छत्तीसगढ़ के संतुष्ट, निश्छल जीवन का राज यह माना जाता है कि यहां तमाम अभावों के बाद भी लोग तनावग्रस्त नहीं रहते. यह बात अब बीते जमाने की हो गई है. शहर ही नहीं, बल्कि सुदूर ग्राम्यांचल तक अब तनाव पसरा हुआ है. समाचारों के अवलोकन के समय सबकी जान हलक पर इसलिए आ जाती है क्योंकि उनमें बुजुर्ग मां को बेटी ने जहर देकर फांसी लगा ली, 35 वर्षीय युवक दिलीप विश्वकर्मा ने फांसी लगाकर जान दे दी, पत्नी ने दुख में कलाई काट ली, दो बहनों और भाई ने फांसी लगाकर खुदकुशी की -जैसे समाचार शामिल होते हैं. ये घटनाएं सिर्फ आज की हैं लेकिन इस तरह की हृदय-विदारक वारदातों को रोज अंजाम दिया जा रहा है. आखिर वे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से तनावग्रस्त होकर लोग अवसाद की स्थिति में पहुंचकर आत्महत्या के लिए विवश होते हैं. निश्चित रूप से किशोरवय छत्तीसगढ़ के लिए यह बेहद संवेदनशील मामला है. बहुमूल्य जीवन को खत्म करने की प्रवृत्ति शहरों तक सीमित नहीं है बल्कि इसकी व्याप्ति गांव-गांव तक है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के साथ विकास की अपनी अपेक्षाएं थी, और उस दिशा में काम भी हो रहा है लेकिन तनाव और अवसाद की स्थिति साफ इंगित करती है कि विकास में हिस्सेदारी गरीब और वंचित तबके की अभी तक सुनिश्चित नहीं हो पाई है. इस तरह की प्रवृत्तियों के लिए सामाजिक-आॢथक-राजनीतिक स्तर पर समग्र रूप से पड़ताल करने की आवश्यकता है. तीनों ही स्थितियां बहुत गहरे तक एक दूसरे से जुड़ी हैं. छग जैसे छोटे राज्य का निर्माण ही इसीलिए हुआ है कि बेहतर शासन-प्रशासन यहां के आम-आदमी को उन्मुक्त सामाजिक जीवन, बेहतर आॢथक परिस्थिति और स्वच्छ राजनीतिक माहौल उपलब्ध कराए. दुर्भाग्य से इन सभी मोर्चों पर अभी तक सकारात्मक काम नहीं हो पाया है. छग के बड़े हिस्से में अभी तक उद्योग-धंधों का विकास नहीं हुआ है, जहां रोजगार की संभावनाएं है वहां मेहनत करने वालों को सुरक्षा की गारंटी नहीं है. श्रम कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया जा सका है. गांव के खेतिहर मजदूरों को रोजगार और कृषि को फायदे का व्यवसाय बनाना तो दूर उनकी हालत बदतर ही हुई है, जिसका परिणाम कर्ज में डूबे और अकाल से त्रस्त किसानों की सिलसिलेवार आत्महत्या के रूप में सामने आ रही है. नौजवानों को रोजगार नहीं मिल रहा है, विद्याॢथयों को वांछित शिक्षा भी नहीं. स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम से भी प्रदेश पिछड़ा हुआ है. स्मार्ट कार्ड की सुविधा के बावजूद भी गंभीर मरीज के सामने पूरा परिवार असहाय होता है और बेटी विवशता में मां को जहर देकर खुदकुशी कर लेती है. आॢथक मोर्चे का तनाव घर तक आता है और जब सब रास्ते बंद मिलते हैं तो सामूहिक आत्महत्या जैसी घटना सामने आ जाती है. निश्चित रूप से यह तस्वीर हृदय विदारक ही नहीं, बेहद चिंता का विषय है. आखिर क्यों गरीब और वंचित तबके में तनाव बढ़ रहा है? इसके सामाजिक-आॢथक-राजनीतिक कारणों की पड़ताल और तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है. समाज और सरकार को व्यापक और दूरंदेशी नजरिए से इस मुद्दे को संबोधित करने की जरूरत है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें