शनिवार, 12 नवंबर 2011

शकुन्तला यानी पक्षियों से पोषित

अक्षर यात्रा की कक्षा में "श" वर्ण की चर्चा जारी रखते हुए आचार्य पाटल ने कहा- "मेघदूत" में योग्य होने, सक्षम होने और सबल होने के अर्थ में शक् शब्द का प्रयोग मिलता है। एक शिष्य ने पूछा- "गुरूजी मैं यह काम कर सकता हूं।" शक् शब्द भी इस वाक्य में प्रयुक्त "सकने" के अर्थ को प्रकट करता है?
आचार्य ने कहा- हां वत्स, कालिदास और मनु ने शक् अथवा शक्त का प्रयोग "कर सकने" के अर्थ में किया है। इसलिए "सकना" शब्द शक् के अर्थ का वाहक है। सीखने के अर्थ में भी शक् शब्द प्रयुक्त है। राजा शालिवाहन को शक राज कहा गया है। शक संवत् इसी राजा के नाम से प्रचलित है। शक संवत् ईसाई कलेण्डर से 78 वर्ष बाद आरम्भ हुआ। एक देश और जनजाति का नाम भी शक है। "मनुस्मृति" में पौण्ड्रक के साथ शक शब्द का प्रयोग मिलता है। राजा विक्रमादित्य को शकारि कहा गया है। शकों का विनाश विक्रम ने ही किया था।

आचार्य ने बताया- "पंचतंत्र" में गाड़ी और छकड़े के अर्थ में शकट शब्द का प्रयोग मिलता है। "याज्ञवल्क्य संहिता" में भी शकट शब्द भार ढोने वाले वाहन के अर्थ में है। "मनुस्मृति" और "महाभारत" में एक व्यूह का नाम शकट व्यूह है। गाड़ी भर बोझ के अर्थ में भी शकट शब्द का प्रयोग होता है। 2000 पल के बराबर एक गाड़ी का बोझ माना गया है। पुराणों में एक राक्षस का नाम शकट था। शकटासुर का वध श्रीकृष्ण ने किया। कृष्ण का एक विशेषण शकटारि है। "ज्योतिषशास्त्र" में रोहिणी नक्षत्र को भी शकट कहा गया है। इस नक्षत्र का आकार छकड़े की तरह है। छोटी गाड़ी अथवा माटी की खिलौना गाड़ी को शकटिका कहा गया है। "मृच्छकटिका" शब्द इसका उदाहरण है।

आचार्य ने बताया- राजा के साले को शकार कहते हैं। इसे राज दरबार में उच्च पद प्राप्त होता था। शूद्रक रचित "मृच्छकटिकम्" में शकार का चरित्र चित्रण देखा जा सकता है। "साहित्यदर्पण" इस उपहासास्पद व्यक्तित्व का वर्णन करता है- "मदमूर्खताभिमानी दुष्कुलतैश्वयैसंयुक्त:। सोùयमनूढ़ाभ्राता राज्ञ: श्याल: शकार इत्युक्त:।।" यानी अहंकारी, मूर्ख और निम्न कोटि का आदमी राजा का साला होने से शकार कहा गया है। मुगल दरबारों में शकारों का बोलबाला था। अकबर और बीरबल के किस्सों में बादशाह के ऎसे ही मूर्ख साले का वर्णन है।

आचार्य ने बताया- "याज्ञवल्क्य संहिता" में एक पक्षी का नाम शकुन है। मिथकीय अवधारणा में एक ऎसे पक्षी का वर्णन है, जो शुभाशुभ को अपनी बोली से प्रकट करता है। पक्षियों की बोली के जानकार को शकुनविद् कहते हैं। शकुन विद्या का जानकार पक्षी की बोली के अनुसार फल कथन करता है। धीरे-धीरे शकुन शब्द शुभाशुभ बताने वाले चिह्नों के अर्थ को प्रकट करने लगा। भारत में हर कार्य के लिए शुभ शकुन लेने का रिवाज है। अशुभ संकेतों को अशुभ शकुन कहा गया है। शकुन विद्या का वर्णन शकुन शास्त्र में मिलता है। सभी देशों के रीति-रिवाजों में शकुन सम्बन्धी वर्णन मिलते हैं। शकुन शब्द से ही "सगुन" शब्द बना है। "उत्तररामचरित" में मुर्गे के लिए शकुनि शब्द प्रयुक्त है। "महाभारत" में गांधारराज सुबल के पुत्र का नाम शकुनि था। शकुनि दुर्योधन का मामा था। इसने दुर्योधन को अनेक दुरभि:संधियों से परिचित कराया। कई षड्यंत्र सिखाए। आज भी ऎसे रिश्तेदार या मित्र को शकुनि कहते हैं जिसका परामर्श बर्बादी की वजह बनता है। गलत चाल को शकुनि चाल कहते हैं।

आचार्य ने बताया- कालिदास ने शकुन्त पक्षी का वर्णन किया है। शकुन्त पक्षी नीलकंठ के रू प में जाना गया है। छत्तीसगढ़ में नीलकंठ सगुन पक्षी के रू प में विख्यात है। दशहरे के दिन नीलकंठ केदर्शन पूरे वर्ष के लिए शुभ शकुन माना गया है। राजस्थान में भी "सुगनचिड़ी" की मान्यता है। "सुगनचिड़ी" के रू प में "रू पारेल" पक्षी विख्यात है।

आचार्य ने बताया- मेनका अप्सरा से उत्पन्न विश्वामित्र की पुत्री का नाम शकुन्तला है। मेनका जब स्वर्ग गई तो अपनी नवजात बेटी को एकान्त जंगल में छोड़ गई। जंगल में पक्षियों ने इसका पालन-पोषण किया, इसीलिए इसका नाम शकुन्तला पड़ा। शकुन्तला महर्षि कण्व को मिली। कण्व ने अपनी पुत्री के रू प में पाला। राजा दुष्यन्त ने अपनी पत्नी बनाने के लिए शकुन्तला से गांधर्व विवाह किया। शकुन्तला के पुत्र भरत थे। भरत चक्रवर्ती राजा बने। एक मान्यता के अनुसार भरत के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष प्रचलित हुआ।

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