सोमवार, 11 नवंबर 2019

समाचारों के भी रंग होते हैं?

समाचारों के भी रंग होते हैं? काला, हरा, नीला, पीला, बैगनी, लाल, भगवा वगैरह वगैरह? शायद समाचार का अर्थ तथ्यों को बगैर तोड़े-मरोड़े यथावत रखना, अपने दृष्टिकोण से अलग रखते हुए रख देना होता है!
पैकेजिंग के बहाने दिमागी दुर्बलता और सड़ांध को परोसने का क्रम लंबे समय से जारी है।
अखबारों का पक्षकार बनना सामान्य सी बात हो चुकी है।
गोदी मीडिया -इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने तो सारे मूल्यों पद दलित कर खुद को खबरनवीसी की जिम्मेदारी से मुक्त कर लिया है पर खुद को मध्यकाल के सामंतों के चारण-भाट के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए आतुर है।
बहरहाल, आज के अखबारों के पहले पन्ने या जैकेट पर नजर डालें तो वह भगवा रंग में रंगा है। यह मात्र रंग हो सकता है, अन्य रंगों की तरह, लेकिन आरएसएस का ध्वज और 'जय श्री राम' के नाम पूरी पट्टी कौन सी कथा कह रही है?
समाचारों के प्रतुतिकरण का एक। पक्षीय हो जाना पत्रकारिता की किस श्रेणी में आएगा?
आकर्षक बनाना और पैकेजिंग का अर्थ यह तो नहीं हो सकता कि हिन्दू-मुसलमान-सिख, ईसाई, पारसी, जैनी, बौद्ध हो जाये।
तथ्यों को परोसने वाले आर्डर पर माल तैयार करने वाले हलवाई भी कैसे हो सकते हैं?
वाकई, अब कोई सोचता नहीं और भेड़चाल में ऐसा कुछ भी करने लगता है कि यह कहना पड़ता है कि "प्रभु इन्हें माफ कर देना...." अन्यथा जानबूझ ऐतिहासिक अपराध करते हैं, इस पेशे की नैतिकता की निर्मम हत्या में लिप्त रहते हैं।
समाचारों की दमदार पैकेजिंग का अर्थ क्या हो यह सब कैसे तय होगा?
वामपंथी, दक्षिणपंथी मध्यमार्गी सत्ता में आते जाते रहेंगे। कोई भी पक्ष अमरत्व हासिल नहीं कर सकता, लेकिन कुछ क्षेत्र शाश्वत होते हैं। प्रवृत्तियां स्थायी होती हैं, उसकी रक्षा देश की विविधता और धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बचाये रख सकती हैं।

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