सोमवार, 11 नवंबर 2019

जो समझ से परे है

सबसे बड़े उर्दू अखबार ‘इंकलाब’ ने ‘एक लंबे इंतजार के बाद’ नामक शीर्षक से लिखे अपने संपादकीय में लिखा कि जो फैसला आया है, उसे स्वीकार करने का करने का ही एक मात्र विकल्प था। लेकिन अब उम्मीद की आखिरी लौ भी अब बुझ गई है। अखबार ने लिखा कि निराशा की भावना खत्म नहीं होगी। इसमें सवालिया लहजे में कहा गया है, “यह एकमात्र बिंदु है जो समझ से परे है। यदि मस्जिद वहां थी, तो फैसला इसके पक्ष में क्यों नहीं आया?”
इंकलाब लिखता है, “फैसला सबूतों के बजाय परिस्थितियों पर आधारित है।” अखबार ने मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने पर भी सवाल उठाए हैं। इसमें कहा गया है,”अदालत ने फैसला सुनाया है कि मुसलमानों को भी नुकसान के मुआवजे के रूप में जमीन दिए जाने का अधिकार है, (लेकिन) समय और स्थान तय नहीं किया गया है। जबकि इसके विपरीत मंदिर बनाने के लिए सरकार ने तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने को कहा है। असंतोष इस बात का है कि 6 दिसंबर 1992 तक लोगों को दिखाई देने वाली मस्जिद के लिए कोई ठोस और विशेष निर्णय नहीं लिया गया।”

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