बुधवार, 11 मई 2016

भ्रष्टाचार के विरूद्ध जंग जनता लड़े

भ्रष्टाचार का जहर देश के रग-रग में समाया हुआ है और तमाम उपाय अभी तक नाकाफी ही साबित हुए हैं. जिम्मेदार देशवासियों सहित न्यायपालिका भी इस जानलेवा विषबाधा की गंभीरता से परिचित है. इसी का परिणाम है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाराजगी की चरम सीमा में जाकर भ्रष्टाचार को ‘बड़े सिर वाला राक्षस’ करार देते हुये नागरिकों से सीधा संवाद किया, साथ ही सलाह भी दी कि अब एकसाथ आकर अपनी सरकारों को बताएं कि सारी सीमाएं टूट चुकी हैं, भ्रष्टाचार की सड़ांध खत्म हो ही जानी चाहिए और सरकारों को विवश करने नागरिक असहयोग आंदोलन चलाएं, टैक्स देना बंद कर दें. लोकशाही अण्णा भाऊ साठे विकास महामंडल में 385 करोड़ रूपये के गबन की सुनवाई के दौरान न्यायपालिका की यह झल्लाहट वस्तुत: देश के हर नागरिक के आक्रोश की अभिव्यक्ति है. 
भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा से आवाजें उठती रही हैं, लेकिन समाज के प्रति दुराचरण प्रभु-वर्ग के लिए आभूषण बन गया और सिस्टम का हिस्सा बनाने की कोशिशें चलती रही हैं. हर स्तर पर भ्रष्टाचार की बातें आम बात है और तंत्र में शामिल लोगों के लिए हर आम और खास को लूटना धर्म तथा पीडि़तों के लिए नियति बन गई. इस नासूर के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर गोलबंदी अण्णा हजारे ने की, जो महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ गांधीवादी तरीके से युद्ध के प्रतीक बन गए थे. दिलचस्प बात है कि देश का चप्पा-चप्पा, हर गांव, हर शहर आंदोलन से जुड़ा और लोगों को मुखर मंच मिला. कहीं न कहीं से शुरूआत की बात उठी और सरकारी स्तर के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए जन-लोकपाल की मांग पर जोर दिया गया. इस आंदोलन में व्यवस्था पर सवाल उठाए गए और तंत्र में सुधार के लिए अरङ्क्षवद केजरीवाल ने राजनीतिक दल बनाने के साथ दिल्ली में सरकार भी बना ली. ये दोनों पड़ाव थे भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम के, लेकिन कष्टप्रद प्रक्रिया और इसके अंतर्विरोधों ने आंदोलन की निरंतरता खो दी और दिल्ली में मामला सिर्फ उम्मीदों तक सीमित है. ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल द्वारा इस साल के लिए जारी भ्रष्ट देशों की सूची में भारत को 76 वें स्थान पर रखा गया है, इस लिहाज से स्थिति सुधरी हुई दिखाई देती है. परन्तु सच्चाई यह है कि सर्वेक्षण के लिए बनाए गए मापदंडों में भारत वहीं का वहीं खड़ा है और दूसरे देशों के ज्यादा भ्रष्ट होने की मेहरबानी के चलते हम अपनी स्थिति में सुधार महसूस कर रहे हैं. यह बेहद हास्यास्पद और गंभीर स्थिति है. राजनीतिक दलों सहित संसद और सत्ता केंद्रों को भ्रष्टाचार के विरूद्ध मुहिम में हमेशा से अरूचि रही है, इसलिए संबंधित कड़े कदम किसी भी स्तर पर उठते दिखाई नहीं पड़ते. उल्टे हर कदम पर भ्रष्टाचार की बू आती है. एनडीए सरकार ने पारदॢशता को लेकर जितनी ऊंची उम्मीदों के साथ काम करना शुरू किया था, पारदॢशता की स्थिति बनाने में उतनी ही फिसड्डी साबित हुई है. न्यायपालिका की टिप्पणी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की हर स्तर पर पोल खोल दी है और इस तल्खी ने भ्रष्टाचार के विरूद्ध जनता के मिजाज को मुखर अभिव्यक्ति दी है. 

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