(Amar Ujala से) | |
अन्ना हजारे के अनशन से जन लोकपाल विधेयक बनाने की बात पर तो सरकार से सहमति बन गई है, लेकिन जाहिर तौर पर भ्रष्टाचार और नैतिक मूल्यों वाली राजनीति बहुत बड़े विषय हैं और जब तक कानून बनाकर उस पर अमल करके कुछ ठोस परिणाम नहीं दिए जाते, इसको लेकर बहस चलती रहेगी। यह अच्छा भी है, क्योंकि इससे विधेयक बनाने और उसके व्यावहारिक पहलुओं को समझने-पकड़ने में मदद मिलेगी। लेकिन इस क्रम में कुछ लोग ऐसी दलीलें लेकर आ रहे हैं कि बड़े-बड़ों के होश उड़ जाएं। अन्ना के आंदोलन के दौरान ही सरकार द्वारा गठित मंत्री-समूह छोड़ने वाले नेता शरद पवार के दो सहयोगियों-देवी प्रसाद त्रिपाठी और तारिक अनवर ने आंदोलन को लेकर जो टिप्पणी की है, उसमें उनकी अपनी नाराजगी और कुंठा ज्यादा है, तर्क कम। पवार से अन्ना का बैर (निजी नहीं) पुराना है, इसलिए उनके लोग अन्ना का, उनके आंदोलन का, जन लोकपाल विधेयक का मजाक उड़ाएं, यह बात तो समझ में आती है, पर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को भ्रष्टाचार खत्म होने का भरोसा क्यों नहीं है, यह थोड़ा हैरान करने वाली चीज है। वह किस कड़े कानून से भ्रष्टाचार पर अंकुश की बात करते हैं, यह भी स्पष्ट करना चाहिए। पर इस संदर्भ में सबसे चौंकाऊ और नाटकीय टिप्पणी कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने की है। उनका मानना है कि यदि महात्मा गांधी भी होते, तो आज भ्रष्टाचार के जाल से निकलने का रास्ता नहीं ढूंढ पाते। और वह भी भ्रष्टाचार के जरिये बैंक में धन इकट्ठा करते या राजनीति छोड़ देते। यह एक दिलचस्प टिप्पणी है और ऐसे ‘खिलाड़ी’ की टिप्पणी है, जिसने थोड़े से विधायकों के बल पर कर्नाटक में राज किया और भाजपा समेत सभी पार्टियों की नाक में दम कर दिया। उनका बयान ईमानदार आत्मस्वीकृति भी हो सकता है और गांधी के बारे में अज्ञानता का सुबूत भी। हालांकि कुमारस्वामी ने बाद में कहा कि मीडिया ने मेरे बयान को तोड़ा-मरोड़ा है, मगर फिर भी वह यह तो कहते ही रहे कि बिना भ्रष्टाचार के राजनीति नहीं हो सकती। गांधी का महत्व कुमारस्वामी को भले नहीं समझ आ रहा हो, पर दुनिया को आ रहा है। और अन्ना का अनशन या सत्याग्रह उसी राजनीति का एक अंश प्रस्तुत करता है, जिसमें अन्ना को भाड़े पर न हवाई जहाज-हेलिकॉप्टर लेने की जरूरत पड़ी, न मीडिया मैनेजमेंट की और न लोगों को पटाने की। चार दिन में ऐसा समर्थन जुट गया कि खुद अन्ना भी हैरान और महाबलि केंद्र सरकार परेशान। सो बेहतर है कि कुमारस्वामी, तारिक, त्रिपाठी जैसे लोग अपने अनुभव तक की बातों तक सीमित रहें, सूरज पर थूकने का प्रयास न करें। |
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
क्या महात्मा गांधी सचमुच भ्रष्ट हो जाते
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें