-1941 में एलिस जॉर्ज- जो बाद में एलिस फैज कहलाईं और जिनका नाम फैज की वालिदा ने कुलसूम रख दिया था- से शादी की। इस अंग्रेज महिला के साथ उनका निकाह शेख अब्दुल्लाह ने पढ़वाया था।
-1951 में पाकिस्तान की हुकूमत ने उन्हें तख्ता पलट की साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया। 1958 में सेफ्टी एक्ट के तहत उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया।
-फैज 'अदबे लतीफ', 'पाकिस्तान टाइम्स' और 'इमरोज' के अलावा अफ्रो-एशियाई लेखक सघ के मुख पत्र 'लोटस' के सपादक रहे। वे ऐसे पहले एशियाई शायर थे जिन्हें लेनिन पुरस्कार दिया गया। मरणोपरात पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया गया।
-पहला काव्य सग्रह 'नक्शे फरियादी' 1911 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद 'दस्ते सबा', 'जिंदानामा', 'दस्ते-तहे-सग', 'सर-ए-वादी-ए-सीना', 'शामे शहरे यारा', 'मेरे दिल, मेरे मुसाफिर' नाम से उनके कई अन्य सग्रह आए। 'मीजान', 'सलीबें मेरे दरीचे में', 'सफरनामा क्यूबा' आदि उनकी ख्यात, बहुपठित गद्य रचनाएं हैं। कम लोग ही जानते होंगे कि फैज ने एक दौर में 'तमाशा मेरे आगे', 'साप की छतरी', 'प्राइवेट सैक्रेटरी' जैसे स्तरीय नाटक रेडियो के लिए लिखे। या यह कि 'जागो हुआ सवेरा' और 'दूर है सुख का गाव' नाम वाली फिल्मों के लिए उन्होंने गीत और सवाद भी लिखे।
-20 नवबर, 1984 की दोपहर में फैज अहमद ने इस दुनिया से विदा ली।
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