मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

वोट की कीमत


सीताराम येचुरी
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राज्य विधानसभाओं के बहु-चरणीय चुनाव की प्रक्रिया बाकायदा शुरू हो चुकी है। जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा था, हरेक राज्य के अपने खास मुद्दों के अलावा भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे चुनाव में छाए हुए हैं। यह बात तमिलनाडु के संबंध में तो और भी ज्यादा सच है, जहां द्रमुक के नेतृत्ववाला सत्ताधारी गठजोड़ कांग्रेस के समर्थन से सरकार पर कब्जा बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। द्रमुक ने हरेक परिवार को रंगीन टेलीविजन आदि की जो खैरात बांटी है उसके चलते 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले का मुद्दा आज राज्य के हर घर तक पहुंच चुका है। अब तक के सारे घोटालों का बाप कहे जा सकने वाले इस घोटाले ने तमिलनाडु के स्थानीय स्तर के अन्य घोटालों के साथ उच्च पदों के भ्रष्टाचार के मुद्दे को इस चुनाव में केंद्र में ला दिया है।
मगर भ्रष्टाचार का मुद्दा सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं रहा। पिछले कुछ अरसे में ही सामने आए राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला, एंट्रेक्स-इसरो घोटाला, वोट के लिए नोट घोटाला, अवैध खनन घोटाला, आईपीएल घोटाला आदि ने यूपीए-द्वितीय की सरकार को उच्च पदों पर भ्रष्टाचार का बदतरीन संरक्षक साबित किया है। वास्तव में इन घोटालों ने अली बाबा और चालीस चोर की अमर कथा को नए सिरे से प्रासंगिक बना दिया है।
अचरज नहीं कि भ्रष्टाचार के इस पहलू को जनता बखूबी पहचान रही है कि यह सार्वजनिक संसाधनों की ऐसी लूट का मामला है, जो उसे बेहतर जीवन तथा रोजगार से वंचित कर रही है। यह जागृति भी बढ़ रही है कि ऐसी अवैध कमाई को खुद जनता को ही भ्रष्ट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और वोट खरीदने की कोशिशें की जाती हैं। विधानसभा चुनावों के मौजूदा चक्र में तमिलनाडु में यह खेल सबसे नंगई से सामने आ रहा है।
सभी जानते हैं कि पूर्व दूरसंचार मंत्री तथा द्रमुक नेता ए राजा 2 जी घोटाले के सिलसिले में अभी जेल में हैं। द्रमुक के ही एक और नेता केंद्रीय रसायन व उर्वरक मंत्री इस समय अग्रिम जमानत पर हैं, जो शायद अपनी तरह का पहला मामला होगा। चुनाव आयोग के आदेश पर तमिलनाडु में वाहनों की तलाशियों के क्रम में कई करोड़ रुपए अब तक पकड़े भी जा चुके हैं। वास्तव में चुनाव आयोग को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है, ताकि राज्य में पुलिस के वाहनों में भरकर ऐसे अवैध धन लाए-ले जाए जाने पर अंकुश लगाया जा सके। पिछले दिनों एक बस पकड़ी गई थी, जिसमें करोड़ों रुपए ले जाए जा रहे थे!
भ्रष्टाचार इस तरह देश में संसदीय जनतंत्र को भारी क्षति पहुंचा रहा है। इसमें अकेले द्रमुक ही नहीं है। उसकी सहयोगी कांग्रेस भी इसमें जुटी हुई है और देश की जनता उसे उच्च पदों पर फैले भ्रष्टाचार के मुख्य संरक्षक के रूप में देखती है। भ्रष्टाचार सिर्र्फ एक नैतिक मुद्दा नहीं है, यह खुल्लम-खुल्ला अपराध का मामला है। फिर यह भी जरूरी है कि ऐसी अवैध कमाई से जुटाए काले धन को, जिसे दूसरे देशों (करवंचक स्वर्गों) में छुपाकर रखा जा रहा है, देश में वापस लाया जाए और जनता के लिए बेहतर जिंदगी सुनिश्चित करने में उसे लगाया जाना चाहिए।
मैंने पहले भी रेखांकित किया है कि किस तरह अकेले 2 जी घोटाले में ही सरकारी खजाने की जो लूट हुई है, उतनी रकम से पूरे दो साल तक गरीबी की रेखा के नीचे और ऊपर के सभी भारतीय परिवारों को पर्याप्त खाद्य सुरक्षा मुहैया कराई जा सकती थी। इस रकम से संसद द्वारा पारित किए गए शिक्षा का अधिकार कानून को एक सचाई में तबदील किया जा सकता था। याद रहे कि इस कानून को लागू कराने के लिए अगले पांच साल तक 35,000 करोड़ रुपये सालाना खर्च करने होंगे, ताकि नए स्कूल खोले जा सकें, पर्याप्त संख्या में शिक्षक भरती किए जा सकें, स्कूली बच्चों के लिए दोपहर के भोजन की व्यवस्था की जा सके। जाहिर है, इस महा-भ्रष्टाचार ने लोगों को इन सबसे वंचित कर दिया है।
नव-उदारवादी आर्थिक सुधारों ने ‘दरबारी पूंजीवाद’ के फलने-फूलने के जरिये, भ्रष्टाचार के लिए अब तक अनजाने रास्ते खोले हैं। सचाई यह है कि देश में समूची जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बेहतर जिंदगी मुहैया कराने के लिए संसाधनों की कमी नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय संसाधनों की लूट लोगों को बेहतर जिंदगी के जरूरी संसाधनों से वंचित कर रही है।
आखिर व्यवस्था से इस बीमारी को कैसे मिटाया जा सकता है? वास्तव में राजनीतिक नेतृत्व को जनता के प्रति जवाबदेही से छूट नहीं मिल सकती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक हिस्से द्वारा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर छेड़े गए आंदोलन ने जनता के बीच व्यापक रूप से फैली भावनाओं को ही स्वर दिया है।
बहरहाल, लोकपाल के स्वरूप तथा उसकी अंतर्वस्तु पर चर्चा से इस तात्कालिक जरूरत की ओर से जरा भी ध्यान नहीं हटने दिया जाना चाहिए कि जो भी घोटाले सामने आए हैं, उनके लिए आपराधिक जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए और विदेशी बैंकों में जमा भारी रकम को वापस लाने के लिए फौरन कदम उठाए जाने चाहिए। खुशी की बात है कि चौतरफा दबाव के चलते संसद के आगामी सत्र में लोकपाल कानून बनाए जाने और विधेयक को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में राजनीतिक पार्टियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सबसे बढ़कर जनता के साथ इस व्यवस्था के स्वरूप पर विशद चर्चा की दिशा में कुछ प्रगति भी हुई है।

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