गणेश तिवारी
सरकोजी गए, बाईस साल बाद फिर वामपंथी
राष्ट्रपति आया। लेकिन आप को समझ में नहीं आया न आएगा। ऐसा क्यों हो गया।
वैसे आपको ज्यादा ही मालूम है कि समूचे यूरोप के देशों की अर्थावस्था बेहद
ख़राब है। डूब रहे हैं सब। कारण भी जानते हैं। जिस निजीकरण की प्रणाली में
चलकर कारपोरेट को पाला-पोसा और जनता की खूब अनदेखी की, वह किसी से छुपा हुआ
नहीं है। अब संकट से उबरने जनता के ऊपर हर तरह का बोझ लादने का क्रम
चलाया। वेतन कम दिया गया। सामाजिक सुरक्षा ख़त्म करने का अभियान चलाया जा
रहा है। छात्रों से वजीफा लूट लिया गया, शिक्षा मंहगी कार दी गई, बदले में
कारपोरेट सेक्टर को बचाने की मुहिम चलाई गई। लेकिन देश वहां की जनता से
बनता है, मुट्ठी भर पूंजीपतियों से नहीं। फ्रांस्वा होलांद ने कल ही ख़त्म
हुए चुनाव के पहले अभियान के दौरान जनता के पक्ष में बात की।
मनमोहन जी आप को भी मालूम है कि फ्रांस्वा
होलांद ने छात्रों की पढ़ाई सहित कर्मचारियों, आम आदमी की बेहतरी, रोजगार
सृजन की बात की। और हाँ कारपोरेट सेक्टर के लूट-खसोट के खिलाफ बात करते हुए
उन "लाडलों" पर भारी टैक्स लगाने का भी वायदा किया। देश के ऋण संकट से
उबरने के तौर-तरीकों को बदलने की बात की। जनता ने उन्हें हाथोंहाथ लिया और
फ्रांस्वा होलांद को बना दिया शान से राष्ट्रपति।
आपके आका अमेरिका और उसके पिछलग्गू
यूरोपीय देश आपको समझा रहे हैं हमारे बताये रास्ते पर चलो और आप सरपट भागे
चले जा रहे हैं, ममता दीदी समस्या खडी कर रही है उन्हें समझाने बड़ी दीदी
हिलेरी को आपने बुला लिया, आज कोलकाता में ममता को लालीपाप दिया और लगता है
आपका रास्ता साफ़ हो गया, विदेशी किराना दुकान के मामले में। मनमोहन जी आप
वो सब करेंगे जो तबाह हो चुके "विकसित देश" कर चुके हैं। जनता को वो तकलीफ
देने पर आमादा हैं जो अमेरिका सहित यूरोप के देश के शासक कर रहे हैं, कर
चुके हैं। लेकिन आपको यह भी मालूम है रोमानिया में जनता को तकलीफ देने वाली
सरकार को तीन दिन पहले जनता ने उखाड़ फेंका और बहुत से देशों में आग लगी
हुई है, अमेरिका की जनता वहां की अर्थव्यवस्था की धुरी "वाल स्ट्रीट" पर
कब्ज़ा करने तत्पर है।
लेकिन आपको समझ में नहीं आ रहा है। आप तो
बस लगे हैं सब देश की संपत्ति को बेचने और सब किस्म की सबसिडी को ख़त्म
करने में जो जनता को थोड़ी राहत देती है।
लेकिन जनता न तो फ़्रांस की, न अमेरिका की,
न भारत की इतनी बुद्धू है जितना आप समझ रहे हैं। सब जगह भले-बुरे की पहचान
हो रही है - इसका ताजा उदाहरण फ़्रांस है, सरकोजी को आराम से सरका दिया।
अभी भी समय है छोड़ दो गुलामी या गद्दी वरना जनता नहीं छोड़ेगी........
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें