सीताराम येचुरी | |
बेशक, यह संसद का एक अभूतपूर्व कदम था। दोनों सदनों ने सरकार से आग्रह किया था कि वह मुद्रास्फीति के नकारात्मक प्रभावों से आम आदमी का बचाव करे। इसके बावजूद आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में महंगाई लगातार बनी हुई है और आम जनता के जीवन स्तर को खोखला कर रही है। सरकार ने पिछले ही दिनों मूल्य सूचकांक की एक नई शृंखला चालू की है, जिसके लिए 2004-05 को आधार वर्ष बनाया गया है। मूल्य सूचकांक शृंखलाओं के बदले जाने के पीछे अकसर यह नीयत रहती है कि ऐसे आंकड़े हासिल किए जाएं, जो अर्थव्यवस्था की सुनहरी तसवीर पेश करते हों। बहरहाल, मूल्य सूचकांक की शृंखला बदले जाने के बावजूद, 30 सितंबर को समाप्त हुए सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति की दर 16.44 फीसद पर पहुंच गई। सरकार को यह भी कहा गया कि आवश्यक वस्तुओं में तमाम वायदा/ अग्रिम कारोबार पर पाबंदी लगाई जाए, ताकि सटोरियों द्वारा संचालित मूल्यवृद्धि पर अंकुश लगाया जा सके। उस बहस के दौरान वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया था कि इस मुद्दे की पड़ताल की जाएगी और अगर जरूरी हुआ, तो कम से कम अस्थायी तौर पर ही सही, ऐसा कदम जरूर उठाया जाएगा। लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिसका उल्लेख किया जा सकता हो। सरकार का यह रवैया आश्चर्यजनक नहीं है। जाहिर है कि इस तरह के कदम की सीधी चोट सट्टे बाजाराना कारोबार में लगी कॉरपोरेट कंपनियों के अनाप-शनाप मुनाफे पर पड़ती, जो सरकार को शायद मंजूर नहीं था। इसी कारण सरकार तर्क देती रही है कि इस तरह के कारोबार से मुद्रास्फीति पैदा नहीं होती है। बहरहाल, इस मुद्दे पर हमारे रुख के सही होने की घोषणा भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रिपोर्ट में की गई है। वर्ष 2007-08 के दौरान सामने आए विश्व खाद्य संकट और इसी सिलसिले में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता, खाद्य पदार्थों की मूल्यवृद्धि और सट्टा बाजार के प्रभाव पर इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी तथा भारी अस्थिरता के एक उल्लेखनीय हिस्से को सट्टे बाजाराना बुलबुले के उभरने के सहारे ही व्याख्यायित किया जा सकता है। खास तौर पर यह विश्वास करने का आधार है कि खाद्य वस्तुओं पर आधारित डेरीवेटिव्स के बाजारों में हेज फंड, पेंशन फंड तथा निवेश बैंक जैसे शक्तिशाली निवेशकर्ताओं के प्रवेश ने उल्लेखनीय भूमिका अदा की थी। दरअसल वायदा कारोबार की बुनियादी शर्त ही है कि यह कारोबार तभी होगा, जब किसी आनेवाले समय में संबंधित माल का भाव मौजूदा भाव से ज्यादा रहने की अपेक्षा हो। जाहिर है कि इतनी बड़ी मात्रा में और इतनी विशाल राशि का यह सट्टे बाजाराना कारोबार तभी चल सकता है, जब आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होती रहे और इस तरह अनाप-शनाप कमाई बटोरने का मौका बना रहे। देश की जनता को बड़ी पूंजी के ऐसे बेहिसाब मुनाफों के लिए बढ़ते दामों के रूप में बहुत भारी कीमत अदा करनी पड़ रही है। जाहिर है, अगर खरीददार भविष्य के सौदे के लिए पहले से ज्यादा कीमत देने को तैयार हो, तो वह यह अपेक्षा करता है कि उस माल की कीमत और बढ़ेगी। इसलिए अगर वस्तुओं के वायदा कारोबार में कीमतें बढ़ती हैं, तो यह हाजिर बाजारों में विक्रेताओं के लिए संकेत होता है कि वे कीमतें बढ़ा दें। शिकागो के मर्केंटाइल एक्सचेंज में अनाज के लिए वायदा कारोबार में जो दरें निर्धारित की जाती हैं, वे दुनिया भर में अनाज के व्यापार के सौदों में शामिल होती नजर आती हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की उस कुख्यात थीसिस को भी गलत साबित कर दिया है, जिसे जॉर्ज बुश ने सारी दुनिया के सामने पेश करते हुए कहा था कि चीन और भारत में प्रतिव्यक्ति आय में अपेक्षाकृत तेज बढ़ोतरी के कारण खाद्यान्न की खपत बढ़ी है, जो अनाज की कीमत में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार है। इसके बजाय यह रिपोर्ट बताती है कि वास्तव में चीन और भारत ने सकल तथा प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपभोग में गिरावट ही प्रदर्शित की है। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट की विभिन्न सिफारिशों में तमाम डेरीवेटिवों के व्यापार में चौतरफा सुधार की मांग की गई है। इसके साथ ही रिपोर्ट में माल डेरीवेटिवों तथा वित्तीय डेरीवेटिवों और जायज वाणिज्यिक व्यापारियों तथा शुद्ध सटोरियों के बीच कानूनी अंतर करने का भी आग्रह किया गया है। इसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का आह्वान किया गया है कि वे गंभीरता से इन सिफारिशों पर विचार करें, ताकि सरकारें सबको भोजन उपलब्ध कराने वाली जरूरी जवाबदारी पूरी करने में समर्थ हो सकें। अपने देश में परजीवी पूंजीवाद का बोलबाला है। टेलीकॉम का 2-जी घोटाला, अवैध खनन घोटाला, आईपीएल घोटाला, कॉमनवेल्थ खेल घोटाला आदि पिछले कुछ अरसे में उजागर हुए घोटाले इस परजीवी पूंजीवाद के और फलने-फूलने के ही सुबूत हैं। ऐसे में इस सरकार से यह उम्मीद करना कुछ ज्यादा ही है कि वह जनता को राहत दिलाने के लिए बाजार का नियमन करेगी। बहरहाल, अगर आम आदमी के हितों की रक्षा करनी है और अगर देश की संसद द्वारा एक स्वर से व्यक्त की गई भावना का सम्मान करना है, तो यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार को खाद्य पदार्थों से जुड़े सट्टा बाजार पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। बिना खाद्य वस्तुओं के सट्टा बाजार पर रोक लगाए सरकार के लिए किसी भी सूरत में अनाजों की बढ़ती कीमत को कम करना संभव नहीं है। |
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
कैसे मिटे भूख
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