मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

सौ साल का शायर

सीताराम येचुरी
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आज से भारतीय उपमहाद्वीप में विद्रोह, असहमति और मानवता के लिए प्यार के बहुत ही सशक्त विचारधारात्मक प्रतीक फैज अहमद फैज का जन्मशती वर्ष शुरू हो गया है। हम इस मौके को उत्सव की तरह ले सकते हैं। फैज एक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी थे। वह उर्दू के सबसे बड़े शायरों में एक थे। पत्रकार थे। फिल्म निर्माता थे। ट्रेड यूनियनकर्मी थे। प्रसारणकर्ता थे। शिक्षक थे। अनुवादक थे। लेनिन शांति पुरस्कार विजेता थे। फैज साहब ने ब्रिटिश राज की भारतीय सेना में भी काम किया था। स्यालकोट में जन्मे फैज की शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई थी और जिंदगी भर यही शहर उनका ठिकाना बना रहा था। विभाजन के दर्द की गहरी प्रतिध्वनियां उनकी शायरी में मिलती हैं। जब महात्मा गांधी की हत्या हुई, तब लंदन के एक अखबार ने दर्ज किया था कि ‘फैज साहब इतने हिम्मतवाले थे कि उस समय, जब भारत-पाकिस्तान के बीच नफरत अपने चरम पर थी, वह गांधी की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए लाहौर से विमान से दिल्ली गए थे।’

गरीब और शोषित जनता के साथ तदाकारता उनकी रचनाओं में आसानी से देखी जा सकती है। वह फासीवाद-विरोधी आंदोलन और उपनिवेशवाद के खिलाफ मुक्ति के लिए अविभाजित भारत में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा चलाए जा रहे संघर्ष के सक्रिय भागीदार थे। अपने समय के महान लेखकों के साथ उन्होंने 1936 में प्रगतिशील लेखक संगठन के गठन की पृष्ठभूमि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। विभाजन के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने सज्जाद जहीर तथा कुछ अन्य साथियों को पाकिस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी का गठन करने के लिए भेजा था। बहरहाल, 1951 में कुख्यात रावलपिंडी षड्यंत्र मामले में सज्जाद जहीर, फैज और अन्य कम्युनिस्ट नेताओं को कैद-ए-तनहाई में जेल में डाल दिया गया। लेकिन जेल की मुश्किलों ने उनकी रचनात्मकता को उत्प्रेरित करने का ही काम किया। उनकी कुछ बेतहरीन रचनाएं जेल की चारदीवारी से ही आई थीं। दस्त-ए-सबा और जिंदानामा ने उन्हें एक असाधारण साहित्यिक प्रतिभा के आसन पर पहुंचा दिया।

विद्रोही का छायाचित्र की भूमिका में आगा शाहिद अली लिखते हैं ः ‘फैज गजल के ऐसे उस्ताद थे कि उन्होंने जैसे किसी जादू से उसके हरेक बंधे हुए बिंब को रूपांतरित कर दिया और पूरी तरह से नए अभिप्राय रच दिए। मिसाल के तौर पर माशूक मित्र, प्रेमिका, खुदा, किसी भी अर्थ में आ सकता है। फैज ने इन अर्थों का तो उपयोग किया ही, उनका विस्तार भी कर इसमें क्रांति को भी शामिल कर लिया। फैज सारी दुनिया के लिए क्रांति के लक्ष्य की पैरवी करते थे। वह सच्चे अंतरराष्ट्रवादी थे। पोइट्री ईस्ट पुस्तक में कार्लो कोप्पोला ने फैज के लिए कहा है ः वह दुनिया के बेआवाज और पीड़ित जन के प्रवक्ता थे-चाहे वे चालीस के दशक के ब्रिटिश उत्पीड़ित भारतीय हों, अफ्रीका के स्वतंत्रता सेनानी हों, पचास के दशक के अमेरिका में शीतयुद्ध के दौरान रोजेनबर्ग दंपति हों, साठ के दशक में अमेरिकी नापाम बमों से बचने के लिए भागते वियतनामी किसान हों या सत्तर के दशक के शरणार्थी शिविरों में रह रहे फलस्तीनी बच्चे हों।’

एडवर्ड सईद ने लिखा था ‘फैज के बारे में समझने की महत्वपूर्ण बात यह है कि गार्सिया मार्क्वेज की तरह उन्हें साहित्यिक लोग और अवाम, दोनों पढ़ते तथा सुनते थे...उनकी शुद्धता तथा सटीकता हैरान करने वाली थी। इसलिए हम एक ऐसे कवि की कल्पना करें, जिसकी कविता में यीट्स की ऐंद्रिकता और नेरूदा की शक्ति का योग हो। मैं समझता हूं कि वह इस सदी के सबसे महानतम कवियों में एक थे।’ सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध इस साहित्यिक जीनियस के बारे में बहुत कुछ लिखा गया ह।ै बहरहाल, क्रांति की कामना करने वाले तथा उसके लिए काम करने वाले हम सब लोग इस मौके पर फैज की रचनाओं और काम से हम एक जो सब ले सकते हैं, वह है ः वचनबद्धता के जोश का सर्जनात्मकता के साथ योग करना। फैज ने अपनी शायरी के साथ ऐसा ही किया था। उन्होंने प्राचीन काव्य रूपों का रूपांतरण करने में महारत दिखाई थी। इसके पीछे पुराने काव्य रूपों से नाता तोड़ने की जगह अपने श्रोताओं तक पहुंचने के लिए रूपांतरित कर उनका उपयोग करने का मकसद था।




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