रविवार, 13 मार्च 2016

आहत हैं, तो नीति बदलें

अमेरिका के कैलिफोॢनया में हुई गोलीबारी की घटना के बाद मुसलमानों के खिलाफ राजनीतिक बयानबाजी से राष्ट्रपति बराक ओबामा बेहत आहत-मर्माहत हैं. उनके बयान को विश्व से सबसे पुराने लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में देखने से सर्वथा उचित प्रतीत होता है. उन्होंने भरोसा जताया है कि आम और खास अमेरिकी, लोगों को उनकी धाॢमक आस्था के आधार पर हिंसा का शिकार नहीं बनाएगी. उन्होंने मुस्लिम समुदाय की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता भी जताई और स्पष्ट शब्दों में कहा है कि संघीय सरकार सहयोग देगी. अर्नेस्ट के माध्यम से दिए गए बयान में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साफ किया अल-कायदा और आईएस जैसे समूहों से लड़ाई विश्व के आम मुसलमानों से युद्ध नहीं है. यहां दिलचस्प एेतिहासिक सन्दर्भों की चर्चा आवश्यक है, अमेरिकी राष्ट्रपतियों के बयान, जनतांत्रिक मूल्यों की चर्चा और व्याख्याएं उनकी करनी के प्रतिकूल ही रही हैं. 
अमेरिका की वर्चस्ववादी-विस्तारवादी रणनीति दो-ध्रुवीय विश्व के समय से साफ रही हैं. तत्कालीन यूएसएसआर के समय कोल्डवार ने कई दशक पहले समूचे विश्व को दीर्घकालीन खतरे की ओर धकेल दिया था. एक ओर अरब देशों के तेल भंडार पर कब्जा करने की मुहिम और समाजवादी खेमे को कमजोर करने के लिए जो कारगुजारियां की गई थी, उससे अब लोग परिचित होने लगे हैं. अरब देशों में ईरान के शाह से लेकर मिस्त्र सीरिया आदि देशों में समर्थक शासकों और उनकी निरकुंशता के विरूद्ध जनता के विद्रोह ने अमेरिका रणनीति को प्रभावित किया और अल-कायदा आईएसआईएस जैसे संगठनों को पल्लवित-पुष्पित किया. अमेरिका के पूर्व और मौजूदा विदेश मंत्रियों सुश्री कोंडालिजा राइज और हिलेरी क्ंिलटन ने इस बात की ताईद की है कि अल-कायदा और आईएसआईएस जैसे संगठनों को अमेरिका ने अपने आॢथक हितों और वैश्विक रणनीति के तहत जन्म दिया, पाला-पोसा इस्तेमाल किया. अल-कायदा को लाल रूस को खत्म करने अहम रणनीतिक देश अफगानिस्तान में अरब देशों से भेजा, जहां तालिबान के साथ मिलकर सोवियत संघ के विरूद्ध मोर्चा लिया गया, वही अल-कायदा अमेरिका में वल्र्ड ट्रेंड सेंटर की तबाही का कारण बना. 
इतना नहीं मुस्लिम आतंकवाद शब्द को स्थापित करने के लिये सतत प्रयास चलते रहे और बीस साल बाद इस कथित आतंकवाद को विश्व-पटल पर स्थापित करने में सफलता पाई. वल्र्ड ट्रेंड सेंटर की तबाही के बाद जिस तरह से अमेरिका में मुस्लिम समुदाय के व्यवहार हुआ, जनता में नफरत फैली, मीरा नायर की फिल्म रिलक्टेंट फंडामेंटिलिस्ट बखूबी बयान करता है. इतना ही नहीं, हिंदुस्तानी सिक्ख भी सिर्फ अपनी केश-दाढ़ी के कारण हिंसा के शिकार हुए. आईएसआईएस की गतिविधियां अमेरिका-पश्चिमी हितों को साधने तक सीमित थी, जो नई मुसीबत के रूप में सामने आ गई. 
अधुनातन हथियार, भीषणतम निर्मम हत्यारों से सजी सेना अब भस्मासुर साबित हो गई है. अल-कायदा के खिलाफ लंबी जंग में अमेरिका और पश्चिमी देशों के लाखों सैनिक और अकूत धनराशि खर्च हो रही है. इसका प्रतिरोध इन्हीं देशों की जनता कर रही है. अमेरिकी गलतियों का नतीजा और स्याह पहलू यह भी है कि मुस्लिम बहुल देशों में यह कौम ज्यादा मिलिटेंट होती जा रही है, वहीं अन्य देशो में बेहद असुरक्षित महसूस कर रही है. ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया सहित यूरोपीय देशों में खूंखार आतंकी संगठनों के पैरोकार-मददगारों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है. इस दशा में अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान बेहद मानीखेज है, लेकिन दशकों से पड़ी खटास के लिए मामूली कवायद है, अगर धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने की प्रतिबद्धता दिखाई जाती है तो अमेरिका और साथी देशों को अपनी पूरी वैश्विक रणनीति को बदलने की तुरंत पहल करनी चाहिए. तमाम सामरिक विस्तारवादी गतिविधियों पर तत्काल विचार करने की आवश्यकता है.

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