जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय सुर्खियों में है और लम्बे समय बाद एक विद्यार्थी प्रतिरोध का नायक बनकर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट कर रहा है. इसके साथ ही विपरीत ध्रुव वाली विचारधाराओं के बीच तेज होता संघर्ष भी सतह पर है. जेएनयू प्रकरण किसी विस्फोट की तरह भारतीय जन-मानस को हिला देने वाली घटना के रूप में आता है और मीडिया में एकबारगी छात्रों का स्वरूप देशद्रोहियों की तरह पेश हो जाता है. छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार न सिर्फ गिरफ्तार होता है, बल्कि अदालत परिसर में ही न्याय दिलाने के लिए मददगार कतिपय अधिवक्ता दो-दो बार सजा देने की कोशिश कर लेते हैं. आश्चर्यजनक रुप से देश के गृहमंत्री का हस्तक्षेप भी होता है और आतंकवादी हाफिज सईद की संलिप्तता का संकेत राष्ट्रवाद के नाम से उन्माद की आग में घी का काम करता है. अब जब कन्हैया कुमार को छह महीने की अंतरिम जमानत इस आधार पर दे दी जाती है कि दिल्ली पुलिस अदालत में कन्हैया कुमार के खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं कर सकी और जांच जारी रखी जाए, तब स्थितियां काफी बदल जाती हैं. अभी तक जेएनयू प्रकरण को लेकर एकपक्षीय प्रचार का ही जोर था, अब सवालों का जवाब तलाशने आरोपी कन्हैया कुमार भी उपलब्ध हैं. देर रात टीवी चैनलों ने इस बहुचर्चित युवा को जीवंत प्रसारित किया.
कन्हैया कुमार ने देश की न्यायिक व्यवस्था, संविधान और लोकतंत्र पर आस्था जताते हुए विशुद्ध राजनीतिक- वैचारिक सवालों पर बात की. प्रेस वार्ता में भी स्पष्ट किया कि उनके आदर्श अलगाववादी, आतंकवादी नहीं, बल्कि व्यवस्था के विरुद्ध आक्रोश जताने वाले हैदराबाद विवि के छात्र रोहित वेमुला हैं. इसके साथ ही भारत के दक्षिणपंथी माने जाने वाले संगठनों ने भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से जारी बयान में जमानत देने के फैसले के उन मुद्दों पर ध्यान देने की बात की गई है, जिसमें छात्रों के बीच राष्ट्रविरोधी भावनाएं पनपने पर चिंता व्यक्त की गई है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू के राष्ट्रवाद के खिलाफ होने और इस प्रवृत्ति के विरुद्ध संघर्ष की बात दोहराई है. इस समूचे प्रकरण की पृष्ठभूमि में वैचारिक भिन्नता है. आजादी के पहले ही देश में आरएसएस और कम्युनिस्ट पार्टी का उदय हो चुका था. जेएनयू की महत्ता और विरासत पर चर्चा भी यहां जरुरी है. इस विवि के विद्यार्थी देश के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा से महत्वपूर्ण सेवाएं दे रहे हैं.
राजनीति से लेकर प्रशासन, शिक्षा, कला, सिनेमा में भी जेएनयू से निकली प्रतिभाएं हैं. इस विवि में 40 फीसदी छात्र उस पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जिनके घर के बच्चों को स्कूल में भी पढ़ाना आसान नहीं होता. यहां बहुलतावादी संस्कृति, लोकतांत्रिक मूल्यों और विमर्श की लम्बी परम्परा रही है. यह सही है कि वामपंथी छात्र ज्यादातर हावी रहे हैं, लेकिन अन्य विचारधारा के लोग भी अपना स्थान रखते हैं. भारत लोकतांत्रिक देश है और इसकी ताकत विमर्श है. सहमति-असहमति के अधिकार को सुरक्षित रखते हुए इसे कटु संघर्ष में तब्दील करने से लोकतंत्र ही कमजोर होगा. सत्ताधारी दल, विपक्ष सहित सबका दायित्व बनता है सदियों से कमाई जनवादी प्रवृत्तियों को बचाएं.
कन्हैया कुमार ने देश की न्यायिक व्यवस्था, संविधान और लोकतंत्र पर आस्था जताते हुए विशुद्ध राजनीतिक- वैचारिक सवालों पर बात की. प्रेस वार्ता में भी स्पष्ट किया कि उनके आदर्श अलगाववादी, आतंकवादी नहीं, बल्कि व्यवस्था के विरुद्ध आक्रोश जताने वाले हैदराबाद विवि के छात्र रोहित वेमुला हैं. इसके साथ ही भारत के दक्षिणपंथी माने जाने वाले संगठनों ने भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से जारी बयान में जमानत देने के फैसले के उन मुद्दों पर ध्यान देने की बात की गई है, जिसमें छात्रों के बीच राष्ट्रविरोधी भावनाएं पनपने पर चिंता व्यक्त की गई है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू के राष्ट्रवाद के खिलाफ होने और इस प्रवृत्ति के विरुद्ध संघर्ष की बात दोहराई है. इस समूचे प्रकरण की पृष्ठभूमि में वैचारिक भिन्नता है. आजादी के पहले ही देश में आरएसएस और कम्युनिस्ट पार्टी का उदय हो चुका था. जेएनयू की महत्ता और विरासत पर चर्चा भी यहां जरुरी है. इस विवि के विद्यार्थी देश के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा से महत्वपूर्ण सेवाएं दे रहे हैं.
राजनीति से लेकर प्रशासन, शिक्षा, कला, सिनेमा में भी जेएनयू से निकली प्रतिभाएं हैं. इस विवि में 40 फीसदी छात्र उस पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जिनके घर के बच्चों को स्कूल में भी पढ़ाना आसान नहीं होता. यहां बहुलतावादी संस्कृति, लोकतांत्रिक मूल्यों और विमर्श की लम्बी परम्परा रही है. यह सही है कि वामपंथी छात्र ज्यादातर हावी रहे हैं, लेकिन अन्य विचारधारा के लोग भी अपना स्थान रखते हैं. भारत लोकतांत्रिक देश है और इसकी ताकत विमर्श है. सहमति-असहमति के अधिकार को सुरक्षित रखते हुए इसे कटु संघर्ष में तब्दील करने से लोकतंत्र ही कमजोर होगा. सत्ताधारी दल, विपक्ष सहित सबका दायित्व बनता है सदियों से कमाई जनवादी प्रवृत्तियों को बचाएं.
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