अक्षर यात्रा की कक्षा में "स" वर्ण की चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने बताया- माप, मापना, तुलना के अर्थ में सम्मान शब्द प्रयुक्त करते हैं। एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, सम्मान शब्द का प्रयोग तो आदर के अर्थ में खूब प्रचलन में है।
आचार्य बोले- सही कहते हो पुत्र, आदर, प्रतिष्ठा, मान, इज्जत के अर्थ में सम्मान शब्द प्रचलित है। पूजन, सम्मान करना, सिखलाना, बतलाना के अर्थ में सम्मानन शब्द काम लेते हैं। प्रक्षालन, साफ करना, (लकड़ी आदि का बोझ बांधने के लिए बनाई) तृण की रस्सी को सम्मार्ग कहते हैं। झाड़ू, साफ करने वाला, झाड़ने वाला, बुहारने वाला सम्मार्जक कहलाता है। बुहारना, मांजना, निर्मल करना, साफ करना, झाड़ना, स्नानादि (मूर्ति का), थाली साफ करते समय निकला हुआ उच्छिष्ट, झाड़ू के अर्थ में सम्मार्जन शब्द प्रयुक्त होता है। "हेमचन्द्र" के अनुसार सम्मार्जनी और शोधनी- झाड़ू के दो नाम हैं। अच्छी तरह साफ किया हुआ, हटाया हुआ, नष्ट किया हुआ के अर्थ में सम्मार्जित शब्द का प्रयोग किया जाता है।
आचार्य ने बताया- मापा हुआ, नापा हुआ को सम्मित कहते हैं। "कादम्बरी" और "रघुवंश" में समान माप-विस्तार या मूल्य का, सम, वैसा ही, बराबर और मिलता-जुलता के अर्थ में सम्मित शब्द का प्रयोग हुआ है। इतना बड़ा जितना कि, पहुंचता हुआ, समरूप, समनुकूल, समानुपातिक, से युक्त, के निमित्त, सुसज्जित, सदृश, एक जैसा, अनुरूप और फासला के अर्थ में भी सम्मित शब्द काम लेते हैं। बराबरी, तुलना करना, महत्वाकांक्षा को सम्मिति कहते हैं। विष्ा द्रव्य, जहरीली चीजें सम्मिपात कहलाती हैं। परस्पर मिलाया हुआ, अन्तर्मिश्रित के लिए सम्मिश्र या सम्मिश्रित शब्द काम लेते हैं। इन्द्र का एक विशेष्ाण सम्मिश्ल है। एकत्र होना, मिलना सम्मिलन कहा जाता है। विष्ााक्त, अत्यन्त कड़ा विष्ा सम्मी कहलाता है। बन्द होना, ढकना, लपेटना, संकुचित होना, मूंदना, पूर्ण ग्रहण, खग्रास, सक्रियता का अन्त होना के अर्थ में सम्मीलन शब्द प्रयुक्त करते हैं। सुप्त, जिसने आंखें बन्द कर ली हैं के अर्थ में सम्मीलित और रक्त पुनर्नवा के लिए सम्मीलित द्रुम शब्द काम लेते हैं।
आचार्य ने बताया- "शकुन्तला", "शिशुपाल वध", "रघुवंश" में सामने का, सम्मुख स्थित, आमने-सामने अभिमुखी और सामना करने वाला के अर्थ में सम्मुख शब्द का प्रयोग दिखता है। मुठभेड़ करने वाला, भिड़ने वाला, की ओर प्रवृत्त, किसी बात पर तुला हुआ, मुकाबला करने वाला, उपयुक्त, स्वस्थ के अर्थ में भी सम्मुख शब्द काम लेते हैं। दर्पण, आईना, शीशा, वह जो सामने हो के लिए सम्मुखी शब्द प्रयुक्त करते हैं। भटका हुआ, घबराया हुआ, हतबुद्धि, सुन्दर के लिए सम्मुग्ध शब्द का प्रयोग करते हैं। संज्ञाहीन, मूर्ख, ज्ञानहीन, हतबुद्धि, राशीकृत, अस्त-व्यस्त, तेजी से उत्पन्न, भग्न और टूटा हुआ के अर्थ में सम्मूढ़ शब्द का प्रचलन है। जिसका दिमाग ठिकाने ना हो यानी हत बुद्धि को सम्मूढ चेता भी कहते हैं। व्याकुल, उद्विग्नमना के लिए सम्मूढ ह्वदय शब्द काम लेते हैं।
आचार्य ने बताया- घना होना, बढ़ना, फैलना को सम्मूच्र्छ कहते हैं। तृण, घास के लिए सम्मूच्र्छन शब्द काम लेते हैं। मूच्र्छा, बेहोशी, जमना, गाढ़ा होना, गाढ़ा करना, ऊंचाई, विश्व व्याप्ति, सह विस्तार, पूर्ण व्याप्ति के अर्थ में सम्मूच्र्छन शब्द प्रयुक्त किया जाता है। मछली या अन्य जलचल जन्तु सम्मूच्र्छनोद्भव कहलाते हैं। घनीभूत, बेहोश, प्रतिफलित (जैसे किरण) और मिलाया हुआ (स्वर) के अर्थ में सम्मूच्छिüत शब्द का प्रचलन है।
आचार्य बोले- सही कहते हो पुत्र, आदर, प्रतिष्ठा, मान, इज्जत के अर्थ में सम्मान शब्द प्रचलित है। पूजन, सम्मान करना, सिखलाना, बतलाना के अर्थ में सम्मानन शब्द काम लेते हैं। प्रक्षालन, साफ करना, (लकड़ी आदि का बोझ बांधने के लिए बनाई) तृण की रस्सी को सम्मार्ग कहते हैं। झाड़ू, साफ करने वाला, झाड़ने वाला, बुहारने वाला सम्मार्जक कहलाता है। बुहारना, मांजना, निर्मल करना, साफ करना, झाड़ना, स्नानादि (मूर्ति का), थाली साफ करते समय निकला हुआ उच्छिष्ट, झाड़ू के अर्थ में सम्मार्जन शब्द प्रयुक्त होता है। "हेमचन्द्र" के अनुसार सम्मार्जनी और शोधनी- झाड़ू के दो नाम हैं। अच्छी तरह साफ किया हुआ, हटाया हुआ, नष्ट किया हुआ के अर्थ में सम्मार्जित शब्द का प्रयोग किया जाता है।
आचार्य ने बताया- मापा हुआ, नापा हुआ को सम्मित कहते हैं। "कादम्बरी" और "रघुवंश" में समान माप-विस्तार या मूल्य का, सम, वैसा ही, बराबर और मिलता-जुलता के अर्थ में सम्मित शब्द का प्रयोग हुआ है। इतना बड़ा जितना कि, पहुंचता हुआ, समरूप, समनुकूल, समानुपातिक, से युक्त, के निमित्त, सुसज्जित, सदृश, एक जैसा, अनुरूप और फासला के अर्थ में भी सम्मित शब्द काम लेते हैं। बराबरी, तुलना करना, महत्वाकांक्षा को सम्मिति कहते हैं। विष्ा द्रव्य, जहरीली चीजें सम्मिपात कहलाती हैं। परस्पर मिलाया हुआ, अन्तर्मिश्रित के लिए सम्मिश्र या सम्मिश्रित शब्द काम लेते हैं। इन्द्र का एक विशेष्ाण सम्मिश्ल है। एकत्र होना, मिलना सम्मिलन कहा जाता है। विष्ााक्त, अत्यन्त कड़ा विष्ा सम्मी कहलाता है। बन्द होना, ढकना, लपेटना, संकुचित होना, मूंदना, पूर्ण ग्रहण, खग्रास, सक्रियता का अन्त होना के अर्थ में सम्मीलन शब्द प्रयुक्त करते हैं। सुप्त, जिसने आंखें बन्द कर ली हैं के अर्थ में सम्मीलित और रक्त पुनर्नवा के लिए सम्मीलित द्रुम शब्द काम लेते हैं।
आचार्य ने बताया- "शकुन्तला", "शिशुपाल वध", "रघुवंश" में सामने का, सम्मुख स्थित, आमने-सामने अभिमुखी और सामना करने वाला के अर्थ में सम्मुख शब्द का प्रयोग दिखता है। मुठभेड़ करने वाला, भिड़ने वाला, की ओर प्रवृत्त, किसी बात पर तुला हुआ, मुकाबला करने वाला, उपयुक्त, स्वस्थ के अर्थ में भी सम्मुख शब्द काम लेते हैं। दर्पण, आईना, शीशा, वह जो सामने हो के लिए सम्मुखी शब्द प्रयुक्त करते हैं। भटका हुआ, घबराया हुआ, हतबुद्धि, सुन्दर के लिए सम्मुग्ध शब्द का प्रयोग करते हैं। संज्ञाहीन, मूर्ख, ज्ञानहीन, हतबुद्धि, राशीकृत, अस्त-व्यस्त, तेजी से उत्पन्न, भग्न और टूटा हुआ के अर्थ में सम्मूढ़ शब्द का प्रचलन है। जिसका दिमाग ठिकाने ना हो यानी हत बुद्धि को सम्मूढ चेता भी कहते हैं। व्याकुल, उद्विग्नमना के लिए सम्मूढ ह्वदय शब्द काम लेते हैं।
आचार्य ने बताया- घना होना, बढ़ना, फैलना को सम्मूच्र्छ कहते हैं। तृण, घास के लिए सम्मूच्र्छन शब्द काम लेते हैं। मूच्र्छा, बेहोशी, जमना, गाढ़ा होना, गाढ़ा करना, ऊंचाई, विश्व व्याप्ति, सह विस्तार, पूर्ण व्याप्ति के अर्थ में सम्मूच्र्छन शब्द प्रयुक्त किया जाता है। मछली या अन्य जलचल जन्तु सम्मूच्र्छनोद्भव कहलाते हैं। घनीभूत, बेहोश, प्रतिफलित (जैसे किरण) और मिलाया हुआ (स्वर) के अर्थ में सम्मूच्छिüत शब्द का प्रचलन है।
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