राजधानी दिल्ली में एक ही परिवार के 11 सदस्यों की मौत की घटना स्तब्ध कर देेने वाली है. विस्तृत जांच के बाद ही पता चलेगा कि यह मामला क्या है, लेकिन विवेचना में मिल रहे संकेतों के अनुसार धर्म-कर्म या गुरु-तांत्रिक के प्रभाव में आकर उठाया गया कदम बताया जा रहा है. सभी शवों के पोस्टमार्टम से भी यह बात सामने आई है कि एक ही तरह से मरने वाले परिवार के सदस्य आध्यात्मिक उपलब्धि, चमत्कार अथवा मोक्ष प्राप्त करना चाहते थे. यह अजीब खेल कुछ इस तरह का है कि 77 साल की वृद्धा से लेकर किशोरवय बच्चों ने भी मौत को गले लगा लिया. इस परिवार की पृष्ठभूमि मिलनसार तथा एक-दूसरे से सुख-दुख बांटने की थी. परिवार की एक उच्च शिक्षित लडक़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करती थी. यह सारे समाज के लिए हृदय विदारक घटना है, लेकिन एेसा प्रतीत होता है कि पूरे परिवार की सामूहिक आत्महत्या के लिए कई दिनों से तैयारी चल रही थी. अंधविश्वास का आवेग विवेक खत्म कर देता है और चमत्कार की उम्मीद भरे-पूरे घर को श्मशान में तब्दील कर देती है. अंधविश्वास पुराने दौर की मान्यताओं और आधुनिकता के प्रति अज्ञान से ही पैदा होता है. देश के हर क्षेत्र में अंधविश्वास का बोलबाला है और धार्मिक रूढिय़ों को तोडऩे में शिक्षित वर्ग भी विवेक का इस्तेमाल करने से डरता हैं. आधुनिक विचारों और जीवन शैली को अपनाने के बाद भी धर्मभीरुता विवेक व तर्कशक्ति को कमजोर कर देती है. समाज की धार्मिक प्रवृत्ति का लाभ लेने के लिए एक बड़ी फौज हमेशा से सक्रिय रही है, जो तार्किकता के विरूद्ध मोर्चा ले रही है. ग्रामीण, अर्धशिक्षित इलाकों में तरह-तरह की भ्रांत मान्यताओं की भरमार है तथा लोग विशेष किस्म के मनोविकार से ग्रस्त पाए जाते हैं. डायन के नाम पर हत्या जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने के साथ ही दैनंदिन जीवन में भी व्याधियों के लिए ओझाओं, गुरुओं का सहारा लेना आम बात है. शहरी इलाके में इस मानसिकता में भले ही कमी आई हो, लेकिन यहां भी बहुतेरे लोग अंधविश्वासी ही हैं. समाज में वैज्ञानिक और तार्किक चेतना के प्रसार के लिए प्रयास बेहद कम हो रहे हैं. दूसरी तरफ राजनीतिक नफा-नुकसान के लिए अतीत के ज्ञान का महिमा मंडन सहित प्रतिगामी विचारों को पालने-पोसने का काम निरंतर चल रहा है. यह दुखद है कि किसी मनो-चिकित्सक का मरीज समाज के बड़े वर्ग में चमत्कार के रूप में प्रतिष्ठित और पूजित हो जाता है. दिल्ली की घटना के संदर्भ में जितने भी तथ्य सामने आ रहे हैं, सबके संकेत अंधविश्वास अथवा चमत्कार के ही हैं. विज्ञान की चरम उपलब्धियों के युग में यह मानसिक दशा चिंतनीय है कि एक परिवार के 11 सदस्यों की किसी मोक्ष या चमत्कार की उम्मीद में मौत हो जाए. यह स्थिति बदलनी ही चाहिए जिसके लिए वैज्ञानिक चेतना सम्पन्न समाज बनान का प्रयास ही उपाय हो सकता है.
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