की आॢथकी को तोड़ दे, उससे पहले हर स्तर पर ठोस पहलकदमी की जरूरत है. किसी खुशफहमी से न तो इन रोगों पर काबू पाया जा सकता और न ही दवा व्यवसाय की सेहत से भारत का स्वास्थ्य सुधर सकता है.  

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