अक्षर यात्रा की कक्षा में "स" वर्ण की चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने बताया- संग्रह, मिलाप, मिश्रण को सन्दर्भ कहते हैं। एक शिष्य ने पूछा-गुरूजी, सन्दर्भ शब्द का प्रचलन तो ऎसे अर्थ में करते हैं जब एक ही विष्ाय के बारे में अन्यत्र भी जानकारी उपलब्ध हो, तभी तो सन्दर्भ ग्रंथ शब्द हम काम लेते हैं।
आचार्य मुस्कुरा कर बोले- इसे ही मिला कर नत्थी करना, ग्रथन करना या क्रम में रखना सन्दर्भ कहलाता है। "गीतगोविन्द" में संगति, निरन्तरता, नियमित सम्बन्ध, संलग्नता के अर्थ में भी सन्दर्भ शब्द प्रयुक्त हुआ है। "रस गंगाधर" और "उत्तरराम चरित" में संरचना, निबन्ध और साहित्यकृति के अर्थ में सन्दर्भ शब्द दिखता है। प्रसन्न करना, परितृप्त करना, आराम पहुंचाना के अर्थ में संतोष्ाण और छोड़ना, त्यागना के अर्थ में सन्त्यजन शब्द काम लेते हैं। डर, भय, आतंक के लिए सन्त्रास शब्द काम में लेने का प्रचलन है। चिमटा, संडासी को सन्दंश या सन्दर्शक कहते हैं। स्वर या वर्णो के उच्चारण में दांत भींचना भी सन्दंश कहलाता है। एक नरक का नाम भी सन्दंश है।
आचार्य ने बताया-देखना, अवलोकन, नजर डालना, ताकना, टकटकी लगाकर देखना के अर्थ में सन्दर्शन शब्द काम में लेते हैं। मिलना, एक दूसरे को देखना, दर्शन, दृष्टि, निगाह, खयाल, ध्यान के लिए भी सन्दर्शन शब्द का प्रयोग करते हैं। रस्सी, डोरी, श्ृंखला और बेड़ी को सन्दान कहते हैं। हाथी का गण्डस्थल भी सन्दान कहलाता है जहां से मद बहता है। बद्ध, कसा हुआ, बेड़ी में जकड़ा हुआ, श्ृंखलित के अर्थ में सन्दानित या सन्दित शब्द काम लेते हैं। गोशाला, गोष्ठ को सन्दानिनी कहते हैं। भगदड़, प्रत्यावर्तन के अर्थ में सन्दाव शब्द प्रयुक्त होता है। जलन,उपयोग को सन्दाह कहा है। आचार्य बोले- भ्रामक, सन्देहात्मक, अनिश्चित और सना हुआ, ढका हुआ के अर्थ में सन्दिग्ध शब्द काम लेते हैं। "मालविकाग्निमित्र" में भ्रान्त तथा विह्वल के अर्थ में सन्दिग्ध शब्द दिखता है। सशंक, प्रश्नास्पद, अव्यवस्थित, अस्पष्ट, दुरूह (जैसे वाक्य), को भी सन्दिग्ध कहते हैं। खतरनाक, जोखिम से भरा हुआ, असुरक्षित और विष्ााक्त के अर्थ में भी सन्दिग्ध शब्द प्रयुक्त करते हैं। संकेतित, इंगित किया हुआ को सन्दिष्ट कहते हैं। उक्त, वर्णित, निर्दिष्ट , सूचित के अर्थ में भी सन्दिष्ट शब्द काम लेते हैं। वादा किया हुआ, प्रतिज्ञात, जिसे सन्देश पहुंचाने का कार्य सौंपा गया हो, दूत, सन्देश वाहक, हल्कारा भी सन्दिष्ट कहलाता है। सूचना, समाचार, खबर को भी सन्दिष्ट कहा है। आचार्य ने बताया- खटोला, छोटी खाट, शय्याकुश को सन्दी कहते हैं। सुलगने वाला, प्रज्जवलित करने वाला और "उत्तरराम चरित" के अनुसार भड़काने वाला सन्दीपन कहलाता है। इसी ग्रंथ में उद्दीपक के अर्थ में भी सन्दीपन शब्द प्रयुक्त हुआ है। "ऋ तुसंहार" में सुलगाना, भड़काना, प्रज्जवलित करना, उद्दीप्त करना के अर्थ में सन्दीपन शब्द का प्रयोग दिखता है। कामदेव के बाण को भी सन्दीपन कहते हैं। प्रणोदित-उकसाया हुआ, सुलगाया हुआ, उत्तेजित और उद्दीपित के अर्थ में सन्दीप्त शब्द काम लेते हैं। दुष्ट, कमीना, कलुçष्ात किया हुआ, मलिन किया हुआ को सन्दुष्ट कहते हैं। भ्रष्ट करना, मलिन करना, विष्ााक्त करना, खराब करना, सन्दूष्ाण कहलाता है।
आचार्य बोले- सूचना, समाचार, खबर के अर्थ में सन्देश शब्द काम लेते हैं। "मेघदूत", "रघुवंश" और "कुवलयानन्द" में सन्देश, संवाद के अर्थ में तथा "शकुन्तला" में आज्ञा, आदेश के अर्थ में सन्देश शब्द का प्रयोग दिखता है। सन्देश का विष्ाय- सन्देशार्थ कहलाता है। सन्देश ही दूत, राजदूत या सन्देशवाहक को कहते हैं।
(राजस्थान पत्रिका से साभार)
आचार्य मुस्कुरा कर बोले- इसे ही मिला कर नत्थी करना, ग्रथन करना या क्रम में रखना सन्दर्भ कहलाता है। "गीतगोविन्द" में संगति, निरन्तरता, नियमित सम्बन्ध, संलग्नता के अर्थ में भी सन्दर्भ शब्द प्रयुक्त हुआ है। "रस गंगाधर" और "उत्तरराम चरित" में संरचना, निबन्ध और साहित्यकृति के अर्थ में सन्दर्भ शब्द दिखता है। प्रसन्न करना, परितृप्त करना, आराम पहुंचाना के अर्थ में संतोष्ाण और छोड़ना, त्यागना के अर्थ में सन्त्यजन शब्द काम लेते हैं। डर, भय, आतंक के लिए सन्त्रास शब्द काम में लेने का प्रचलन है। चिमटा, संडासी को सन्दंश या सन्दर्शक कहते हैं। स्वर या वर्णो के उच्चारण में दांत भींचना भी सन्दंश कहलाता है। एक नरक का नाम भी सन्दंश है।
आचार्य ने बताया-देखना, अवलोकन, नजर डालना, ताकना, टकटकी लगाकर देखना के अर्थ में सन्दर्शन शब्द काम में लेते हैं। मिलना, एक दूसरे को देखना, दर्शन, दृष्टि, निगाह, खयाल, ध्यान के लिए भी सन्दर्शन शब्द का प्रयोग करते हैं। रस्सी, डोरी, श्ृंखला और बेड़ी को सन्दान कहते हैं। हाथी का गण्डस्थल भी सन्दान कहलाता है जहां से मद बहता है। बद्ध, कसा हुआ, बेड़ी में जकड़ा हुआ, श्ृंखलित के अर्थ में सन्दानित या सन्दित शब्द काम लेते हैं। गोशाला, गोष्ठ को सन्दानिनी कहते हैं। भगदड़, प्रत्यावर्तन के अर्थ में सन्दाव शब्द प्रयुक्त होता है। जलन,उपयोग को सन्दाह कहा है। आचार्य बोले- भ्रामक, सन्देहात्मक, अनिश्चित और सना हुआ, ढका हुआ के अर्थ में सन्दिग्ध शब्द काम लेते हैं। "मालविकाग्निमित्र" में भ्रान्त तथा विह्वल के अर्थ में सन्दिग्ध शब्द दिखता है। सशंक, प्रश्नास्पद, अव्यवस्थित, अस्पष्ट, दुरूह (जैसे वाक्य), को भी सन्दिग्ध कहते हैं। खतरनाक, जोखिम से भरा हुआ, असुरक्षित और विष्ााक्त के अर्थ में भी सन्दिग्ध शब्द प्रयुक्त करते हैं। संकेतित, इंगित किया हुआ को सन्दिष्ट कहते हैं। उक्त, वर्णित, निर्दिष्ट , सूचित के अर्थ में भी सन्दिष्ट शब्द काम लेते हैं। वादा किया हुआ, प्रतिज्ञात, जिसे सन्देश पहुंचाने का कार्य सौंपा गया हो, दूत, सन्देश वाहक, हल्कारा भी सन्दिष्ट कहलाता है। सूचना, समाचार, खबर को भी सन्दिष्ट कहा है। आचार्य ने बताया- खटोला, छोटी खाट, शय्याकुश को सन्दी कहते हैं। सुलगने वाला, प्रज्जवलित करने वाला और "उत्तरराम चरित" के अनुसार भड़काने वाला सन्दीपन कहलाता है। इसी ग्रंथ में उद्दीपक के अर्थ में भी सन्दीपन शब्द प्रयुक्त हुआ है। "ऋ तुसंहार" में सुलगाना, भड़काना, प्रज्जवलित करना, उद्दीप्त करना के अर्थ में सन्दीपन शब्द का प्रयोग दिखता है। कामदेव के बाण को भी सन्दीपन कहते हैं। प्रणोदित-उकसाया हुआ, सुलगाया हुआ, उत्तेजित और उद्दीपित के अर्थ में सन्दीप्त शब्द काम लेते हैं। दुष्ट, कमीना, कलुçष्ात किया हुआ, मलिन किया हुआ को सन्दुष्ट कहते हैं। भ्रष्ट करना, मलिन करना, विष्ााक्त करना, खराब करना, सन्दूष्ाण कहलाता है।
आचार्य बोले- सूचना, समाचार, खबर के अर्थ में सन्देश शब्द काम लेते हैं। "मेघदूत", "रघुवंश" और "कुवलयानन्द" में सन्देश, संवाद के अर्थ में तथा "शकुन्तला" में आज्ञा, आदेश के अर्थ में सन्देश शब्द का प्रयोग दिखता है। सन्देश का विष्ाय- सन्देशार्थ कहलाता है। सन्देश ही दूत, राजदूत या सन्देशवाहक को कहते हैं।
(राजस्थान पत्रिका से साभार)
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