सारी सीमाएं पार कर दी फिर निर्मम हत्यारों ने, बाचा खान विश्वविद्यालय में आतंकवादियों ने सीमांत गांधी को श्रद्धांजलि देते पाकिस्तान के भविष्य होनहार छात्रों के बीच घुसकर अंधाधुंध गोलियां चलाकर दो दर्जन से ज्यादा जानें ले लीं. ये वहीं क्रूरतम लोग हैं जो पेशावर के सैनिक स्कूल में डेढ़ सौ से ज्यादा मासूम विद्याॢथयों को मार डाला था, जिनका जनाजा उठाते पाकिस्तान के उनके अभिभावकों सहित विश्व के सभी शांतिकामी लोगों का कलेजा फटा जा रहा था. बाचा खान या बादशाह खान या सीमांत गांधी पेशावर से ही थे. बाचा खान महात्मा गांधी के समकालीन स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम योद्धा थे और सत्य के आग्रही होने के साथ शांति के लिए आजीवन प्रतिबद्ध रहे.
महात्मा गांधी के दिवंगत होने के बाद भी सीमा के दोनों तरफ के लोग बादशाह खान से मिलकर अपनी साध पूरी करते थे. शांति के अग्रदूत की धरती खैबर-पख्तूनवा प्रान्त पाकिस्तान में बहुत अशांत है और आतंकी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र भी. इस हिस्से में आतंकियों द्वारा निर्दोष छात्रों को लगातार निशाना बनाना अत्यधिक चिन्ता का कारण बन गया है. भारत के मुकाबले पाकिस्तान में कई गुनी आतंकी घटनाएं होती हैं और आए दिन आम-नागरिक मारे जाते हैं. भारत की घटनाओं के लिए भी पाकिस्तान से आए दहशतगर्दों पर ही अंगुलियां उठती हैं और वहीं से प्रशिक्षित आतंकी आमतौर पर मारे या पकड़े जाते हैं. गौरतलब है कि हाल में ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी पाकिस्तान को आतंकवादियों का मददगार और पनाहगार देश के रूप में चिन्हित कर वहां के हुक्मरानों को चेतावनी दी कि अपना रवैया बदलें. भारतीय उप महाद्वीप सहित दक्षिण एशिया में आतंकी घटनाओं की वृद्धि चिंताजनक है ही, खुद पाकिस्तान इस आग से झुलस रहा है.
भले ही बांग्लादेश सहित यह देश भारत का पड़ोसी हो गया हो, रिश्तेदारी सहित सांस्कृति, भाषा, खान-पान, रहन सहन में एक जैसे हैं. खून चाहे पठानकोट में बहे या पेशावर में दर्द दोनों तरफ के लोगों को एक जैसा होता है. यह सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि दोनों देशों के शासकवर्ग जनता की भावनाओं को समझें और उन्हें तकलीफ देने वाले संगठित तंत्र का खात्मा करें. पाकिस्तान के शासक वर्ग हमेशा इस बात को दुहराते हैं कि भारत की अपेक्षा वे आतंकवाद से ज्यादा पीडि़त हैं. इस बात पर जरा भी संदेह नहीं है, परंतु आतंकी दबाव समूह का नियंत्रण भी स्वीकार कर हर दृष्टि से ढिलाई बरती जाती है और क्रूरतम लोगों वहां प्रोत्साहन मिलता है, यह भी सच्चाई है.
निश्चित रूप से पाकिस्तान में जम्हूरियत है और इंतखाब भी होते हैं. हुक्मरानों को वहां की बहुसंख्यक जनता, जो बाचा खान को दिल से चाहती है, वहीं चुनकर सत्ता सौंपती है. फिर क्यों मनुष्यता के दुश्मनों के दबाव में सरकार आती है? उन छात्रों को निशाना बनाया जाना किसी भी दृष्टि से असहनीय है जो नए विचार, ज्ञान, विज्ञान से देश के भविष्य को गढऩा चाहते हैं. अब बहुत हो चुका, अब तो सिर्फ इस बात का समय है कि सीमांत गांधी जैसे शंतिकामी महामानवों और आम-आदमी की सुनें और दहशतगर्दी को सभी अर्थों में खत्म करने अभियान चलाएं.
महात्मा गांधी के दिवंगत होने के बाद भी सीमा के दोनों तरफ के लोग बादशाह खान से मिलकर अपनी साध पूरी करते थे. शांति के अग्रदूत की धरती खैबर-पख्तूनवा प्रान्त पाकिस्तान में बहुत अशांत है और आतंकी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र भी. इस हिस्से में आतंकियों द्वारा निर्दोष छात्रों को लगातार निशाना बनाना अत्यधिक चिन्ता का कारण बन गया है. भारत के मुकाबले पाकिस्तान में कई गुनी आतंकी घटनाएं होती हैं और आए दिन आम-नागरिक मारे जाते हैं. भारत की घटनाओं के लिए भी पाकिस्तान से आए दहशतगर्दों पर ही अंगुलियां उठती हैं और वहीं से प्रशिक्षित आतंकी आमतौर पर मारे या पकड़े जाते हैं. गौरतलब है कि हाल में ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी पाकिस्तान को आतंकवादियों का मददगार और पनाहगार देश के रूप में चिन्हित कर वहां के हुक्मरानों को चेतावनी दी कि अपना रवैया बदलें. भारतीय उप महाद्वीप सहित दक्षिण एशिया में आतंकी घटनाओं की वृद्धि चिंताजनक है ही, खुद पाकिस्तान इस आग से झुलस रहा है.
भले ही बांग्लादेश सहित यह देश भारत का पड़ोसी हो गया हो, रिश्तेदारी सहित सांस्कृति, भाषा, खान-पान, रहन सहन में एक जैसे हैं. खून चाहे पठानकोट में बहे या पेशावर में दर्द दोनों तरफ के लोगों को एक जैसा होता है. यह सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि दोनों देशों के शासकवर्ग जनता की भावनाओं को समझें और उन्हें तकलीफ देने वाले संगठित तंत्र का खात्मा करें. पाकिस्तान के शासक वर्ग हमेशा इस बात को दुहराते हैं कि भारत की अपेक्षा वे आतंकवाद से ज्यादा पीडि़त हैं. इस बात पर जरा भी संदेह नहीं है, परंतु आतंकी दबाव समूह का नियंत्रण भी स्वीकार कर हर दृष्टि से ढिलाई बरती जाती है और क्रूरतम लोगों वहां प्रोत्साहन मिलता है, यह भी सच्चाई है.
निश्चित रूप से पाकिस्तान में जम्हूरियत है और इंतखाब भी होते हैं. हुक्मरानों को वहां की बहुसंख्यक जनता, जो बाचा खान को दिल से चाहती है, वहीं चुनकर सत्ता सौंपती है. फिर क्यों मनुष्यता के दुश्मनों के दबाव में सरकार आती है? उन छात्रों को निशाना बनाया जाना किसी भी दृष्टि से असहनीय है जो नए विचार, ज्ञान, विज्ञान से देश के भविष्य को गढऩा चाहते हैं. अब बहुत हो चुका, अब तो सिर्फ इस बात का समय है कि सीमांत गांधी जैसे शंतिकामी महामानवों और आम-आदमी की सुनें और दहशतगर्दी को सभी अर्थों में खत्म करने अभियान चलाएं.
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