गुरुवार, 10 जनवरी 2019

लड़कियों को शिक्षा सहित सारे लोकतांत्रिक अधिकारों की जरूरत

विश्व स्तर पर लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने का प्रयास किया जाता है और करोड़ों लड़कियां समुचित योग्यता, प्रतिभा होते हुए भी शिक्षा के अभाव में पेशेवर नहीं बन पाती हैं. मलाला दिवस पर विश्व बैंक ने जारी रिपोर्ट में कहा है कि लड़कियों को शिक्षित न करने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 150 से 300 खरब डॉलर का नुकसान होता है. हालत यह है कि निम्न आय वर्ग वाले परिवारों से दो-तिहाई से भी कम लड़कियां प्राथमिक शिक्षा पूरी कर पाती हैं. वहीं तीन में से केवल एक लडक़ी माध्यमिक शिक्षा पूरी कर पाती हैं. यह सर्वविदित है कि शिक्षा से रोजगार मिलने की संभावना दोगुनी हो जाती है. विकसित देशों से लेकर गरीब और विकासशील देशों तक लड़कियों-महिलाओं की शिक्षा के बदतर हालात के लिए अनेक कारण हैं. पहला ठोस कारण, आर्थिक विपन्नता है, जो समान रूप से लडक़े-लड़कियों के शैक्षिक विकास में बाधा बनकर सामने आता है. दूसरा प्रमुख कारण, पितृ सत्तात्मक समाज हैं, जो लडक़ों को हर तरह की सुविधाएं देता हैं, लेकिन लड़कियों को दोयम दर्जे की नागरिक बनाए रखने की हिमायती है. लोकतांत्रिक समाज में भी सामंती बेडिय़ों ने दिमाग को जकड़ रखा है तथा कहीं-कहीं तो लड़कियों के जन्म लेने पर भी लोग परेशान हो जाते हैं. भेदभाव की स्थिति यह है कि लड़कियों को परिवार में पर्याप्त पोषक आहार से वंचित होना पड़ता है और कुपोषण की शिकार अधिकांश लड़कियां ही होती हैं. शिक्षा के क्षेत्र में डॉक्टर, इंजीनियर, वकील अथवा अन्य पेशेवर बनने के लिए लडक़ों पर खर्च करने के लिए परिवार तैयार रहता है, तो लड़कियों की शादी के लिए फिक्रमंद होकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता हैं. दुनिया की आधी आबादी यानी महिलाओं को उत्पादक इकाई के रूप में केन्द्र रखकर आंकलन करने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भयावह नुकसान दिखता है. यह समझ अभी विश्व के सभी देशों के नागरिकों और परिवारों में विकसित नहीं हुई है. मलाला युसुफजई ने कट्टरपंथियों द्वारा लड़कियों की पढ़ाई रोकने का प्रतिरोध किया था, उसे गोली मार दी गई थी. गहन चिकित्सा के उपरांत जान बचने पर उसने परिपक्वता के साथ लड़कियों की शिक्षा के लिए अपना अभियान शुरू किया. मलाला को सबसे कम उम्र में नोबल पुरस्कार मिलने के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ ने मलाला दिवस भी घोषित किया है. मलाला एक मिसाल है, विचार है. लेकिन इस विचार की व्यापकता के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है. लोकतांत्रिक समाज लिंग भेद का विरोधी होता है. यदि लड़कियों को शिक्षा से ही वंचित रखने की चेष्टा की जाती है तो कोई भी समाज अथवा देश वांछित उन्नति नहीं कर सकता. लड़कियों को भी इंसानी दर्जा और लोकतांत्रिक अधिकार चाहिए.

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