अरूणाचल प्रदेश में संवैधानिक मूल्यों की रक्षा का प्रश्न खड़ा हो गया है और राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद उच्चतम न्यायालय ने भी इस मामले में गंभीर रूख अपनाते हुए केन्द्र सरकार और राज्यपाल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह की टिप्पणी की है वह लोकतंत्र और संघीय ढांचे सहित संवैधानिक मर्यादाओं पर विश्वास करने वालों को झकझोरने के लिए पर्याप्त है. देश की सबसे बड़ी अदालत का कहना है कि राज्यपाल की ओर से सभी जानकारियां क्यों नहीं दी जा रही हैं? इसके साथ ही इंटरनेट युग में वक्त मांगने पर फटकार लगाई और ई-मेल का प्रयोग कर 15 मिनट में राज्यपाल की रिपोर्ट मुहैया कराने की हिदायत दी.
पांच जजों की संविधान पीठ ने यह गंभीर सवाल भी किया है कि ‘किन हालातों में इमरजेंसी लगाई गई है, यह जानकारी हमारे लिए जरूरी है.’ गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 60 सीटों में 42 सीटें कांग्रेस ने जीती थी और बहुमत के साथ वह सत्ता पर काबिज हुई. भाजपा को 11 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि पीपुल्स पार्टी आफ अरुणाचल प्रदेश को 5 सीटें मिली थीं, और उसने बाद में कांग्रेस में विलय कर लिया था. इस तरह कांग्रेस के पास 47 विधायक थे. लेकिन विगत 16 दिसंबर को कांग्रेस के 21 बागी विधायकों ने कांग्रेसी मुख्यमंत्री नबाम तुकी के खिलाफ जाते हुए बीजेपी के 11 सदस्यों और दो निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर एक सामुदायिक केंद्र में आयोजित सत्र में विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया पर महाभियोग चलाया. इनमें 14 सदस्य वे भी थे जिन्हें एक दिन पहले ही अयोग्य करार दिया गया था. विधानसभा अध्यक्ष ने इस कदम को अवैध और असंवैधानिक बताया था. राज्य विधानसभा परिसर को स्थानीय प्रशासन द्वारा सील किए जाने के बाद इन सदस्यों ने सामुदायिक केंद्र में उपाध्यक्ष टी नोरबू थांगडोक की अध्यक्षता में तत्काल एक सत्र बुलाकर रेबिया पर महाभियोग चलाया.
इतना ही नहीं, इन लोगों ने एक और कांग्रेसी असंतुष्ट कलिखो पुल को राज्य का नया मुख्यमंत्री चुना. लेकिन गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करते हुए बागियों के सत्र में लिये गये फैसलों पर रोक लगा दी थी. इससे पहले राज्यपाल शीतकालीन सत्र बुलाने की तारीख चौदह जनवरी के बजाय सोलह दिसंबर कर दलील दी थी कि विशेष परिस्थितियों में सत्र की बैठक पहले बुलाई जा सकती है. गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इस अधिसूचना को रद्द कर दिया था.
न्यायालय का कहना था कि राज्यपाल ने सत्र बुलाने से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 174 और 175 का उल्लंघन किया है. एक राज्यपाल के लिए अदालत की एेसी टिप्पणी दशार्ती है कि वे अपने संवैधानिक दायरों का उल्लंघन कर रहे थे. निश्चित रूप से यह मामला अब उच्चतम न्यायालय के हवाले है. लेकिन इसके साथ ही देश में लोकतंत्र, संविधान और संवैधानिक मर्यादाओं की रक्षा का सवाल उठ खड़ा हुआ है. निर्वाचित सरकारों की अस्थिरता, खरीद-फरोख्त, जोड़-तोड़ से सत्ता तो हासिल की जा सकती है, लेकिन इस तरह की कार्रवाईयां लोकतंत्र को तार-तार करने वाली ही साबित होती हैं.
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