अक्षर यात्रा की कक्षा में "श" वर्ण की चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने बताया- पत्नी का भाई श्याल और पत्नी की बहिन श्याली कहलाते हैं। एक शिष्य ने पूछा- गुरूजी श्याल तो सियार को कहते हैं।
आचार्य बोले- सही है वत्स, श्रृगाल या सियार के अर्थ में भी श्याल शब्द काम लेते हैं। साले के लिए श्यालक यानी भार्या- भ्रातृ और साली के लिए श्यालकी, श्यालिका यानी भार्या-भगिनी शब्द भी प्रयुक्त होते हैं। "शकुन्तला" सावां चावल के लिए श्यामाक या श्यामक शब्द प्रयोग करता है। "कुवलयानन्द" में कालिमा, श्यामता के अर्थ में श्यामिका शब्द दिखता है। "रघुवंश" मलिनता और धातु आदि का खोटापन के अर्थ में श्यामिका शब्द काम लेता है। कपिश, गहरा भूरे रंग का, काला, धूसर, धुमैला के अर्थ में श्याव शब्द प्रयुक्त होता है। काला और पीला मिला हुआ, लाख के रंग का, भूरा के अर्थ में भी श्याव शब्द काम लेते हैं। आम के पेड़ को श्यावतैल और प्रकृतित काले रंग वाले दांत को श्याव दन्त कहते हैं। आंख का एक रोग श्याववत्र्म कहलाता है।
आचार्य ने बताया- श्वेत, सफेद, शुक्ल के अर्थ में श्येत शब्द काम लेते हैं। मृगया और बाज पक्षी से शिकार कराने को श्येनंपाता कहते हैं। बाज और शिकरा को श्येन कहा है। सफेदी, सफेद रंग, पाण्डुर रंग, पीला रंग, हिंसा, पीले रंग के अर्थ में भी श्येन शब्द काम लेते हैं। उतावलापन, बाज जैसी फुर्ती से लपक कर किसी काम में जुटना के अर्थ में श्येनकरण शब्द प्रयुक्त करते हैं। अलग चिता पर दाह करना के अर्थ में श्येनकरणिका शब्द काम लेते हैं। बाज पकड़ कर उसे बेचने से जीवनयापन करने वाले को श्येनचित या श्येनजीवी कहते हैं। दण्डव्यूह का एक प्रकार श्येन व्यूह कहलाता है जिसमें पक्ष तथा कक्ष के सैनिकों को स्थिर रख कर उरस्य (सामने के) सैनिकों को आगे बढ़ाया जाता है। मादा बाज श्येनिका कहलाती है। जटायु को श्यैनेय कहते हैं। जाना, हिलना-जुलना, जम जाना, कुम्हलाना के अर्थ में श्यै शब्द प्रयुक्त करते हैं। "रघुवंश" श्यै शब्द का प्रयोग सूख जाना के अर्थ में करता है। एक वृक्ष का नाम श्योणाक या श्योनाक है।
आचार्य ने बताया- कोमल, मृदु, सौम्य, स्निग्ध, नरम, मनोहर के अर्थ में श्लक्षण शब्द प्रयुक्त होता है। "शिशुपाल वध" चिकना, चमकदार के अर्थ में श्लक्षण शब्द काम लेता है। अल्प, स्वल्प, महीन, पतला, सूक्ष्म, सुन्दर, सुकुमार, लावण्यमय, निश्छल, ईमानदार, सच्चा, खरा आदि भी श्लक्षण के अन्य अर्थ हैं। सुपारी, पुंगीफल को श्लक्ष्णक कहते हैं। "रघुवंश" शिथिल, विश्रांत, खुला हुआ, फिसला हुआ के अर्थ में श्लथ शब्द का प्रयोग करता है। ढीला-ढाला होना, दुर्बल होना, छूटा हुआ, बिखरा हुआ के अर्थ में भी श्लथ शब्द काम लेते हैं। "शकुन्तला" और "गंगालहरी" विश्राम करना के अर्थ में "श्लथ शब्द प्रयुक्त करते हैं। चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना, बिखरे हुए (जैसे बाल) के अर्थ में श्लथ शब्द काम लेते हैं। "कुवलयानन्द" में श्लथ लम्बिन का प्रयोग लटकता हुआ के अर्थ में दिखता है। जिसके अंग ढीले हो गए हों, उसे श्लथांग कहते हैं। व्याप्त होना, प्रविष्ट होना के अर्थ में श्लाख शब्द काम लेते हैं।
आचार्य बोले- "कुवलयानन्द" और "सुभाषित रत्नागार" के अनुसार गुणगान करना, स्तुति करना, सराहना, प्रशंसा करना के अर्थ में श्लाघ शब्द प्रयुक्त होता है। "भिकाव्य" में शेखी बघारना, घमण्ड करना के अर्थ में श्लाघ शब्द दिखता है। "सिद्धान्त कौमुदी" और "भिकाव्य" खुशामद करना, फुसलाकर काम निकालना के अर्थ में भी श्लाख शब्द काम लेते हैं। प्रशंसा, तारीफ करना, चापलूसी करना, आत्मप्रशंसी के अर्थ में श्लाघन या श्लाघा शब्द प्रयुक्त होता है। आत्मगुण कथन, अभिलाष, परिचर्या को भी श्लाघा कहते हैं। "वेणी संहार" स्तुति, सराहना तथा आत्मप्रशंसा, शेखी बघारना के अर्थ में श्लाघा शब्द काम लेता है। सेवा, कामना, इच्छा को भी श्लाघा कहते हैं। डींग मारने का अभाव के अर्थ में "रघुवंश" श्लाघा विपर्यय शब्द काम लेता है। प्रशंसा किया गया, सराहा गया, स्तुति किया गया के अर्थ में श्लाघित शब्द प्रयुक्त होता है। "उत्तररामचरित" में प्रशंसनीय, योग्य के अर्थ में श्लाघ्य शब्द दिखता है। आदरणीय, श्रद्धेय को भी श्लाघ्य कहते हैं।
आचार्य बोले- सही है वत्स, श्रृगाल या सियार के अर्थ में भी श्याल शब्द काम लेते हैं। साले के लिए श्यालक यानी भार्या- भ्रातृ और साली के लिए श्यालकी, श्यालिका यानी भार्या-भगिनी शब्द भी प्रयुक्त होते हैं। "शकुन्तला" सावां चावल के लिए श्यामाक या श्यामक शब्द प्रयोग करता है। "कुवलयानन्द" में कालिमा, श्यामता के अर्थ में श्यामिका शब्द दिखता है। "रघुवंश" मलिनता और धातु आदि का खोटापन के अर्थ में श्यामिका शब्द काम लेता है। कपिश, गहरा भूरे रंग का, काला, धूसर, धुमैला के अर्थ में श्याव शब्द प्रयुक्त होता है। काला और पीला मिला हुआ, लाख के रंग का, भूरा के अर्थ में भी श्याव शब्द काम लेते हैं। आम के पेड़ को श्यावतैल और प्रकृतित काले रंग वाले दांत को श्याव दन्त कहते हैं। आंख का एक रोग श्याववत्र्म कहलाता है।
आचार्य ने बताया- श्वेत, सफेद, शुक्ल के अर्थ में श्येत शब्द काम लेते हैं। मृगया और बाज पक्षी से शिकार कराने को श्येनंपाता कहते हैं। बाज और शिकरा को श्येन कहा है। सफेदी, सफेद रंग, पाण्डुर रंग, पीला रंग, हिंसा, पीले रंग के अर्थ में भी श्येन शब्द काम लेते हैं। उतावलापन, बाज जैसी फुर्ती से लपक कर किसी काम में जुटना के अर्थ में श्येनकरण शब्द प्रयुक्त करते हैं। अलग चिता पर दाह करना के अर्थ में श्येनकरणिका शब्द काम लेते हैं। बाज पकड़ कर उसे बेचने से जीवनयापन करने वाले को श्येनचित या श्येनजीवी कहते हैं। दण्डव्यूह का एक प्रकार श्येन व्यूह कहलाता है जिसमें पक्ष तथा कक्ष के सैनिकों को स्थिर रख कर उरस्य (सामने के) सैनिकों को आगे बढ़ाया जाता है। मादा बाज श्येनिका कहलाती है। जटायु को श्यैनेय कहते हैं। जाना, हिलना-जुलना, जम जाना, कुम्हलाना के अर्थ में श्यै शब्द प्रयुक्त करते हैं। "रघुवंश" श्यै शब्द का प्रयोग सूख जाना के अर्थ में करता है। एक वृक्ष का नाम श्योणाक या श्योनाक है।
आचार्य ने बताया- कोमल, मृदु, सौम्य, स्निग्ध, नरम, मनोहर के अर्थ में श्लक्षण शब्द प्रयुक्त होता है। "शिशुपाल वध" चिकना, चमकदार के अर्थ में श्लक्षण शब्द काम लेता है। अल्प, स्वल्प, महीन, पतला, सूक्ष्म, सुन्दर, सुकुमार, लावण्यमय, निश्छल, ईमानदार, सच्चा, खरा आदि भी श्लक्षण के अन्य अर्थ हैं। सुपारी, पुंगीफल को श्लक्ष्णक कहते हैं। "रघुवंश" शिथिल, विश्रांत, खुला हुआ, फिसला हुआ के अर्थ में श्लथ शब्द का प्रयोग करता है। ढीला-ढाला होना, दुर्बल होना, छूटा हुआ, बिखरा हुआ के अर्थ में भी श्लथ शब्द काम लेते हैं। "शकुन्तला" और "गंगालहरी" विश्राम करना के अर्थ में "श्लथ शब्द प्रयुक्त करते हैं। चोट पहुंचाना, क्षति पहुंचाना, बिखरे हुए (जैसे बाल) के अर्थ में श्लथ शब्द काम लेते हैं। "कुवलयानन्द" में श्लथ लम्बिन का प्रयोग लटकता हुआ के अर्थ में दिखता है। जिसके अंग ढीले हो गए हों, उसे श्लथांग कहते हैं। व्याप्त होना, प्रविष्ट होना के अर्थ में श्लाख शब्द काम लेते हैं।
आचार्य बोले- "कुवलयानन्द" और "सुभाषित रत्नागार" के अनुसार गुणगान करना, स्तुति करना, सराहना, प्रशंसा करना के अर्थ में श्लाघ शब्द प्रयुक्त होता है। "भिकाव्य" में शेखी बघारना, घमण्ड करना के अर्थ में श्लाघ शब्द दिखता है। "सिद्धान्त कौमुदी" और "भिकाव्य" खुशामद करना, फुसलाकर काम निकालना के अर्थ में भी श्लाख शब्द काम लेते हैं। प्रशंसा, तारीफ करना, चापलूसी करना, आत्मप्रशंसी के अर्थ में श्लाघन या श्लाघा शब्द प्रयुक्त होता है। आत्मगुण कथन, अभिलाष, परिचर्या को भी श्लाघा कहते हैं। "वेणी संहार" स्तुति, सराहना तथा आत्मप्रशंसा, शेखी बघारना के अर्थ में श्लाघा शब्द काम लेता है। सेवा, कामना, इच्छा को भी श्लाघा कहते हैं। डींग मारने का अभाव के अर्थ में "रघुवंश" श्लाघा विपर्यय शब्द काम लेता है। प्रशंसा किया गया, सराहा गया, स्तुति किया गया के अर्थ में श्लाघित शब्द प्रयुक्त होता है। "उत्तररामचरित" में प्रशंसनीय, योग्य के अर्थ में श्लाघ्य शब्द दिखता है। आदरणीय, श्रद्धेय को भी श्लाघ्य कहते हैं।
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