अक्षर यात्रा की कक्षा में "सा" वर्ण की चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने बताया- शान्त करने के अर्थ में सान्त्व शब्द का प्रयोग करते हैं। मेदिनीकोश में इसी अर्थ में साम को भी सान्त्व का पर्याय बताया है। एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, आम तौर पर हम ढाढ़स बंधाने के लिए जिस सान्त्वना शब्द का प्रयोग करते हैं, क्या वह भी इस सान्त्व शब्द से कोई सम्बन्ध रखता है?
आचार्य ने बताया- पुत्र, "भिकाव्य" तथा अन्य ग्रंथों में ढाढ़स बंधाना के अर्थ में सान्त्व, सान्त्वन अथवा सान्त्वना शब्द प्रयुक्त हुए हैं। इनका अर्थ खुश करना, सुलह करना, आराम पहुंचाना भी है। मृदु या हलका उपाय, कृपापूर्ण या ढाढ़स बंधाने वाले शब्द, मृदुता, अभिवादन एवं कुशलक्षेम के अर्थ में भी सान्त्व, सान्त्वन या सान्त्वना शब्द काम में लेते हैं। कृष्ण और बलराम के शिक्षा गुरू एक ऋ çष्ा का नाम "विष्णुपुराण" के अनुसार सान्दीपनि था। "ब्ा्रह्मवैवर्त पुराण" में बताया है कि सान्दीपन के वंश में ये उत्पन्न हुए इसलिए सान्दीपनि कहलाए। कृष्ण और बलराम ने उनसे अस्त्र-विद्या ग्रहण की। गुरू के पुत्र को पंचजन नाम का राक्षस उठा कर पानी में घुस गया था। मृतपुत्र को कृष्ण और बलराम पंचजन राक्षस को मार कर गुरूदक्षिणा के तौर पर वापस लाए। "भागवत पुराण" के अनुसार सुदामा भी दोनों भाइयों के साथ इन्हीं सान्दीपनि के शिष्य थे। शिप्रा नदी की पावन नगरी उज्जयिनी (उज्जैन) में स्थित सान्दीपनि आश्रम का इन्हीं प्रसंगों से आज भी महात्म्य मानते हैं।
आचार्य ने बताया- देखते ही देखते होने वाला, तात्कालिक, तात्कालिक परिणाम के अर्थ में सान्दृष्टिक शब्द प्रयुक्त करते हैं। पास-पास, सटा हुआ, अनन्तराल के अर्थ में सान्द्र शब्द का प्रयोग किया जाता है। "शिशुपाल वध", "रघुवंश", "ऋ तुसंहार" में मोटा, घन, ठोस, गाढ़ा के अर्थ में सान्द्र शब्द का प्रयोग दिखता है- "दुर्वर्णभित्तिरिह सान्द्रसुवासवर्णा।" गुच्छा बना हुआ, संगृहीत, ह्वष्टपुष्ट, मजबूत, हट्टाकट्टा के अर्थ में भी सान्द्र शब्द काम में लेते हैं। "उत्तर राम चरित" में अत्यधिक, विपुल, प्रचुर के अर्थ में सान्द्र प्रयुक्त हुआ है। "रघुवंश" में उग्र, प्रखर, प्रचण्ड के अर्थ में भी सान्द्र काम में लिया गया है। चिकना, तैलाक्त, चिपचिपा, स्निग्ध, मृदु, सौम्य, सुखकर, रूचिकर, राशि, ढेर के अर्थ में भी सान्द्र शब्द प्रयुक्त करते हैं। जो छूने में मृदु हो, चिपचिपा हो उसे सान्द्र स्पर्श कहते हैं। "नारायणीय" में आध्यात्मिक सुख को सान्द्रानन्द कहा है।
आचार्य ने बताया- शराब खींचने वाला, कलाल सान्घिक कहलाता है। सान्घिविग्रहिक शब्द का प्रयोग विदेश मंत्री के अर्थ में हुआ है जो सन्घि और विग्रह का निर्णय करता है। इसे राज्य सचिव भी कहा है। "मेघदूत" और "रघुवंश" में सांझ सम्बन्धी, सायंकालीन के अर्थ में सान्ध्य शब्द काम में लिया गया है।
"शिशुपाल वध" में शस्त्र उठाने के लिए कहने वाला, युद्ध के लिए तैयार होने को प्रोत्साहित करने वाला सान्नहनिक कहा गया है। इसका अर्थ कवचधारी भी है। इसे सान्नाहिक भी कहते हैं। घी युक्त कोई पदार्थ जो आहुति के रूप में अग्नि में डाला जाए उसे सान्नाय्य "शिशुपाल वध" में कहा है। "मालविकाग्निमित्र" में पड़ोस, सामीप्य के अर्थ में सान्निध्य शब्द प्रयुक्त हुआ है। "रघुवंश" और "कुवलयानन्द" में उपस्थिति, हाजिरी के अर्थ में सान्निध्य शब्द दिखता है। मुक्ति का एक प्रकार भी सान्निध्य कहलाता है। "पंचतंत्र" और "कुवलयानन्द" में त्रिदोष्ा यानी जिसके कफ, वायु, पित्त तीनों ही दोष्ा विकृत हो गए हों, उसे सान्निपातिक कहा है। विविध, जटिल, पेचीदा, विष्ाम के लिए भी सान्निपातिक शब्द काम में लेते हैं।
(राजस्थान पत्रिका से साभार)
आचार्य ने बताया- पुत्र, "भिकाव्य" तथा अन्य ग्रंथों में ढाढ़स बंधाना के अर्थ में सान्त्व, सान्त्वन अथवा सान्त्वना शब्द प्रयुक्त हुए हैं। इनका अर्थ खुश करना, सुलह करना, आराम पहुंचाना भी है। मृदु या हलका उपाय, कृपापूर्ण या ढाढ़स बंधाने वाले शब्द, मृदुता, अभिवादन एवं कुशलक्षेम के अर्थ में भी सान्त्व, सान्त्वन या सान्त्वना शब्द काम में लेते हैं। कृष्ण और बलराम के शिक्षा गुरू एक ऋ çष्ा का नाम "विष्णुपुराण" के अनुसार सान्दीपनि था। "ब्ा्रह्मवैवर्त पुराण" में बताया है कि सान्दीपन के वंश में ये उत्पन्न हुए इसलिए सान्दीपनि कहलाए। कृष्ण और बलराम ने उनसे अस्त्र-विद्या ग्रहण की। गुरू के पुत्र को पंचजन नाम का राक्षस उठा कर पानी में घुस गया था। मृतपुत्र को कृष्ण और बलराम पंचजन राक्षस को मार कर गुरूदक्षिणा के तौर पर वापस लाए। "भागवत पुराण" के अनुसार सुदामा भी दोनों भाइयों के साथ इन्हीं सान्दीपनि के शिष्य थे। शिप्रा नदी की पावन नगरी उज्जयिनी (उज्जैन) में स्थित सान्दीपनि आश्रम का इन्हीं प्रसंगों से आज भी महात्म्य मानते हैं।
आचार्य ने बताया- देखते ही देखते होने वाला, तात्कालिक, तात्कालिक परिणाम के अर्थ में सान्दृष्टिक शब्द प्रयुक्त करते हैं। पास-पास, सटा हुआ, अनन्तराल के अर्थ में सान्द्र शब्द का प्रयोग किया जाता है। "शिशुपाल वध", "रघुवंश", "ऋ तुसंहार" में मोटा, घन, ठोस, गाढ़ा के अर्थ में सान्द्र शब्द का प्रयोग दिखता है- "दुर्वर्णभित्तिरिह सान्द्रसुवासवर्णा।" गुच्छा बना हुआ, संगृहीत, ह्वष्टपुष्ट, मजबूत, हट्टाकट्टा के अर्थ में भी सान्द्र शब्द काम में लेते हैं। "उत्तर राम चरित" में अत्यधिक, विपुल, प्रचुर के अर्थ में सान्द्र प्रयुक्त हुआ है। "रघुवंश" में उग्र, प्रखर, प्रचण्ड के अर्थ में भी सान्द्र काम में लिया गया है। चिकना, तैलाक्त, चिपचिपा, स्निग्ध, मृदु, सौम्य, सुखकर, रूचिकर, राशि, ढेर के अर्थ में भी सान्द्र शब्द प्रयुक्त करते हैं। जो छूने में मृदु हो, चिपचिपा हो उसे सान्द्र स्पर्श कहते हैं। "नारायणीय" में आध्यात्मिक सुख को सान्द्रानन्द कहा है।
आचार्य ने बताया- शराब खींचने वाला, कलाल सान्घिक कहलाता है। सान्घिविग्रहिक शब्द का प्रयोग विदेश मंत्री के अर्थ में हुआ है जो सन्घि और विग्रह का निर्णय करता है। इसे राज्य सचिव भी कहा है। "मेघदूत" और "रघुवंश" में सांझ सम्बन्धी, सायंकालीन के अर्थ में सान्ध्य शब्द काम में लिया गया है।
"शिशुपाल वध" में शस्त्र उठाने के लिए कहने वाला, युद्ध के लिए तैयार होने को प्रोत्साहित करने वाला सान्नहनिक कहा गया है। इसका अर्थ कवचधारी भी है। इसे सान्नाहिक भी कहते हैं। घी युक्त कोई पदार्थ जो आहुति के रूप में अग्नि में डाला जाए उसे सान्नाय्य "शिशुपाल वध" में कहा है। "मालविकाग्निमित्र" में पड़ोस, सामीप्य के अर्थ में सान्निध्य शब्द प्रयुक्त हुआ है। "रघुवंश" और "कुवलयानन्द" में उपस्थिति, हाजिरी के अर्थ में सान्निध्य शब्द दिखता है। मुक्ति का एक प्रकार भी सान्निध्य कहलाता है। "पंचतंत्र" और "कुवलयानन्द" में त्रिदोष्ा यानी जिसके कफ, वायु, पित्त तीनों ही दोष्ा विकृत हो गए हों, उसे सान्निपातिक कहा है। विविध, जटिल, पेचीदा, विष्ाम के लिए भी सान्निपातिक शब्द काम में लेते हैं।
(राजस्थान पत्रिका से साभार)
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