- 99 की उम्र में डॉ शीलवती राठौर के इरादे चट्टान की तरह मजबूत -
ग्वालियरः डॉक्टर शीलवती राठौर चार जनवरी 2012 को 99 साल की हो जायेंगी. आज भी वह बड़ी से बड़ी मुश्किल का डट कर मुकाबला करने का हौसला रखती हैं. गुलाम भारत के समय के आंदोलन की बात हो या भारत विभाजन की, इन्होंने हर समय अपने साहस का परिचय दिया है.
अंग्रेजों के खिलाफ़ नमक आंदोलन में वे महात्मा गांधी के साथ कदम से कदम मिला कर चलीं. स्वदेशी आंदोलन में भी वे बिना किसी की परवाह किये नाम बदल कर शामिल हईं और विदेशी वस्तुओं की होली जलायी. इसी तरह भारत विभाजन के समय जब मुसलिम परिवार पर विपदा आयी, तो बंदूक लेकर उनकी रक्षा के लिए भी वे आगे आ गयीं.
नाम बदल-बदल कर शामिल हुईं आजादी के आंदोलन में
सन् 1942 में महात्मा गांधी ने विदेशी वस्तुओं को जलाने का आह्वान किया था. मेरे पति आरके सिंह शासकीय सेवा में थे. इसलिए सीधे तौर पर मैं इस आंदोलन में शामिल नहीं हो सकती थीं. मैंने अपना नाम बदला और अपनी कई सहेलियों को भी नाम बदल कर इस आंदोलन में शामिल करवाया. इससे पहले गांधी जी के नमक आंदोलन में भी मैं अपनी मां के साथ शामिल हई थी.
मैंने जब उठा ली थी बंदूक
भारत-पाक विभाजन के बाद देशभर में दंगे हए थे. ग्वालियर में भी दंगा हआ. दंगाइयों से बचती हई एक मुसलिम महिला मेरे घर आ गयी, उसके पीछे दंगाई भी थे. मैंने अपने घर में उस महिला को शरण दी और उसे बचाने के लिए बंदूक लेकर छत पर पहंच गयी. मैंने दंगाइयों को ललकारा तो दंगाई चले गये और वह महिला बच गयी.
सब प्रभु की देन
मैंने कुछ नहीं किया है, सब प्रभु ने करवाया. आज जब उस समय के बारे में सोचती हं, तो ताज्जुब होता है कि इतना सब मैंने कैसे कर लिया. अब भी ऐसी कोई स्थिति निर्मित होती है, तो मैं संघर्ष करने में पीछे नहीं हटूंगी.
शीलवती का संदेशः महिलाओं में इतनी शक्ति होती है कि वह घर, समाज और देश के लिए प्रगति के द्वार खोल सकती हैं. महिला विनम्र, सहनशील हो तो वह परिवार को एक डोर में बांध सकती है. यही भूमिका उसकी समाज और देश के विकास में भी सहायक होती है. आज की पीढ़ी ज्यादा पढ़ी-लिखी है, लेकिन स्वार्थी हो गयी है. उसका समाज से कोई लेना-देना नहीं है.
ग्वालियरः डॉक्टर शीलवती राठौर चार जनवरी 2012 को 99 साल की हो जायेंगी. आज भी वह बड़ी से बड़ी मुश्किल का डट कर मुकाबला करने का हौसला रखती हैं. गुलाम भारत के समय के आंदोलन की बात हो या भारत विभाजन की, इन्होंने हर समय अपने साहस का परिचय दिया है.
अंग्रेजों के खिलाफ़ नमक आंदोलन में वे महात्मा गांधी के साथ कदम से कदम मिला कर चलीं. स्वदेशी आंदोलन में भी वे बिना किसी की परवाह किये नाम बदल कर शामिल हईं और विदेशी वस्तुओं की होली जलायी. इसी तरह भारत विभाजन के समय जब मुसलिम परिवार पर विपदा आयी, तो बंदूक लेकर उनकी रक्षा के लिए भी वे आगे आ गयीं.
नाम बदल-बदल कर शामिल हुईं आजादी के आंदोलन में
सन् 1942 में महात्मा गांधी ने विदेशी वस्तुओं को जलाने का आह्वान किया था. मेरे पति आरके सिंह शासकीय सेवा में थे. इसलिए सीधे तौर पर मैं इस आंदोलन में शामिल नहीं हो सकती थीं. मैंने अपना नाम बदला और अपनी कई सहेलियों को भी नाम बदल कर इस आंदोलन में शामिल करवाया. इससे पहले गांधी जी के नमक आंदोलन में भी मैं अपनी मां के साथ शामिल हई थी.
मैंने जब उठा ली थी बंदूक
भारत-पाक विभाजन के बाद देशभर में दंगे हए थे. ग्वालियर में भी दंगा हआ. दंगाइयों से बचती हई एक मुसलिम महिला मेरे घर आ गयी, उसके पीछे दंगाई भी थे. मैंने अपने घर में उस महिला को शरण दी और उसे बचाने के लिए बंदूक लेकर छत पर पहंच गयी. मैंने दंगाइयों को ललकारा तो दंगाई चले गये और वह महिला बच गयी.
सब प्रभु की देन
मैंने कुछ नहीं किया है, सब प्रभु ने करवाया. आज जब उस समय के बारे में सोचती हं, तो ताज्जुब होता है कि इतना सब मैंने कैसे कर लिया. अब भी ऐसी कोई स्थिति निर्मित होती है, तो मैं संघर्ष करने में पीछे नहीं हटूंगी.
शीलवती का संदेशः महिलाओं में इतनी शक्ति होती है कि वह घर, समाज और देश के लिए प्रगति के द्वार खोल सकती हैं. महिला विनम्र, सहनशील हो तो वह परिवार को एक डोर में बांध सकती है. यही भूमिका उसकी समाज और देश के विकास में भी सहायक होती है. आज की पीढ़ी ज्यादा पढ़ी-लिखी है, लेकिन स्वार्थी हो गयी है. उसका समाज से कोई लेना-देना नहीं है.
(प्रभात खबर से साभार)
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