वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा प्रस्तुत बजट प्रस्ताव में कर्मचारी भविष्य निधि की निकासी पर आयकर का प्रस्ताव रखा गया है. इस संगठन में जमा की जाने वाली राशि सर्वाधिक होती है क्योंकि बहुमत कर्मियों के लिए ही ईपीएफओ है. इसी संगठन की राशि को म्युचुअल फंड, शेयर बाजार में लगाने की अनुमति दी गई है. बजट प्रस्ताव के तुरंत बाद ही सरकारी स्पष्टीकरण आया कि निकासी पर आयकर का प्रस्ताव पीपीएफ के लिए नहीं है. हर स्तर पर विरोध और श्रम संगठनों के गुस्से के बाद सरकार ने फैसले को पूरी तरह से नहीं पलटा और 60 फीसदी राशि निकासी के ब्याज पर आयकर लगाने का स्पष्टीकरण राजस्व सचिव से दिलवाया. स्थिति हास्यास्पद होने के बाद भी कर्मचारी हित में सरकार का गुलाटी मारना स्वागतयोग्य है. बेहतर होता कि सदन के पटल पर रखे इस प्रस्ताव को वित्त मंत्री वापस ले लें. देश के साढ़े छह करोड़ से अधिक वेतनभोगियों पर आरोपित अतिरिक्त भार उनका भविष्य कुछ हद तक खराब करता है. इसी तरह के बहुत से बजटीय प्रस्ताव हैं जिन पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए. संसद सर्वोच्च है और फैसले बहुमत से लेना सम्मानजनक स्थिति होती है.
प्रस्तावित बजट में मध्य वर्ग को दुधारू गाय समझा गया है और सरकार ने खजाना भरने के लिए अतिरिक्त दोहन की योजना पेश की है. किसी भी तरह के कर हो, चाहे वह उत्पादन कर, विक्रय कर हो या और कुछ, सब उपभोक्ता ही देता है, स्वच्छता और कृषि के नाम से करारोपण, डिविडेंट पर कर, सेवा शुल्क में वृद्धि सीधी मार है, जिसके लिए उपभोक्ता तैयार नहीं है. इस सिलसिले में बहस के बाद वित्त अधिनियम में समुचित संशोधन के पश्चात पारित किया जाना चाहिए. बजट में कृषि क्षेत्र को केन्द्र में रखा गया है, लेकिन प्रस्ताव का अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि उनकी वास्तविक स्थिति पर गौर नहीं किया गया है. पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करने की बात फिलहाल झांसे की तरह है और सबसे गंभीर तथ्य यह है कि किसानों की आय फिलहाल तीन हजार रूपये मासिक ही है. देश में कृषि संकट और अकालजनित परेशानी से उबरने के लिए 28 लाख हेक्टेयर की जगह 141 मिलियन हेक्टेयर खेती योग्य जमीन की सिंचाई की चिंता करनी पड़ेगी. आय बढ़ाने की चिंता फसलों के सुनिश्चित दाम के लिए उपाय करने से ही संभव होगी, बाजार की ताकतों से किसानों को बचाने के लिए रणनीति बनाने की जरूरत है. जिस नई आॢथक नीति के तहत उदारीकृत अर्थव्यवस्था का अनुसरण सरकार कर रही है, उसकी पहली शर्त सशक्त उपभोक्ताओं की मौजूदगी है.
देश में पांच करोड़ लोगों की क्रय शक्ति को ही भोथरा कर देने से बाजार और औद्योगिक विकास की गति पर गंभीर असर पड़ सकता है, जबकि जरूरत देश की समूची आबादी, जिसमें किसान, ग्रामीण भारत और शहरी गरीब शामिल हैं, उसे सशक्त बनाने की है. बजट प्रस्ताव सिर्फ प्रस्ताव हैं, जनहित और रियायतें देने के लिए फैसलों को पलटना सम्मान की बात होगी. गरीब भारत, मध्य वर्ग को सरकार से बहुत से यू टर्न की उम्मीदें हैं.
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