मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

अमेरिकी दबाव में

सीताराम येचुरी
अगर इसके लिए अब भी किसी सुबूत की जरूरत थी, तो विकिलीक्स द्वारा भारत से संबंधित अमेरिकी कूटनीतिक संदेशों के उजागर किए जाने से यह सुबूत भी मिल चुका है। विकिलीक्स के हाथ लगे भारत से संबंधित 5,100 संदेश, जो करीब 60 लाख शब्दों के हैं, बिना किसी अस्पष्टता के यह सचाई उजागर कर देते हैं कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ‘अधीनस्थ सहयोगी’ के रूप में अमेरिका के साथ गठजोड़ कर भारत की विदेश नीति में तो भारी बदलाव कर ही रही है, विभिन्न मुद्दों पर अमेरिकी दबाव के सामने ज्यादा से ज्यादा घुटने भी टेक रही है।
इससे एक बार फिर यह साबित हो जाता है कि यूपीए की पहली सरकार ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम का अनुमोदन करने के साथ-साथ, जिसमें एक स्वतंत्र विदेश नीति के पालन का वचन दिया गया था, (अन्य चीजों के अलावा यह भी एक वायदा था, जो उस पहली यूपीए सरकार के लिए वाम पार्टियों का समर्थन हासिल करने के लिए जरूरी था), धोखाधड़ी कर अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ रणनीतिक रिश्ते मजबूत करने की नीति को भी आगे बढ़ाया था।
सितंबर, 2005 में पहली बार भारत ने निर्णायक रूप से गुटनिरपेक्ष आंदोलन तथा विकासशील दुनिया की एकजुटता से रिश्ता तोड़ा था और अमेरिकी दबाव में अंतरराष्ट्रीय एटमी ऊर्जा एजेंसी के मंच पर ईरान के खिलाफ वोट दिया था। विकिलीक्स द्वारा उजागर किए गए संदेश साफ दिखाते हैं कि आइएईए में भारत का ईरान के खिलाफ वोट करना और भारत-अमेरिकी नाभिकीय सौदे के भविष्य के नाम पर महाशक्ति देश द्वारा डाला जा रहा दबाव किस तरह एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। यह अलग बात है कि यूपीए सरकार इस हकीकत से बराबर इनकार करती आई है।
बहरहाल, इन रहस्योद्घाटनों से उसके झूठ का पूरी तरह परदाफाश हो गया है। यह शीशे की तरह साफ है कि भारत-ईरान गैस पाइपलाइन परियोजना से, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण तथा सस्ती पड़ती, अमेरिकी दबाव में ही पांव पीछे खींचे गए। वास्तव में विकिलीक्स द्वारा उजागर किए गए संदेश दिखाते हैं कि भारत को ईरान की नाभिकीय महत्वाकांक्षाओं या उसके नाभिकीय शस्त्रीकरण कार्यक्रम या आतंकवाद के समर्थन के आरोपों के संबंध में कोई भ्रम नहीं था, फिर भी उसने इस मामले में अमेरिकापरस्त नीति को आगे बढ़ाने के लिए इन सभी मुद्दों पर अपनी समझ को उठाकर ताक पर रख दिया था। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि अमेरिकी कूटनीतिक संदेशों में इसे भारत की ओर से, ‘एक रूपांतरित अमेरिकी-भारत संबंधों का निर्माण करने की यूपीए की वचनबद्धता का सबसे महत्वपूर्ण संकेत’ बताया जा रहा था।
विकिलीक्स के रहस्योद्घाटनों से यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि अमेरिका भारत के निर्णयों में केवल दखलंदाजी ही नहीं करता रहा है, बल्कि वह हमारी सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों को सीधे-सीधे प्रभावित भी करता रहा है। ईरान के खिलाफ विवादास्पद वोटिंग के बाद, जनवरी, 2006 में हमारे यहां केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ था। उस फेरबदल में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर को हटाया गया था। तभी यह माना जा रहा था कि वह निर्णय इसलिए लिया गया था कि मणिशंकर अय्यर का भारत-ईरान पाइपलाइन परियोजना के प्रस्ताव को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना अमेरिकियों को हजम नहीं हो रहा था।
भारत-अमेरिकी परमाणु सौदे के रास्ते पर इकतरफा तरीके से आगे बढ़ने के सरकार के फैसले के बाद यूपीए से वाम पार्टियों ने तो नाता 2008 की जुलाई में तोड़ा था, लेकिन इससे दो साल पहले अमेरिकी राजदूत ने अपने संदेश में यह आकलन पेश कर दिया था । मंत्रिमंडलीय फेरबदल के अकाट्य अमेरिकापरस्त झुकाव से वामपंथ विक्षुब्ध है, जो इसे चुनौती देने और खुले युद्ध के लिए आमंत्रण के रूप में देखेगा।’ अमेरिका का खेल बिलकुल साफ था । इस अमेरिकापरस्त यूपीए सरकार को मजबूत करो, लेकिन यह सुनिश्चित करते हुए कि उसे वामपंथ के समर्थन की जरूरत ही नहीं रह जाए।
नई दिल्ली में अमेरिकी राजदूत ने विकिलीक्स द्वारा उजागर किए गए एक संदेश में बाकायदा यह दर्ज किया है कि यूपीए ने बड़ी संख्या में ऐसे वर्तमान सांसदों को सरकार में शामिल किया है, जो सार्वजनिक रूप से खुद को हमारी रणनीतिक साझेदारी के साथ जोड़ते आए हैं। पुनः वह यह भी कहते हैं कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि राष्ट्रपति (बुश जूनियर) के दौरे से पहले विदेश नीति संबंधी शोर न उठे, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विदेश मंत्रालय का महत्वपूर्ण विभाग अपने पास बनाए रखा है और यह पद तब तक उनके पास ही रहने की संभावना है, जब तक संसद का अगला सत्र पूरा नहीं हो जाता और कांग्रेस, मई (2006) के केरल तथा पश्चिम बंगाल के महत्वपूर्ण चुनावों का सामना नहीं कर लेती।
विकिलीक्स के इन खुलासों से इतना तो स्पष्ट हो ही चुका है कि अमेरिका भारत के सार्वजनिक जीवन में और नीति-निर्धारण की प्रक्रियाओं के अनेकानेक क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप कर रहा है। जाहिर है, इसमें अमेरिका का अधीनस्थ सहयोगी बनने की यूपीए सरकार की इच्छा सक्रिय रूप से मददगार साबित हो रही है। अनेक देशभक्त तथा सदाशयी भारतीयों को इन खुलासों से काफी झटका लगेगा। यूपीए सरकार को देश की जनता के सामने इसका जवाब देना ही होगा कि कैसे उसके राज ने चुपके-चुपके देश की संप्रभुता को खोखला किया है और शक्तिशाली भारत को अमेरिका का अधीनस्थ सहयोगी बनाकर छोड़ दिया है।

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