अक्षर यात्रा की कक्षा में ल वर्ण पर चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने कहा- "एकाक्षरी कोश" में छुई-मुई के पौधे के लिए लज्जा शब्द का प्रयोग हुआ है। एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी, हमने तो लज्जा शब्द का अर्थ शर्मीलापन पढ़ा है। फिर छुई-मुई के पौधे को लज्जा क्यों कहा गया
आचार्य ने बताया- कालिदास, भतृüहरि और अमर सिंह के "अमरकोश" में लज्जा का अर्थ संकोच, विनम्रता और संयमन के रू प में प्रयुक्त हुआ है। लज्जा का अर्थ शर्म या हया है। एक सुभाषित में कहा गया है- "कामातुराणां, न भयम् न लज्जा"। यानी कामाकुल व्यक्ति को न तो डर होता है और न किसी की शर्म। "नाटकशकुंतला" में "श्ृंगारलज्जां निरूपयति"। यानी श्ृंगार लज्जा से आवरित होता है। इसलिए लज्जा का एक अर्थ सजी हुई सुन्दरी पर पर्दा डालना है। शालीन और शर्मीले को लज्जाशील अथवा लज्जालु कहते हैं। छुई-मुई के पौधे को लज्जा अथवा लज्जालु इसलिए कहा है क्योंकि उसका स्पर्श करते ही वह संकुचित होने, सिमटने और मुरझाने लगता है। ढीठ, बेशर्म और अविनित को लज्जाहीन कहा है। लाज अथवा लज्जा को स्त्री का आभूषण कहा गया है।
आचार्य ने बताया- "वृक्षायुर्वेद" में बेल और फैलने वाले पौधे के अर्थ में लता शब्द का प्रयोग मिलता है। शाखा को भी लता कहते हैं। सौन्दर्य, कोमलता और पतलेपन को प्रकट करने के लिए समास के अन्त में लता शब्द का प्रयोग किया जाता है। भुजलता, बाहुलता, भ्रूलता और विद्युल्लता शब्द इसके उदाहरण है। सुन्दर स्त्री और मोतियों की लड़ को भी लता कहते हैं। कोड़े के अर्थ में भी लता शब्द प्रयुक्त है। फूल को लतान्त और बेल पत्तों से बनी कुटिया को लताकुंज कहा गया है। सांप को लताजिह्व और आलिंगन के लिए लतावेष्ट शब्द काम में लिया जाता है। प्राप्त और अवाप्त के अर्थ में लब्ध शब्द का प्रयोग "रघुवंश" में देखा जा सकता है। बात कहने के उचित अवसर को लब्धावकाश कहते हैं। इसका अर्थ कार्यालय से छुट्टी मिलना भी है।
आचार्य ने बताया- "तंत्रशास्त्र" के अनुसार जिस साधक को अभिष्ट सिद्धि मिल गई है उसे लब्धकाम कहते हैं। लाभ और फायदे के अर्थ में लब्धि शब्द का प्रयोग मिलता है। विद्वान और बुद्धिमान को लब्धवर्ण कहा है। "जैन आगमों" में लब्धि शब्द का प्रयोग सिद्धि के अर्थ में मिलता है। फसल की लुनाई, कटाई और पके अनाज के संग्रहण को लव कहते हैं। "लावनी" शब्द इसी अर्थ का द्योतक है। अनुभाग, खण्ड, कवल और ग्रास के अर्थ में भी लव शब्द काम में लिया गया है। कण, बून्द और अल्प मात्रा के अर्थ में भी लव शब्द का प्रयोग होता है। "ज्योतिषशास्त्र" में समय के सूक्ष्म विभाग को लव कहा गया है। लव निमेष का छठा भाग होता है। हानि और विनाश के अर्थ में भी लव शब्द का प्रयोग मिलता है। लौंग और जायफल को भी लव अथवा लवंग कहते हैं। "रामायण" में राम के यमज यानी जुड़वा पुत्रों में से एक का नाम लव था। सभास्थल पर रामायण का सबसे पहले पाठ करने वाले यमज- लव-कुश थे।
आचार्य ने बताया- पुराणों में 7 समुद्रों में से एक का नाम लवणसमुद्र है। "ब्रह्मवैवत्तüपुराण" के अनुसार श्रीकृष्ण की पत्नी विरजा के गर्भ से सात पुत्र जन्मे। इन्हीं के नाम से सात समुद्र हुए। इनमें से एक बालक के रोने से विरजा को संताप हुआ। विरजा के शाप से वह पुत्र नमकीन पानी का समुद्र हो गया, जिसे "लवणसमुद्र" कहा गया। लाक्षणिक अर्थ में निरन्तर रोने वाले को लवणसमुद्र कहते हैं क्योंकि आंसुओं का स्वाद नमकीन है। पुराणों में इन सात समुद्रों की उत्पत्ति राजा सगर के पुत्रों के खोदने से या राजा प्रियव्रत के रथ के चलने से जो गड्ढे बने, उनसे बताई है। नमक की खान को लवणाकर कहते हैं। सुन्दर स्त्री को भी लवणाकर अथवा लावण्यवती कहा है। "पkपुराण" में भगवती सीता का एक नाम लाक्षकी है। लाख को लाक्षा कहते हैं। अति ज्वलनशील लाख से बने घर को महाभारत में लाक्षागृह कहा गया। दुर्योधन आदि कौरव राजकुमारों ने षड्यंत्रपूर्वक ऎसा गृह बनवाया जिसमें आग लगाकर माता कुन्ती और पांचों पाण्डवों की हत्या का प्रयास किया था। "रघुवंश" में चिह्न और निशान के अर्थ में लांछन शब्द प्रयुक्त है। नाम, संज्ञा, विशेषण के अर्थ में भी लांछन शब्द प्रयुक्त है। चंद्रमा के बीच के काले धब्बे को भी लांछन कहा गया है। कलंक के लिए भी लांछन शब्द प्रयुक्त है। श्रीकृष्ण के ह्वदय पर अंकित श्रीवत्स को भी लांछन कहते हैं। यह लांछन भृगु ऋषि द्वारा विष्णु की छाती पर पाद प्रहार से बना था। सीमांत पर लगे पत्थर के अर्थ में भी लांछन शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन साहित्य में तीर्थकर के प्रतीक चिह्नों के लिए लांछन शब्द प्रयुक्त है।
आचार्य ने बताया- कालिदास, भतृüहरि और अमर सिंह के "अमरकोश" में लज्जा का अर्थ संकोच, विनम्रता और संयमन के रू प में प्रयुक्त हुआ है। लज्जा का अर्थ शर्म या हया है। एक सुभाषित में कहा गया है- "कामातुराणां, न भयम् न लज्जा"। यानी कामाकुल व्यक्ति को न तो डर होता है और न किसी की शर्म। "नाटकशकुंतला" में "श्ृंगारलज्जां निरूपयति"। यानी श्ृंगार लज्जा से आवरित होता है। इसलिए लज्जा का एक अर्थ सजी हुई सुन्दरी पर पर्दा डालना है। शालीन और शर्मीले को लज्जाशील अथवा लज्जालु कहते हैं। छुई-मुई के पौधे को लज्जा अथवा लज्जालु इसलिए कहा है क्योंकि उसका स्पर्श करते ही वह संकुचित होने, सिमटने और मुरझाने लगता है। ढीठ, बेशर्म और अविनित को लज्जाहीन कहा है। लाज अथवा लज्जा को स्त्री का आभूषण कहा गया है।
आचार्य ने बताया- "वृक्षायुर्वेद" में बेल और फैलने वाले पौधे के अर्थ में लता शब्द का प्रयोग मिलता है। शाखा को भी लता कहते हैं। सौन्दर्य, कोमलता और पतलेपन को प्रकट करने के लिए समास के अन्त में लता शब्द का प्रयोग किया जाता है। भुजलता, बाहुलता, भ्रूलता और विद्युल्लता शब्द इसके उदाहरण है। सुन्दर स्त्री और मोतियों की लड़ को भी लता कहते हैं। कोड़े के अर्थ में भी लता शब्द प्रयुक्त है। फूल को लतान्त और बेल पत्तों से बनी कुटिया को लताकुंज कहा गया है। सांप को लताजिह्व और आलिंगन के लिए लतावेष्ट शब्द काम में लिया जाता है। प्राप्त और अवाप्त के अर्थ में लब्ध शब्द का प्रयोग "रघुवंश" में देखा जा सकता है। बात कहने के उचित अवसर को लब्धावकाश कहते हैं। इसका अर्थ कार्यालय से छुट्टी मिलना भी है।
आचार्य ने बताया- "तंत्रशास्त्र" के अनुसार जिस साधक को अभिष्ट सिद्धि मिल गई है उसे लब्धकाम कहते हैं। लाभ और फायदे के अर्थ में लब्धि शब्द का प्रयोग मिलता है। विद्वान और बुद्धिमान को लब्धवर्ण कहा है। "जैन आगमों" में लब्धि शब्द का प्रयोग सिद्धि के अर्थ में मिलता है। फसल की लुनाई, कटाई और पके अनाज के संग्रहण को लव कहते हैं। "लावनी" शब्द इसी अर्थ का द्योतक है। अनुभाग, खण्ड, कवल और ग्रास के अर्थ में भी लव शब्द काम में लिया गया है। कण, बून्द और अल्प मात्रा के अर्थ में भी लव शब्द का प्रयोग होता है। "ज्योतिषशास्त्र" में समय के सूक्ष्म विभाग को लव कहा गया है। लव निमेष का छठा भाग होता है। हानि और विनाश के अर्थ में भी लव शब्द का प्रयोग मिलता है। लौंग और जायफल को भी लव अथवा लवंग कहते हैं। "रामायण" में राम के यमज यानी जुड़वा पुत्रों में से एक का नाम लव था। सभास्थल पर रामायण का सबसे पहले पाठ करने वाले यमज- लव-कुश थे।
आचार्य ने बताया- पुराणों में 7 समुद्रों में से एक का नाम लवणसमुद्र है। "ब्रह्मवैवत्तüपुराण" के अनुसार श्रीकृष्ण की पत्नी विरजा के गर्भ से सात पुत्र जन्मे। इन्हीं के नाम से सात समुद्र हुए। इनमें से एक बालक के रोने से विरजा को संताप हुआ। विरजा के शाप से वह पुत्र नमकीन पानी का समुद्र हो गया, जिसे "लवणसमुद्र" कहा गया। लाक्षणिक अर्थ में निरन्तर रोने वाले को लवणसमुद्र कहते हैं क्योंकि आंसुओं का स्वाद नमकीन है। पुराणों में इन सात समुद्रों की उत्पत्ति राजा सगर के पुत्रों के खोदने से या राजा प्रियव्रत के रथ के चलने से जो गड्ढे बने, उनसे बताई है। नमक की खान को लवणाकर कहते हैं। सुन्दर स्त्री को भी लवणाकर अथवा लावण्यवती कहा है। "पkपुराण" में भगवती सीता का एक नाम लाक्षकी है। लाख को लाक्षा कहते हैं। अति ज्वलनशील लाख से बने घर को महाभारत में लाक्षागृह कहा गया। दुर्योधन आदि कौरव राजकुमारों ने षड्यंत्रपूर्वक ऎसा गृह बनवाया जिसमें आग लगाकर माता कुन्ती और पांचों पाण्डवों की हत्या का प्रयास किया था। "रघुवंश" में चिह्न और निशान के अर्थ में लांछन शब्द प्रयुक्त है। नाम, संज्ञा, विशेषण के अर्थ में भी लांछन शब्द प्रयुक्त है। चंद्रमा के बीच के काले धब्बे को भी लांछन कहा गया है। कलंक के लिए भी लांछन शब्द प्रयुक्त है। श्रीकृष्ण के ह्वदय पर अंकित श्रीवत्स को भी लांछन कहते हैं। यह लांछन भृगु ऋषि द्वारा विष्णु की छाती पर पाद प्रहार से बना था। सीमांत पर लगे पत्थर के अर्थ में भी लांछन शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन साहित्य में तीर्थकर के प्रतीक चिह्नों के लिए लांछन शब्द प्रयुक्त है।
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