अक्षर यात्रा की कक्षा में "स" वर्ण की चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने बताया- वाणी और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता को सरस्वती कहते हैं जिसका वर्णन ब्रह्मा की पत्नी रूप में किया जाता है। एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, एक पवित्र नदी का नाम भी तो सरस्वती है। आचार्य बोले- सही है पुत्र, सर्वप्रथम ऋग्वेद में सरस्वती का पवित्र नदी और नदी देवता तथा वाग्देवता के रूप में वर्णन मिलता है। हमारे विभिन्न शास्त्रों में सरस्वती को ब्राह्मी, (यानी ब्रह्म शक्ति), भारती, भाषा, गी, वाक् और वाणी नाम भी बताए हैं। कुछ विद्वानों के मत में वेदों में जिस सरस्वती नदी का वर्णन है उसका निश्चय नहीं हो सका है कि वह कौन-सी नदी है। बाद के साहित्य में उल्लिखित सरस्वती कहीं लुप्त होकर नीचे-नीचे गंगा से मिली बताते हैं। ग्रंथ कहते हैं कि सरस्वती मूलत: शुतुद्रि (सतलुज) की एक सहायक नदी थी। जब शुतुद्रि अपना मार्ग बदल कर बिपाशा (व्यास नदी) में मिल गई तो सरस्वती उसके पुराने पेटे (मार्ग) से बहती रही। यह पश्चिमी समुद्र (अब राजस्थान का क्षेत्र) में मिलती थी। इसका वर्णन अत्यन्त वेगवती नदी के रूप में है जिसके किनारे राजा और जन बसते थे, यज्ञ करते और मंत्रों का गान करते थे। सरस्वती को आजकल घग्घर भी कहते हैं। बीकानेर क्षेत्र में भूमिगत बहाव क्षेत्र के संकेत मिलने से कई विद्वान इसे विलुप्त हुई सरस्वती का मार्ग बताते हैं।
आचार्य ने बताया- सरस्वती और दृषद्वती के बीच का क्षेत्र ब्रह्मवर्त कहलाता था जो वैदिक ज्ञान और कर्मकाण्ड के लिए प्रसिद्ध था। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के रूप में मानी गई है जो पवित्रता, शुद्धि, समृद्धि और शक्ति प्रदान करती है। उसका सम्बन्ध अन्य देवताओं- पूषा, इन्द्र और मरूत् से बताया है। कई सूक्तों में सरस्वती का सम्बन्ध यज्ञीय देवता इडा और भारती से भी जोड़ा है। पहले सरस्वती नदी देवता थी फिर ब्राह्मण काल में उसका वाक् (वाग्देवता) से अभेद माना (शतपथ ब्राह्मण, ऎतरेय ब्राह्मण)। शब्द वाक् की अधिष्ठात्री सरस्वती को और लक्ष्मी को अर्थ वाक् की अधिष्ठात्री माना है। बाद के काल में सरस्वती विद्या और कला की देवी हो गई। इसका वाहन हंस नीर-क्षीर-विवेक का प्रतीक है। कहीं चित्रों में मयूर को भी सरस्वती का वाहन बताया है।
आचार्य ने बताया- देववाणी, शब्द, स्वर, विद्या, दुर्गा, गाय, श्रेष्ठ स्त्री, सुषुम्ना नाड़ी, बौद्धों की एक देवी, सोमलता, ज्योतिष्मती नामक पौधा, ब्राह्मी लता, मनुपत्नी और जलाशयों से पूर्ण भूभाग के अर्थ में भी सरस्वती शब्द काम लेते हैं। विद्वान, ज्ञानी व्यक्ति, पण्डित को सरस्वती पुत्र कहते हैं। वह स्थान जहां सरस्वती नदी लुप्त हुई मानते हैं उसे सरस्वती विनशन कहा है।
आचार्य बोले- जलयुक्त, रसीला, स्वादिष्ट, सुन्दर, भावुक, रस प्राप्त करने वाला, समुद्र, नद और भैसा के अर्थ में सरस्वान शब्द प्रयुक्त करते हैं। रंगीन, हलके रंग वाला, रंगदार के अर्थ "कुवलयानन्द" में सराग शब्द का प्रयोग दिखता है। "रघुवंश" में लाल रंग की लाख से रंगा हुआ के अर्थ में सराग शब्द प्रयुक्त हुआ है।
"सुभाषित चरित" में प्रणयोन्मत्त, प्रेमाविष्ट, मुग्ध के लिए सराग शब्द का प्रयोग हुआ है। शब्द करने वाला, कोलाहल करने वाला, ढक्कन, कसोरा, चाय की तश्तरी के अर्थ में सराव शब्द काम लेते हैं। फौव्वारा, झरना को सरि कहते हैं। "मालविकाग्निमित्र" में नदी के लिए सरित शब्द प्रयुक्त हुआ है। धागा, डोरी को भी सरित कहते हैं। समुद्र को सरितनाथ, सरितपति, सरितभतृü कहा है। गंगा पुत्र भीष्म का विशेषण सरितपुत्र भी है।
आचार्य ने बताया- सरस्वती और दृषद्वती के बीच का क्षेत्र ब्रह्मवर्त कहलाता था जो वैदिक ज्ञान और कर्मकाण्ड के लिए प्रसिद्ध था। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के रूप में मानी गई है जो पवित्रता, शुद्धि, समृद्धि और शक्ति प्रदान करती है। उसका सम्बन्ध अन्य देवताओं- पूषा, इन्द्र और मरूत् से बताया है। कई सूक्तों में सरस्वती का सम्बन्ध यज्ञीय देवता इडा और भारती से भी जोड़ा है। पहले सरस्वती नदी देवता थी फिर ब्राह्मण काल में उसका वाक् (वाग्देवता) से अभेद माना (शतपथ ब्राह्मण, ऎतरेय ब्राह्मण)। शब्द वाक् की अधिष्ठात्री सरस्वती को और लक्ष्मी को अर्थ वाक् की अधिष्ठात्री माना है। बाद के काल में सरस्वती विद्या और कला की देवी हो गई। इसका वाहन हंस नीर-क्षीर-विवेक का प्रतीक है। कहीं चित्रों में मयूर को भी सरस्वती का वाहन बताया है।
आचार्य ने बताया- देववाणी, शब्द, स्वर, विद्या, दुर्गा, गाय, श्रेष्ठ स्त्री, सुषुम्ना नाड़ी, बौद्धों की एक देवी, सोमलता, ज्योतिष्मती नामक पौधा, ब्राह्मी लता, मनुपत्नी और जलाशयों से पूर्ण भूभाग के अर्थ में भी सरस्वती शब्द काम लेते हैं। विद्वान, ज्ञानी व्यक्ति, पण्डित को सरस्वती पुत्र कहते हैं। वह स्थान जहां सरस्वती नदी लुप्त हुई मानते हैं उसे सरस्वती विनशन कहा है।
आचार्य बोले- जलयुक्त, रसीला, स्वादिष्ट, सुन्दर, भावुक, रस प्राप्त करने वाला, समुद्र, नद और भैसा के अर्थ में सरस्वान शब्द प्रयुक्त करते हैं। रंगीन, हलके रंग वाला, रंगदार के अर्थ "कुवलयानन्द" में सराग शब्द का प्रयोग दिखता है। "रघुवंश" में लाल रंग की लाख से रंगा हुआ के अर्थ में सराग शब्द प्रयुक्त हुआ है।
"सुभाषित चरित" में प्रणयोन्मत्त, प्रेमाविष्ट, मुग्ध के लिए सराग शब्द का प्रयोग हुआ है। शब्द करने वाला, कोलाहल करने वाला, ढक्कन, कसोरा, चाय की तश्तरी के अर्थ में सराव शब्द काम लेते हैं। फौव्वारा, झरना को सरि कहते हैं। "मालविकाग्निमित्र" में नदी के लिए सरित शब्द प्रयुक्त हुआ है। धागा, डोरी को भी सरित कहते हैं। समुद्र को सरितनाथ, सरितपति, सरितभतृü कहा है। गंगा पुत्र भीष्म का विशेषण सरितपुत्र भी है।
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