सवाल ही सवाल.........
कोंडागाँव में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ की मंत्री के घर में पहुँचकर सुरक्षा गार्ड को गोली मार दिया और रायफल लेकर फरार भी हो गए. बात समझ में नहीं आती. समूचे बस्तर में अब प्रशासन, पुलिस, अर्ध सैनिक बल वाले क्या कर रहे हैं. कलेक्टर को उठाकर ले गए, आये दिन लोग अगवा हो रहे हैं, सीआपीएफ के सात लोग मारे गए, नक्सली कहीं भी कभी भी बसों को रोककर तलाशी लेते हैं. बंद का आह्वान करते हैं तो समूचा बस्तर थम जाता है.
कलेक्टर अपहरण प्रकरण में टीवी चैनलों में जो दिखा, बड़ा अनोखा था. सशस्त्र बल का ठिकाना एक पूरे किले की तरह लग रहा था जहां सुरक्षा के सारे इंतजाम थे, नक्सली आराम से हथियार लेकर, तीर-कमान सहित और खाली हाथ आजाद खुले स्थानों पर बिना भय के घूमते दिखाई पड़े. सवाल उठना स्वाभाविक है कि नक्सली उत्पात कैसे रूकेगा जब सुरक्षित ठिकानों में बल रहेंगे और बाहर निकले तो मार दिए जायेंगे. अभी तक यही पता चल रहा था कि नक्सलियों के ठिकाने दुर्गम जगह है, लेकिन शहर में घुसकर मंत्री का घर निशाना बनता है तो यह भ्रम भी टूट जाता है.
बलों, जवानों सहित अधिकारियों को हर बार निर्देश मिलते हैं कि सावधानी बरतें और नक्सलियों का निशाना बनकर जान न गवाएं, सही भी है- पुलिस, विशेष बल में कोई भी आदमी नौकरीकर वेतन लेने और परिवार पालने आया है, जान गंवाने नहीं. लेकिन हिंसा का तांडव कैसे रूकेगा? क्या इस पर कोई चिंतन हो सकता है, यदि उत्तर हाँ है तो यह अभी तक यह नहीं हुआ है. नक्सली छत्तीसगढ़ में रक्तबीज की तरह बढ़ रहे हैं, इसके कारणों की पड़ताल कब होगी..? कब यह सोचा जाएगा कि जंगलों में रहने वाले लोग दलम और नक्सली संगठनों में शामिल होते रहेंगे या उनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन करते रहेंगे.
मुझे याद आ रहा है कि हेलीकाप्टर दुर्घटना में मारे तत्कालीन मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी उस इलाके के दौरे पर थे जो नक्सल प्रभावित है और रवानगी के पूर्व कहा था कि वहां के लोगों को राशन कार्ड, पेयजल आदि की असुविधा को दूर करने जा रहा हूँ, इस बात का मेरे लिए गहरा मतलब है. आन्ध्र की सरकारों ने नक्सलियों से लड़ने के साथ उनसे बात भी की, खुले में सभा करने की छूट दी, लेकिन अपना सारा ध्यान जनता पर लगाया था और जनता का समर्थन सरकार को मिला. फलस्वरूप नक्सली बस्तर, ओडीसा आदि जगहों में कूच कर गए, हो सकता है यह मेरी कल्पना ही हो, लेकिन आन्ध्र में नक्सली तांडव सुनाई नहीं पड़ता बल्कि वह छग, विदर्भ, ओडीसा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि जगहों में स्थानांतरित हो गया है. क्या देश के नक्सल प्रभावित राज्यों की सरकारें जनता के साथ नहीं हैं..? यदि हैं तो नक्सली दिन दूनी रात चौगुनी गति से क्यों बढ़ रहे हैं.....?
कोंडागाँव में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ की मंत्री के घर में पहुँचकर सुरक्षा गार्ड को गोली मार दिया और रायफल लेकर फरार भी हो गए. बात समझ में नहीं आती. समूचे बस्तर में अब प्रशासन, पुलिस, अर्ध सैनिक बल वाले क्या कर रहे हैं. कलेक्टर को उठाकर ले गए, आये दिन लोग अगवा हो रहे हैं, सीआपीएफ के सात लोग मारे गए, नक्सली कहीं भी कभी भी बसों को रोककर तलाशी लेते हैं. बंद का आह्वान करते हैं तो समूचा बस्तर थम जाता है.
कलेक्टर अपहरण प्रकरण में टीवी चैनलों में जो दिखा, बड़ा अनोखा था. सशस्त्र बल का ठिकाना एक पूरे किले की तरह लग रहा था जहां सुरक्षा के सारे इंतजाम थे, नक्सली आराम से हथियार लेकर, तीर-कमान सहित और खाली हाथ आजाद खुले स्थानों पर बिना भय के घूमते दिखाई पड़े. सवाल उठना स्वाभाविक है कि नक्सली उत्पात कैसे रूकेगा जब सुरक्षित ठिकानों में बल रहेंगे और बाहर निकले तो मार दिए जायेंगे. अभी तक यही पता चल रहा था कि नक्सलियों के ठिकाने दुर्गम जगह है, लेकिन शहर में घुसकर मंत्री का घर निशाना बनता है तो यह भ्रम भी टूट जाता है.
बलों, जवानों सहित अधिकारियों को हर बार निर्देश मिलते हैं कि सावधानी बरतें और नक्सलियों का निशाना बनकर जान न गवाएं, सही भी है- पुलिस, विशेष बल में कोई भी आदमी नौकरीकर वेतन लेने और परिवार पालने आया है, जान गंवाने नहीं. लेकिन हिंसा का तांडव कैसे रूकेगा? क्या इस पर कोई चिंतन हो सकता है, यदि उत्तर हाँ है तो यह अभी तक यह नहीं हुआ है. नक्सली छत्तीसगढ़ में रक्तबीज की तरह बढ़ रहे हैं, इसके कारणों की पड़ताल कब होगी..? कब यह सोचा जाएगा कि जंगलों में रहने वाले लोग दलम और नक्सली संगठनों में शामिल होते रहेंगे या उनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन करते रहेंगे.
मुझे याद आ रहा है कि हेलीकाप्टर दुर्घटना में मारे तत्कालीन मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी उस इलाके के दौरे पर थे जो नक्सल प्रभावित है और रवानगी के पूर्व कहा था कि वहां के लोगों को राशन कार्ड, पेयजल आदि की असुविधा को दूर करने जा रहा हूँ, इस बात का मेरे लिए गहरा मतलब है. आन्ध्र की सरकारों ने नक्सलियों से लड़ने के साथ उनसे बात भी की, खुले में सभा करने की छूट दी, लेकिन अपना सारा ध्यान जनता पर लगाया था और जनता का समर्थन सरकार को मिला. फलस्वरूप नक्सली बस्तर, ओडीसा आदि जगहों में कूच कर गए, हो सकता है यह मेरी कल्पना ही हो, लेकिन आन्ध्र में नक्सली तांडव सुनाई नहीं पड़ता बल्कि वह छग, विदर्भ, ओडीसा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि जगहों में स्थानांतरित हो गया है. क्या देश के नक्सल प्रभावित राज्यों की सरकारें जनता के साथ नहीं हैं..? यदि हैं तो नक्सली दिन दूनी रात चौगुनी गति से क्यों बढ़ रहे हैं.....?
नक्सली दिन दूनी रात चौगुनी गति से क्यों बढ़ रहे हैं.....? बढ़ रहे हैं या बढाए जा रहे हैं | रमण सरकार अपनी नीतियों से उनको खाद , पानी और दवाईयां दे रही है , फसल तो अच्छी ही होगी |
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