जिस देश में महात्मा गांधी जैसी त्याग और सार्वजनिक जीवन में शुचिता की प्रतीक हस्ती रही हो, वहीं जन-प्रतिनिधि अगर मध्य काल के राजा-महाराजाओं, सुल्तानों की चमक-दमक वाले हों तो इसे विडंबना ही कहेंगे. कर्नाटक में मौजूदा मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच बेशकीमती हीरे जड़ी घडिय़ों को लेकर जो प्रहसन चल रहा है, वह हंसकर उड़ा देने वाली बात नहीं, बल्कि गंभीर विमर्श का विषय है. देश ने आजादी के बाद दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान अपनाया जिसमें सभी देशवासियों की श्रेणी सिर्फ और सिर्फ ‘हम भारतवासी’ है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मतदान का अधिकार, चुनाव लडऩे की पात्रता, शिक्षा, स्वास्थ्य सहित तमाम मामलों में बिना किसी जाति, धर्म, नस्लीय भेदभाव के सबको समान अधिकार संविधान प्रदान करता है, तो दूसरी ओर कर्तव्य भी एक जैसे ही सुझाए गए हैं. जब एक आम-भारतीय मतदाताओं के मतों से निर्वाचित होकर निश्चित समयावधि के लिए सत्ता-सूत्र संभालता है तो उसका नैतिक दायित्व और सार्वजनिक जीवन में शुचिता कायम रखना महत्वपूर्ण हो जाता है. आजादी की जंग की आंच में तपे नेताओं की पहली पीढ़ी को महात्मा गांधी के सामान्य भारतीय की तरह जीवन यापन करने, समरस रहने का आदर्श कमोबेश याद रहा लेकिन धीरे-धीरे इसका क्षरण होने के साथ राजनीतिज्ञों का विद्रूप स्वरूप सामने आ रहा है.
प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों, विधायकों को समस्त सुविधाओं के साथ पर्याप्त मानदेय और जीवन पर्यन्त आॢथक सुरक्षा भी मिलती है. इसके बावजूद हर कोई प्रश्नवाचक निगाह से यह भी देखता है कि इस राजनीतिक तबके की आमदनी लाखों में और खर्च करोड़ों में होती है. राजनीति पेशा नहीं है फिर भी इस क्षेत्र में आए लोगों की परिसम्पत्तियां ‘दिन दूनी रात चौगुनी’ बढ़ती है. दूसरी तरफ भारत का एक स्वरूप यह भी है कि स्कूल जाने के लिए बच्चे भारी संख्या में तरस रहे हैं, नौजवानों के पास काम नहीं है. कृषि से इतनी उपज हो रही है कि किसानों को आत्महत्या के अलावा कोई मार्ग नहीं सूझ रहा है. मेहनतकश तबका और कर्मचारी असुरक्षित होते जा रहे हैं. पूंजी का केन्द्रीकरण होने के साथ जनता की सुविधाएं छीनी जा रही हैं.
सत्ता सूत्र संभालने वालों की जमात में शीर्ष पर रहे राजनेता हवाला से लेकर भीषणतम भ्रष्टाचार के मामलों के आरोपी हैं, रहे हैं तो आय से अधिक सम्पत्ति का मामला बेहद साधारण घटना बनकर रह गई है. स्थिति इतनी भयावह होने के बाद भी कतिपय राजनेता अभी भी सादगी की मिसाल बने हुए हैं. विभिन्न भावनात्मक मुद्दों पर बहस और फसाद करने की प्रवृत्ति जोर पकड़ चुकी है, इस बीच सार्वजनिक जीवन जीने वालों की भी पड़ताल की जानी चाहिए. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसदों, मंत्रियों की जांच कराने की बात को अपनी पहली प्राथमिकता बताई थी. कालान्तर में दस लाख रूपए के सूट सहित जीवन शैली के आरोपों से घिरते नजर आए. महात्मा गांधी के देश में जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी पीडि़त, वंचित है वहां सत्ता सूत्र संभालने वालों की वैभवशाली संदिग्ध जीवन शैली भारतीय जनतंत्र के त्रासद प्रसंग हैं.
प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों, विधायकों को समस्त सुविधाओं के साथ पर्याप्त मानदेय और जीवन पर्यन्त आॢथक सुरक्षा भी मिलती है. इसके बावजूद हर कोई प्रश्नवाचक निगाह से यह भी देखता है कि इस राजनीतिक तबके की आमदनी लाखों में और खर्च करोड़ों में होती है. राजनीति पेशा नहीं है फिर भी इस क्षेत्र में आए लोगों की परिसम्पत्तियां ‘दिन दूनी रात चौगुनी’ बढ़ती है. दूसरी तरफ भारत का एक स्वरूप यह भी है कि स्कूल जाने के लिए बच्चे भारी संख्या में तरस रहे हैं, नौजवानों के पास काम नहीं है. कृषि से इतनी उपज हो रही है कि किसानों को आत्महत्या के अलावा कोई मार्ग नहीं सूझ रहा है. मेहनतकश तबका और कर्मचारी असुरक्षित होते जा रहे हैं. पूंजी का केन्द्रीकरण होने के साथ जनता की सुविधाएं छीनी जा रही हैं.
सत्ता सूत्र संभालने वालों की जमात में शीर्ष पर रहे राजनेता हवाला से लेकर भीषणतम भ्रष्टाचार के मामलों के आरोपी हैं, रहे हैं तो आय से अधिक सम्पत्ति का मामला बेहद साधारण घटना बनकर रह गई है. स्थिति इतनी भयावह होने के बाद भी कतिपय राजनेता अभी भी सादगी की मिसाल बने हुए हैं. विभिन्न भावनात्मक मुद्दों पर बहस और फसाद करने की प्रवृत्ति जोर पकड़ चुकी है, इस बीच सार्वजनिक जीवन जीने वालों की भी पड़ताल की जानी चाहिए. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसदों, मंत्रियों की जांच कराने की बात को अपनी पहली प्राथमिकता बताई थी. कालान्तर में दस लाख रूपए के सूट सहित जीवन शैली के आरोपों से घिरते नजर आए. महात्मा गांधी के देश में जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी पीडि़त, वंचित है वहां सत्ता सूत्र संभालने वालों की वैभवशाली संदिग्ध जीवन शैली भारतीय जनतंत्र के त्रासद प्रसंग हैं.
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