अक्षर यात्रा की कक्षा में प वर्ण पर चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने कहा- "एकाक्षरी कोश" के अनुसार बचाने वाले, देखभाल करने वाले और स्थिर करने वाले के अर्थ में पा शब्द का उपयोग समास के अंत में होता है जैसे- गोपा शब्द का अर्थ है गायों की देखभाल अथवा रक्षा करने वाला।
एक शिष्य ने कहा- गुरूजी, क्या गोपा शब्द से ही गोपाल शब्द बना है।
आचार्य ने कहा- गायों के रखवाले को गोपाल अथवा गोपालक कहते हैं। भाषा में ग्वाला शब्द गोपालक के अर्थ को ही अभिव्यक्त करता है। समास के अंत में पा शब्द के और भी कई अर्थ देखने को मिलते हैं, जैसे- सोमपा शब्द में पा शब्द पीने के अर्थ को प्रकट कर रहा है। इस तरह सोमपा शब्द का अर्थ हुआ सोमरस पीने वाला। चढ़ाए जाने वाले के अर्थ में अग्रेपा शब्द पा को देखा जा सकता है।
"भामिनीविलास" पीने और एक सांस में चढ़ा जाने के अर्थ में पा शब्द का उपयोग करता है। वहीं "शिशुपाल वध" में चूमने के अर्थ में पा शब्द देखा जा सकता है। उत्सव मनाने, घ्यानपूर्वक सुनने के अर्थ में भी कालिदास ने पा शब्द को प्रयोग में लिया है।
आचार्य मनु ने सौन्दर्यावलोकन के अर्थ में पा शब्द का प्रयोग किया है। वहीं हुकूमत करने और शासन करने के अर्थ में शूद्रक ने "मृच्छकटिकम्" में पा शब्द को उपयोग में लिया है।
आचार्य ने बताया- पांस शब्द को प्राय: समास के अंत में काम में लिया जाता है। इसका अर्थ कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला और दूषित करने वाला होता है। कुल-कलंक को कुलपांस कहा गया है। "महावीर चरित्त" में पौलुस्त्यकुलपांसन यानी पौलुस्त्य कुल-कलंक शब्द में इसे देखा जा सकता है। धूल, गर्द, चूरे के अर्थ में पांसु शब्द का उपयोग होता है। "रघुवंश", "ऋतुसंहार" और "याज्ञवल्क्य संहिता" इन्हीं अर्थोü में पांसु शब्द काम में लेते हैं। धूल कण, गोबर, खाद और एक प्रकार के कपूर के लिए भी पांसु शब्द का उपयोग होता है। राजमार्ग को पांसुकुली कहते हैं और धूल के ढेर को पांसुकूल कहते हैं। पांसुकूल शब्द का प्रयोग ऎसे कानूनी दस्तावेज के लिए भी होता है जो किसी व्यक्ति विशेष के नाम नहीं लिखा गया हो। एक प्रकार के नमक को पांसुक्षार कहते हैं। शिव का एक विशेषण पांसु-चंदन है यानी धूल-राख का तिलक लगाने वाला। "एकाक्षरी कोश" के अनुसार विष्णु का एक विशेषण पांसुजालिक है। पेड़ की जड़ों के पास चारों ओर से खोदकर पानी सींचने के स्थान को पांसुमर्दन और धूल की सतह को पांसुपटल कहा जाता है। मच्छर, गोमक्खी और विकलांग के अर्थ में पांसुर अथवा पांसुल शब्द का उपयोग होता है। दुश्चरित्र, लम्पट और स्वेच्छाचारी को पांसुल कहते हैं। शिव के विशेषण के अर्थ में भी पांसुल शब्द को "एकाक्षरी कोश" में देखा जा सकता है। पृथ्वी के अर्थ में पांसुला शब्द का प्रयोग होता है। व्यभिचारिणी स्त्री के लिए पांसुली शब्द काम में लिया गया है। "रघुवंश" में इसी अर्थ में पांसुली शब्द काम में लिया गया है।
आचार्य ने बताया- "मनुस्मृति" के अनुसार प्रसाधन, सेकने, उबालने और भोजन पकाने के अर्थ में पाक शब्द का प्रयोग होता है। "याज्ञवल्क्य संहिता" ने भी इन्हीं अर्थोü में पाक शब्द का प्रयोग किया है। नतीजे, परीक्षाफल और परिणाम के अर्थ में पाक शब्द का प्रयोग "कुमारसंभव" में हुआ है। "उत्तररामचरित्त" में भी इसी अर्थ का समर्थन मिलता है। पकने की क्रिया और बुढ़ापे के कारण बालों के सफेद हो जाने को भी पाक कहते हैं। उल्लू, बच्चे और एक राक्षस जिसका वध इन्द्र ने किया था के लिए भी पाक शब्द का प्रयोग होता है। रसोई को पाकशाला, पाकस्थान और पाकागार कहते हैं। पकने के लिए तैयार और विकासोन्मुख के अर्थ में पाकाभिमुख शब्द का प्रयोग होता है। कृपापरायण के अर्थ में भी पाकाभिमुख शब्द काम में लिया जा सकता है। पकाने के बर्तन को पाकपात्र और कुम्हार के आवे को पाकपुटी कहते हैं। गृहयज्ञ के लिए पाकयज्ञ शब्द का प्रयोग "मनुस्मृति" में हुआ है।
आचार्य ने बताया- "कुमारसंभव" में इन्द्र के विशेषण के अर्थ में पाकशासन शब्द का प्रयोग हुआ है। इन्द्र के पुत्र जयंत, बालि और अर्जुन के विशेषण के अर्थ में पाकशासनि शब्द का प्रयोग होता है।
आचार्य ने बताया- आग, हवा और हाथी के बुखार को पाकल कहते हैं। कूटपाकल शब्द में इस अर्थ की साफ घ्वनि सुनाई देती है। रसोइये को पाकु अथवा पाकुक कहते हैं। पाकुक शब्द की आहट अंग्रेजी के "कुक" शब्द में दिखाई देती है। जिसका अर्थ भी रसोइया होता है। पकाने योग्य, परिपक्व होने और जवाखार को पाक्य कहते हैं। कृष्ण और शुक्ल पक्ष के अर्थ में पाक्ष शब्द का प्रयोग पखवाड़े के लिए होता है। भाषा में पाक्ष से ही पाख शब्द बना है। पक्ष से सम्बद्ध, अर्धमासिक, पक्षी से सम्बद्ध किसी दल या समूह का पक्ष लेने वाला पाक्षिक कहा जाता है। तर्क विषयक अर्थ में भी पाक्षिक शब्द का उपयोग होता है। ऎच्छिक अथवा वैकल्पिक के अर्थ में भी पाक्षिक शब्द का प्रयोग होता है। बहेलिए अथवा चिड़ीमार को भी पाक्षिक कहते हैं।
एक शिष्य ने कहा- गुरूजी, क्या गोपा शब्द से ही गोपाल शब्द बना है।
आचार्य ने कहा- गायों के रखवाले को गोपाल अथवा गोपालक कहते हैं। भाषा में ग्वाला शब्द गोपालक के अर्थ को ही अभिव्यक्त करता है। समास के अंत में पा शब्द के और भी कई अर्थ देखने को मिलते हैं, जैसे- सोमपा शब्द में पा शब्द पीने के अर्थ को प्रकट कर रहा है। इस तरह सोमपा शब्द का अर्थ हुआ सोमरस पीने वाला। चढ़ाए जाने वाले के अर्थ में अग्रेपा शब्द पा को देखा जा सकता है।
"भामिनीविलास" पीने और एक सांस में चढ़ा जाने के अर्थ में पा शब्द का उपयोग करता है। वहीं "शिशुपाल वध" में चूमने के अर्थ में पा शब्द देखा जा सकता है। उत्सव मनाने, घ्यानपूर्वक सुनने के अर्थ में भी कालिदास ने पा शब्द को प्रयोग में लिया है।
आचार्य मनु ने सौन्दर्यावलोकन के अर्थ में पा शब्द का प्रयोग किया है। वहीं हुकूमत करने और शासन करने के अर्थ में शूद्रक ने "मृच्छकटिकम्" में पा शब्द को उपयोग में लिया है।
आचार्य ने बताया- पांस शब्द को प्राय: समास के अंत में काम में लिया जाता है। इसका अर्थ कलंकित करने वाला, अपमानित करने वाला और दूषित करने वाला होता है। कुल-कलंक को कुलपांस कहा गया है। "महावीर चरित्त" में पौलुस्त्यकुलपांसन यानी पौलुस्त्य कुल-कलंक शब्द में इसे देखा जा सकता है। धूल, गर्द, चूरे के अर्थ में पांसु शब्द का उपयोग होता है। "रघुवंश", "ऋतुसंहार" और "याज्ञवल्क्य संहिता" इन्हीं अर्थोü में पांसु शब्द काम में लेते हैं। धूल कण, गोबर, खाद और एक प्रकार के कपूर के लिए भी पांसु शब्द का उपयोग होता है। राजमार्ग को पांसुकुली कहते हैं और धूल के ढेर को पांसुकूल कहते हैं। पांसुकूल शब्द का प्रयोग ऎसे कानूनी दस्तावेज के लिए भी होता है जो किसी व्यक्ति विशेष के नाम नहीं लिखा गया हो। एक प्रकार के नमक को पांसुक्षार कहते हैं। शिव का एक विशेषण पांसु-चंदन है यानी धूल-राख का तिलक लगाने वाला। "एकाक्षरी कोश" के अनुसार विष्णु का एक विशेषण पांसुजालिक है। पेड़ की जड़ों के पास चारों ओर से खोदकर पानी सींचने के स्थान को पांसुमर्दन और धूल की सतह को पांसुपटल कहा जाता है। मच्छर, गोमक्खी और विकलांग के अर्थ में पांसुर अथवा पांसुल शब्द का उपयोग होता है। दुश्चरित्र, लम्पट और स्वेच्छाचारी को पांसुल कहते हैं। शिव के विशेषण के अर्थ में भी पांसुल शब्द को "एकाक्षरी कोश" में देखा जा सकता है। पृथ्वी के अर्थ में पांसुला शब्द का प्रयोग होता है। व्यभिचारिणी स्त्री के लिए पांसुली शब्द काम में लिया गया है। "रघुवंश" में इसी अर्थ में पांसुली शब्द काम में लिया गया है।
आचार्य ने बताया- "मनुस्मृति" के अनुसार प्रसाधन, सेकने, उबालने और भोजन पकाने के अर्थ में पाक शब्द का प्रयोग होता है। "याज्ञवल्क्य संहिता" ने भी इन्हीं अर्थोü में पाक शब्द का प्रयोग किया है। नतीजे, परीक्षाफल और परिणाम के अर्थ में पाक शब्द का प्रयोग "कुमारसंभव" में हुआ है। "उत्तररामचरित्त" में भी इसी अर्थ का समर्थन मिलता है। पकने की क्रिया और बुढ़ापे के कारण बालों के सफेद हो जाने को भी पाक कहते हैं। उल्लू, बच्चे और एक राक्षस जिसका वध इन्द्र ने किया था के लिए भी पाक शब्द का प्रयोग होता है। रसोई को पाकशाला, पाकस्थान और पाकागार कहते हैं। पकने के लिए तैयार और विकासोन्मुख के अर्थ में पाकाभिमुख शब्द का प्रयोग होता है। कृपापरायण के अर्थ में भी पाकाभिमुख शब्द काम में लिया जा सकता है। पकाने के बर्तन को पाकपात्र और कुम्हार के आवे को पाकपुटी कहते हैं। गृहयज्ञ के लिए पाकयज्ञ शब्द का प्रयोग "मनुस्मृति" में हुआ है।
आचार्य ने बताया- "कुमारसंभव" में इन्द्र के विशेषण के अर्थ में पाकशासन शब्द का प्रयोग हुआ है। इन्द्र के पुत्र जयंत, बालि और अर्जुन के विशेषण के अर्थ में पाकशासनि शब्द का प्रयोग होता है।
आचार्य ने बताया- आग, हवा और हाथी के बुखार को पाकल कहते हैं। कूटपाकल शब्द में इस अर्थ की साफ घ्वनि सुनाई देती है। रसोइये को पाकु अथवा पाकुक कहते हैं। पाकुक शब्द की आहट अंग्रेजी के "कुक" शब्द में दिखाई देती है। जिसका अर्थ भी रसोइया होता है। पकाने योग्य, परिपक्व होने और जवाखार को पाक्य कहते हैं। कृष्ण और शुक्ल पक्ष के अर्थ में पाक्ष शब्द का प्रयोग पखवाड़े के लिए होता है। भाषा में पाक्ष से ही पाख शब्द बना है। पक्ष से सम्बद्ध, अर्धमासिक, पक्षी से सम्बद्ध किसी दल या समूह का पक्ष लेने वाला पाक्षिक कहा जाता है। तर्क विषयक अर्थ में भी पाक्षिक शब्द का उपयोग होता है। ऎच्छिक अथवा वैकल्पिक के अर्थ में भी पाक्षिक शब्द का प्रयोग होता है। बहेलिए अथवा चिड़ीमार को भी पाक्षिक कहते हैं।
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