सौहाद्र्र और शान्ति पर एक बार फिर विघ्न डालने की कोशिश की गई. रायपुर के समीप गिरजाघर में प्रार्थना के दौरान हमला, तोडफ़ोड़ और लोगों को घायल करने वाले किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है. प्रार्थना, पूजा या आस्था की निजता का सम्मान किया जाना चाहिए. इस आपराधिक कृत्य को अंजाम देने वालों का खोखलापन इसी से उजागर होता है कि कथित रूप से धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया गया है. एेसे लोगों को न तो स्वधर्म की चिन्ता होती है न परधर्म की परवाह. ये सिर्फ अच्छी शिक्षाओं और संस्कारों के विरोधी ही हो सकते हैं. छग में अल्पसंख्यकों पर निशाना साधने वालों को उन लोगों का भी समर्थन हासिल है जो निरंतर द्वेष की राजनीति करते हैं. छत्तीसगढ़ अनोखा है और इसकी परम्पराएं निराली है.
आदिवासी बहुल प्रदेश शांति और सौहाद्र्र की मिसाल है. देश भर में जब विघ्न संतोषियों ने सांप्रदायिक उन्माद फैलाया था तब भी छग की जनता ने समझदारी दिखाई थी और अमन भाईचारे को बनाए रखा. देश भर के हर किस्म के लोग आए और सब अंतत: ‘छत्तीसगढिय़ा’ बनकर रह गए, जिसे ‘सबसे बढिय़ा’ कहा जाता है. हर धर्म, समुदाय के लोगों सहित ईसाई धर्मावलंबी भी आए और सुदूर वन प्रांतरों में शिक्षा का प्रसार और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया. इसी तरह अन्य संगठनों ने भी इन क्षेत्रों में समाज सेवा के लिए तत्परता दिखाई, लेकिन इसके केंद्र में धर्म और धर्म परिवर्तन को रखकर संघर्ष बढ़ाना निश्चित रूप से समाजद्रोही कार्य ही हो सकता है. चर्च पर हमले के आरोपियों को तत्परता से पकड़ा गया यह स्वागतेय है और एेसे तत्वों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. अनुभव बताते हैं कि राजनीतिक उद्देश्यों की पूॢत के लिए कानून के पालनकर्ताओं द्वारा ढिलाई बरतने की प्रवृत्ति बढ़ी है. बस्तर और जशपुर क्षेत्र में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों तथा समुदाय पर पिछलेएक दशक से हमले बढ़े हैं.
व्यवस्था संचालित करने वालों को इस बात को जेहन में रखना जरूरी है कि भारत के संविधान में ‘हम भारतवासी’ की प्रतिस्थापना के साथ विचार, आचार, व्यवहार की आजादी दी गई है. इसके साथ ही अल्पसंख्यक समुदायों को भी उनके अधिकार उसी तरह दिए गए हैं जैसे बहुसंख्यकों के हैं. उनकी सुरक्षा, निजता की रक्षा का दायित्व भी सत्ता को दिया गया है. कई दशक से बहुसंख्यक समुदाय का वर्चस्व स्थापित करने के लिए संविधानेत्तर आचरण करने की कोशिश को नाकाम करने के लिए सबसे पहले व्यवस्था की कमजोरी दुरूस्त करने की जरूरत है. समाज में भी उन तत्वों को अलग-थलग करने की आवश्यकता है जो आए दिन सौहाद्र्र व भाईचारे के लिए बाधा बनते हैं. किसी भी स्थिति में आपराधिक आचरण करने वालों को किसी भी स्तर पर संरक्षण न मिले यह सुनिश्चित किया जाये ताकि सबके साथ अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का वातावरण मिल सके. ‘छत्तीसगढिय़ा सबसे बढिय़ा’ इसी शर्त पर बना रह सकता है. जब उन्मादी तत्वों के राजनीतिक इस्तेमाल के विरूद्ध जनता भी सतर्क घेरेबन्दी करे ताकि इनके हौसले टूटें और दोबारा आपराधिक कृत्य को अंजाम न दे सकें.
आदिवासी बहुल प्रदेश शांति और सौहाद्र्र की मिसाल है. देश भर में जब विघ्न संतोषियों ने सांप्रदायिक उन्माद फैलाया था तब भी छग की जनता ने समझदारी दिखाई थी और अमन भाईचारे को बनाए रखा. देश भर के हर किस्म के लोग आए और सब अंतत: ‘छत्तीसगढिय़ा’ बनकर रह गए, जिसे ‘सबसे बढिय़ा’ कहा जाता है. हर धर्म, समुदाय के लोगों सहित ईसाई धर्मावलंबी भी आए और सुदूर वन प्रांतरों में शिक्षा का प्रसार और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया. इसी तरह अन्य संगठनों ने भी इन क्षेत्रों में समाज सेवा के लिए तत्परता दिखाई, लेकिन इसके केंद्र में धर्म और धर्म परिवर्तन को रखकर संघर्ष बढ़ाना निश्चित रूप से समाजद्रोही कार्य ही हो सकता है. चर्च पर हमले के आरोपियों को तत्परता से पकड़ा गया यह स्वागतेय है और एेसे तत्वों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. अनुभव बताते हैं कि राजनीतिक उद्देश्यों की पूॢत के लिए कानून के पालनकर्ताओं द्वारा ढिलाई बरतने की प्रवृत्ति बढ़ी है. बस्तर और जशपुर क्षेत्र में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों तथा समुदाय पर पिछलेएक दशक से हमले बढ़े हैं.
व्यवस्था संचालित करने वालों को इस बात को जेहन में रखना जरूरी है कि भारत के संविधान में ‘हम भारतवासी’ की प्रतिस्थापना के साथ विचार, आचार, व्यवहार की आजादी दी गई है. इसके साथ ही अल्पसंख्यक समुदायों को भी उनके अधिकार उसी तरह दिए गए हैं जैसे बहुसंख्यकों के हैं. उनकी सुरक्षा, निजता की रक्षा का दायित्व भी सत्ता को दिया गया है. कई दशक से बहुसंख्यक समुदाय का वर्चस्व स्थापित करने के लिए संविधानेत्तर आचरण करने की कोशिश को नाकाम करने के लिए सबसे पहले व्यवस्था की कमजोरी दुरूस्त करने की जरूरत है. समाज में भी उन तत्वों को अलग-थलग करने की आवश्यकता है जो आए दिन सौहाद्र्र व भाईचारे के लिए बाधा बनते हैं. किसी भी स्थिति में आपराधिक आचरण करने वालों को किसी भी स्तर पर संरक्षण न मिले यह सुनिश्चित किया जाये ताकि सबके साथ अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का वातावरण मिल सके. ‘छत्तीसगढिय़ा सबसे बढिय़ा’ इसी शर्त पर बना रह सकता है. जब उन्मादी तत्वों के राजनीतिक इस्तेमाल के विरूद्ध जनता भी सतर्क घेरेबन्दी करे ताकि इनके हौसले टूटें और दोबारा आपराधिक कृत्य को अंजाम न दे सकें.
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