भारत के इतिहास में वाकई डा. मनमोहन सिंह सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में याद किए जाएँगे क्योकि उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है. विदेश में और देश में आने के बाद भी उन्होने साफ शब्दों में कह दिया - मूल्य निर्धारण का जिम्मा बाजार ही करेगा, जनता को तकलीफ़ होती है तो हुआ करे, आर्थिक विकास की चिंता सर्वोपरि है.
यह साफगोई किसी को भी भ्रम में नहीं रखती. मनमोहन जी जनता के लिए प्रधानमंत्री नहीं बने हैं, उनकी सारी चिंताओं में कारॅपोरेट जगत के अलावा संकटग्रस्त अमेरिका-यूरोप जगत है. आर्थिक सुधारों के जनक कभी भी अपने रास्ते से भटके नहीं- अर्थशास्त्री होने के नाते उन्हें मालूम है की महँगाई-बेरोज़गारी से कैसे निपटा जा सकता, लेकिन यह उनकी प्रतिबद्धता में शामिल नहीं है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें