शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

नज़्में और ग़ज़लें

फै़ज़ की शायरी का यह खंड सारे सुखन हमारे (सं. अब्दुल बिस्मिल्लाह, प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन प्रा.लि. नयी
दिल्ली) से साभार लिया गया है।
जहान तेरी मुहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के
वीरां है मयकदा, ख़ुमो-साग़र उदास हैं
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के
इक फ़ुर्सते-गुनाह मिली, वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिलफ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
भूले से मुस्करा तो दिये थे वो आज ‘फ़ैज़’
मत पूछ वलवले दिले-नाकर्दाकार1 के
1. अनुभवहीन दिल
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कई बार इसका दामन भर दिया हुस्ने-दो आलम1 से
मगर दिल है कि उसकी ख़ानावीरानी नहीं जाती
कई बार इसकी ख़ातिर ज़र्रे-ज़र्रे का जिगर चीरा
मगर ये चश्मे-हैरां, जिसकी हैरानी नहीं जाती
नहीं जाती मताए-लालो-गौहर2 की गरांयाबी3
मताए-ग़ैरतो-ईमां4 की अरज़ानी5 नहीं जाती
मेरी चश्मे-तन आसां6 को बसीरत7 मिल गयी जब से
बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जाती
सरे-खुसरौ8 से नाज़े-कजकुलाही9 छिन भी जाता है
कुलाहे-खुसरौ10 से बू-ए-सुल्तानी नहीं जाती
ब-जुज़ दीवानगी वां और चारा ही कहो क्या है
जहां अक़्लो-ख़िरद11 की एक भी मानी नहीं जाती
1. लोक-परलोक की सुंदरता, 2. हीरे-मोती की दौलत, 3. महंगापन 4. स्वाभिमान और सच्चाई की दौलत, 5.
सस्तापन, 6. आलसी, निकम्मा, 7. ज्ञान-चक्षु, देखने की शक्ति, 8. बादशाह खुसरौ का सर, 9. राजत्व का गौरव,
10. खुसरौ का ताज,़ 11. समझ-बूझ
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इज्ज़े-अह्ले-सितम1 की बात करो
इश्क़, के दम-क़दम की बात करो
बज़्मे-अह्ले-तरब2 को शरमाओ
बज़्मे-असहाबे-ग़म3 की बात करो
बज़्मे-सरवत4 के ख़ुशनसीबों से
अज़्मते-चश्मे-नम5 की बात करो
है वही बात यूं भी और यूं भी
तुम सितम या करम की बात करो
खैर हैं अह्ले-दैर जैसे हैं
आप अह्ले-हरम की बात करो
हिज्र की शब तो कट ही जायेगी
रोज़े-वस्ले-सनम6 की बात करो
जान जायेंगे जानने वाले
‘फ़ैज़’ फ़रहादो-जम7 की बात करो
1. अत्याचार करनेवालों की बेबसी, 2. सुखी लोग, 3. दुखी लोगों की दुनिया, 4. समृद्धि की महफ़िल, 5. भीगी
आंखों की महानता, 6. प्रिय-मिलन का दिन, 7. फ़रहाद और बादशाह जमशेद

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