2.5 से 1.6 डिग्री सेल्सियस के बीच तीन दिनों में बहुत कुछ सुनने को मिला- एक पहाडी कोरवा आदिवासी ने भी कहा- बिना किसी जोड़-घटा के यथावत बयान पेश है, फर्क सिर्फ हिंदी और छत्तीसगढ़ी का ही है-
मैं लुन्द्रा के घने जंगल के बीच बिहार बार्डर के नजदीक पथरटोला गाँव का पहाडी कोरवा आदिवासी जग्गू राम हूँ, रहता हूँ एक झोपडी में.
हमारे इलाके में बहुत से दलाल लोग रहते हैं,
एक दलाल मुझसे कहता है - तुम गरीब हो, कमजोर हो - राजनीति नहीं कर सकते.
मैंने कहा - मैं कहाँ से कमजोर हूँ, तुमसे तेज दौड़ता हूँ, पहाड़ों को फलांगता हूँ
बहुत मजबूत हैं मेरे हाथ-पाँव.
तुम्हारी तरह ही मेरा शरीर है, सर पर धूप-पेट में भूख है.
गरीब कैसे हो गया? मेरा खेत तुमने हड़पा है,
अब वह मुझे चाहिए- कोई सेटलमेंट नहीं करूंगा - जैसा तुम कहते हो.
क्या करोगे - चार लारी बन्दूकधारी पुलिस लेकर आओगे?
पुलिस मेरा भाई है, लेकिन तुम्हें नहीं छोडूंगा.
पेट भरने के तीर धनुष से शिकार करता हूँ,
तुमने अगर जुल्म करने, मेरा शिकार करने की कोशिश जारी रखते हो
तो मेरा तीर चलेगा सीधे तुम पर,
बताओं- कैसे हुआ मैं कमजोर-गरीब,
क्यों नहीं कर सकता राजनीति?
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