देश के अलग-अलग हिस्सों में बच्चा चोरी के शक में भीड़ लोगों को पीट-पीटकर मार डाल रही है. इतिहास के पन्नों में असुरक्षित और अशिक्षित समाज में परिस्थितिजन्य घटनाओं के कारण के कारण भीड़ को हिंसक होते देखा गया है. लेकिन अब हिंसक भीड़ अपनी करनी को छिपाने के लिए एेसी घटनाओं को परिस्थितिजन्य बनाने की कोशिश करती नजर आ रही है, जो चिंता का विषय है. छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, त्रिपुरा, सहित अनेक राज्यों में भीड़ द्वारा अनजान लोगों को बिना जाने-समझे मार डाला गया. भीड़ ने उन लोगों को भी नहीं छोड़ा, जो अफवाह रोकने को उद्देश्य से उस स्थान तक पहुंचे थे. भीड़ को हिंसक बनाने के पीछे कई मनोवृत्तियां एक साथ कार्य करती हैं. पहला तो यही कि समाज में बेरोजगारी और आॢथक विषमताएं तेजी से फैल रही हैं, उन्हें दूर करने की कोई नीति नहीं है. एेसे में सत्ता प्रतिष्ठानों के प्रति जो गुस्सा है, उसके कारण भी कभी-कभी लोग हिंसक हो रहे हैं. इसके अलावा एक छोटा तबका राजनीति के इशारे पर समाज को बुनियादी समस्याओं से भटकाने के लिए अनावश्यक और जान-बूझकर जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्रीयता के नाम पर हिंसक बना रहा है. बच्चा चोरी के नाम से हिंसा की घटनाओं से यह सवाल उठता है कि आखिरकार लोग सच जानने का प्रयास क्यों नहीं करते? तथ्य यह भी है कि अपेक्षाकृत पिछले इलाकों में काफी समय से सोशल मीडिया पर बच्चे चुराने वाले गिरोहों के सक्रिय होने की अफवाह फैलाई जा रही थी. इसके चलते भी बाहरी लोगों पर संदेह गहरा हो जाता है. हर साल इसके आंकड़े बढ़े हुए ही दर्ज होते हैं, पर तमाम दावों के बावजूद प्रशासन इस पर नकेल कसने में नाकाम रहता है. गरीब और आदिवासी इलाकोंसे बच्चे चुराना या उनके माता-पिता को बरगला कर शहरों में काम दिलाने के नाम पर ले जाया जाता है. आदिवासी इलाकों की बच्चियों को महानगरों में ले जाने की घटनाएं अनेक बार प्रकाश में आ चुकी हैं, और उन बच्चियों का कोई अता-पता नहीं चल पाया है. इस पृष्ठभूमि में अफवाहें लोगों के मन में गहरे तक धंसे शक को हिंसक रूप दे देती हैं. भीड़ द्वारा जान लेने की घटनाओं के पीछे आदमखोर अफवाहों का बड़ा हाथ होता है. लेकिन सवाल यह भी है कि लोगों का भीड़ में बदलना और कातिल हो जाना विकास का कैसा मुकाम है? सभ्य होते समाज को पीछे धकेलने के लिए सक्रिय अफवाह तंत्र को सामाजिक-राजनीतिक नवाचार के रूप में स्वीकार करना जिम्मेदार लोगों की सबसे बड़ी भूल नहीं है? इस तरह की घटनाएं चिंतित करती हैं तथा समाज को हिंसक बनाने वाले तत्वों के लिए पोषक होती हैं. घटनाओं के वक्त खामोश हो जाने वाली पुलिस और बौने लगने वाले कानून भी समस्या बन जाते हैं. यह सबकी जिम्मेदारी है कि सामाजिक विवेक को जागृत रखें ताकि अनावश्यक हिंसा की आग से समाज बच सके.
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