छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगरी रायगढ़ से फिर नरबलि की दहला देने वाली खबर आई है. एक मासूम की सिर कटी लाश मिली है और पुलिस के मुताबिक यह नरबलि का ही मामला है. इस इलाके में हाल ही में नरबलि के ही एक मामले में एक व्यक्ति को आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई है. इस ताज़ा घटना ने सिर्फ झकझोरा नहीं है बल्कि यह अंधविश्वास से जकड़े छत्तीसगढ़ के हाल पर चिंता के साथ सोचने को मजबूर करती है. डेढ़ दशक पूर्व बना यह राज्य एक तरफ विकास की नई करवटें लेने को बेचैन है दूसरी तरफ अद्र्ध सामन्ती सामाजिक मूल्यों के अवशेष आज भी इस राज्य को जकड़े हुए हैं.
अवैज्ञानिकता और प्रतिगामी संस्कार छत्तीसगढ़ के सामने बहुत बड़ी चुनौती है. यहाँ टोनही के नाम पर नारी प्रताडऩा की कुप्रथा टीस पैदा करती है. इसके खिलाफ सरकार ने सख्त क़ानून बनाया है लेकिन इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ रही अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति इसमें अनेक विसंगतियां देखती है. क़ानून मददगार तो ज़रूर होता है लेकिन क्रूर अंधविश्वास केवल कानून के सहारे ख़त्म नहीं हो सकते. किसी सभ्य लोकतांत्रिक समाज में एक मासूम की विचलित कर देने वाली नरबलि बहुत सारे सवाल खड़े करती है. आखिर हम इन कुप्रथाओं का मुकाबला करने में नाकाम क्यों हैं ?
ढेर सारे बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थान, बड़े अस्पताल, गाँव - गाँव को जोड़ती सडक़ें, बड़े-बड़े उद्योग यह सब भी आखिर नई चेतना के वाहक क्यों नहीं बन सक रहे हैं ? क्यों हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहाँ मासूम इस तरह की हिंसा का शिकार हो जाते हैं और हमारे लिए वो एक घटना बन कर रह जाती है ! रायगढ़ एक औद्योगिक शहर है, जहाँ आधुनिक सुख-सुविधाएँ तो पहुँच गईं हैं लेकिन आधुनिक विचारों से शायद अब भी कोसों दूर है. यह तस्वीर छत्तीसगढ़ के अन्य शहरों की भी है. एक अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति को छोड़ दें तो अंध-विश्वासों के खिलाफ लडाई किसका एजेंडा हैं ? क्या यह राजनीतिक दलों के एजेंडे में शामिल नहीं होना चाहिए? क्या समाज के अन्य हिस्सों को भी इस लड़ाई का हिस्सा नहीं बनना चाहिए? दुर्भाग्य से छत्तीसगढ़ में सत्ताधीश तो बारिश के लिए मेंढक-मेंढकी के विवाह जैसे ढकोसलों में डूबे नजऱ आते हैं, तो कभी जिम्मेदार लोग नक्सली समस्याओं के लिए ग्रह - नक्षत्रों को जिम्मेदार बताकर अनुष्ठान करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं! छत्तीसगढ़ तेज औद्योगिक रफ़्तार का केंद्र बन गया है लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव छत्तीसगढ़ की पहचान है. कर्ज में डूबा किसान जान दे रहा है.
स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव और उपलब्धता के बावजूद भी लोग झाड़-फूंक पर भरोसा कर प्राण गंवाने के विवश होते हैं. दरअसल अंधविश्वास के खिलाफ वैज्ञानिक चेतना संपन्न सामाजिक-राजनीतिक लड़ाई ज़रूरी है. अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई को रोजगार, शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य की लड़ाई से जोड़े बिना एेसी क्रूर, हिंसक कुप्रथाओं को रोकना कठिन है.
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