अश्वनी कुमार (पंजाब केसरी)\
राहुल गांधी की पद यात्रा अलीगढ़ में किसान महापंचायत के साथ ही समाप्त हो गई और कांग्रेसियों ने समझ लिया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की मुखॄयमन्त्री सुश्री मायावती के विरुद्ध बहुत बड़ी फतेह हासिल कर ली है। कांग्रेसियों की यह मृग मरीचिका है कि वे गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर उ8ार प्रदेश फतेह कर सकते हैं। इसकी मुखॄय वजह यह है कि आकाश में उड़ कर जमीन की लड़ाई जीतना चाहते हैं। किसानों की जमीन अधिग्रहण का मामला कोई नया नहीं है बल्कि जिस प्रकार आर्थिक उदारीकरण के नाम पर कांग्रेस व भाजपा के पिछले १४ साल के शासन में राज्यों के मुखॄयमन्त्रियों को प्रोपर्टी डीलर बनाया गया है यह उसी की पराकाष्ठा है। जरा पूछिये राहुल गांधी से कि कांग्रेस सरकार की कृषि नीति 1या है और वह किस प्रकार इस देश के किसानों को यूरोपीय किसानों के समकक्ष लाकर खड़ा करना चाहती है? मुझे यकीन है कि इसका जवाब राजनीति के प्रशिक्षु माननीय राहुल गांधी के पास नहीं होगा क्योकि अभी वह राजनीति का क, ख, ग सीख रहे हैं। उनकी लड़ाई केवल इस बात पर है कि किसानों को कम मुआवजा मिला और जमीन का अधिग्रहण करना किसी भी सरकार का हक है बशर्ते कि मुआवजा ज्यादा दिया जाये। सारी गड़बड़ इसी सोच में है और इसी की वजह से आज किसानों को मुआवजे का लालच देकर उनकी अगली पीढिय़ों को बर्बाद किया जा रहा है। बेशक सरकार को विकास कार्यों के लिए जमीन अधिग्रहण करने का अधिकार होना चाहिए मगर यह अधिग्रहण मुनाफे के तौर पर सरकारी खजाना भरने के लिए किसी भी कीमत पर जायज नहीं हो सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा में जमीन अधिग्रहण को रद्द करने के पीछे यही तर्क दिया है कि सरकार बिल्डरों को स6पन्न वर्ग के लोगों के लिए मकान बनाने के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहीत नहीं कर सकती। यही मूल सवाल है।
लोकतन्त्र में वह सरकार, सरकार नहीं बल्कि अराजक तत्वों का समूह होती है जो समाज के सबसे निचले वर्गों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने की नीतियां नहीं बनाती और उन्हें लागू नहीं करती। आज तक इस देश में जितना भी शहरी विकास उदारीकरण की नीति आने से पहले हुआ है सभी सरकारी योजनाओं के तहत हुआ है। पं. नेहरू ने नया चंडीगढ़ शहर किसी बिल्डर को जमीन देकर नहीं बसवाया था बल्कि सरकारी मशीनरी की मार्फत ही बसवाया था। हमने गांधी नगर और भुवनेश्वर भी इसी तरह बसाये हैं। दिल्ली में गरीब वर्ग के लोगों को आवास की सुविधाएं डीडीए ने सुलभ कराई हैं, बिल्डरों ने नहीं। नोएडा और गुडग़ांव का विकास भी सरकारी योजनाओं को लागू करने से ही हुआ है मगर उदारीकरण के बाद यह सोच लिया गया कि सरकार केवल एक बिचौलिया एजैंसी बन कर रहेगी और बिल्डर व जनता आपस में ही तय करेंगे कि जिसकी जेब में ज्यादा पैसा हो वही मकान पाने का हकदार बने। यह तर्क दिया जा सकता है कि बैंकिंग प्रणाली में सुधार से मध्यम वर्ग के लोगों को वि8ाीय सुविधा मिली है, मगर मैं बात समाज के उस वर्ग की कर रहा हूं जिसे बैंक ऋण देने के लिए तैयार नहीं होते। हमने गरीबों के आवास की कई योजनाएं चला रखी हैं। इन योजनाओं का लाभ आज भी गरीबों को जबर्दस्त भ्रष्टाचार होने के बावजूद पहुंच रहा है, मगर फिलहाल सवाल कांग्रेसियों की इस सोच का है कि वे किसानों के लिए अधिक मुआवजे की मांग कर रहे हैं, उनके समग्र विकास की नीति इनके पास नहीं है। यह समग्र विकास की नीति शिक्षा के क्षेत्र से शुरू होती है और जब तक पूरे भारत के स्कूलों में गांवों से लेकर शहरों तक के विद्यालयों का शिक्षा स्तर एक समान नहीं बनाया जाता तब तक किसान का बेटा भारी मुआवजा लेने के बावजूद चपरासी की नौकरी करने के लायक ही रह जायेगा। राहुल गांधी को यदि पद यात्रा करनी है तो वे किसी गांव के स्कूल से शुरू करें और देखें कि दिल्ली में जिस स्कूल में वह पढ़े हैं उसके स्तर और भट्टा पारसौल के स्कूल के स्तर में 1या अन्तर है। मुनाफे की राजनीति करने की परंपरा कांग्रेस में नहीं रही है क्योकि इसी पार्टी के नेतृत्व में देश ने महान विकास यात्रा पूरी की है। मैं कई बार लिख चुका हूं कि राहुल गांधी को पहले कांग्रेस का पूरा इतिहास पढ़ कर उस पर मनन करना चाहिए और फिर उस पर अमल करना चाहिए। इस देश की जनता उन्हें सिर आंखों पर बिठायेगी मगर यह नहीं हो सकता कि भट्टा पारसौल में अपराधियों के साये तले किसानों को मुजरिम बनाने वाले लोगों के आंदोलन को वे चन्द नौसिखिये कांग्रेसियों के भरोसे उठा लें और देश के किसान उन्हें अपना मसीहा मानने लगेंगे। उन्हें सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि किसान का बेटा इंजीनियर और डाटर कैसे बनेगा। वह चार्टर्ड अकाउंटेट और क6प्यूटर इंजीनियर कैसे बनेगा? क6प्यूटर युग के इस दौर में हम पूरी दुनिया की खबर को इंटरनेट के माध्यम से मुट्ठी में तो कर सकते हैं मगर राजनीति के इस निष्ठुर सच को नहीं बदल सकते कि लोकतन्त्र में मतदाता एक बार ही मूर्ख बनता है और कांग्रेस पार्टी १९८४ में इस देश को मूर्ख बना चुकी है। अब हमें क6प्यूटर युग की सच्चाई का सामना करना है और वह यह है कि जो योग्य होगा वही अपना सिक्का गाड़ेगा जैसे कि भारत के युवकों ने सा3टवेयर की दुनिया में पूरे संसार में अपना सिक्का गाड़ा हुआ है। इसलिए आज की पीढ़ी के मतदाता किसी प्रकार के छलावे में आयेंगे यह सोचना कांग्रेसियों की मृगतृष्णा है।
राहुल गांधी की पद यात्रा अलीगढ़ में किसान महापंचायत के साथ ही समाप्त हो गई और कांग्रेसियों ने समझ लिया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की मुखॄयमन्त्री सुश्री मायावती के विरुद्ध बहुत बड़ी फतेह हासिल कर ली है। कांग्रेसियों की यह मृग मरीचिका है कि वे गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर उ8ार प्रदेश फतेह कर सकते हैं। इसकी मुखॄय वजह यह है कि आकाश में उड़ कर जमीन की लड़ाई जीतना चाहते हैं। किसानों की जमीन अधिग्रहण का मामला कोई नया नहीं है बल्कि जिस प्रकार आर्थिक उदारीकरण के नाम पर कांग्रेस व भाजपा के पिछले १४ साल के शासन में राज्यों के मुखॄयमन्त्रियों को प्रोपर्टी डीलर बनाया गया है यह उसी की पराकाष्ठा है। जरा पूछिये राहुल गांधी से कि कांग्रेस सरकार की कृषि नीति 1या है और वह किस प्रकार इस देश के किसानों को यूरोपीय किसानों के समकक्ष लाकर खड़ा करना चाहती है? मुझे यकीन है कि इसका जवाब राजनीति के प्रशिक्षु माननीय राहुल गांधी के पास नहीं होगा क्योकि अभी वह राजनीति का क, ख, ग सीख रहे हैं। उनकी लड़ाई केवल इस बात पर है कि किसानों को कम मुआवजा मिला और जमीन का अधिग्रहण करना किसी भी सरकार का हक है बशर्ते कि मुआवजा ज्यादा दिया जाये। सारी गड़बड़ इसी सोच में है और इसी की वजह से आज किसानों को मुआवजे का लालच देकर उनकी अगली पीढिय़ों को बर्बाद किया जा रहा है। बेशक सरकार को विकास कार्यों के लिए जमीन अधिग्रहण करने का अधिकार होना चाहिए मगर यह अधिग्रहण मुनाफे के तौर पर सरकारी खजाना भरने के लिए किसी भी कीमत पर जायज नहीं हो सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रेटर नोएडा में जमीन अधिग्रहण को रद्द करने के पीछे यही तर्क दिया है कि सरकार बिल्डरों को स6पन्न वर्ग के लोगों के लिए मकान बनाने के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहीत नहीं कर सकती। यही मूल सवाल है।
लोकतन्त्र में वह सरकार, सरकार नहीं बल्कि अराजक तत्वों का समूह होती है जो समाज के सबसे निचले वर्गों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने की नीतियां नहीं बनाती और उन्हें लागू नहीं करती। आज तक इस देश में जितना भी शहरी विकास उदारीकरण की नीति आने से पहले हुआ है सभी सरकारी योजनाओं के तहत हुआ है। पं. नेहरू ने नया चंडीगढ़ शहर किसी बिल्डर को जमीन देकर नहीं बसवाया था बल्कि सरकारी मशीनरी की मार्फत ही बसवाया था। हमने गांधी नगर और भुवनेश्वर भी इसी तरह बसाये हैं। दिल्ली में गरीब वर्ग के लोगों को आवास की सुविधाएं डीडीए ने सुलभ कराई हैं, बिल्डरों ने नहीं। नोएडा और गुडग़ांव का विकास भी सरकारी योजनाओं को लागू करने से ही हुआ है मगर उदारीकरण के बाद यह सोच लिया गया कि सरकार केवल एक बिचौलिया एजैंसी बन कर रहेगी और बिल्डर व जनता आपस में ही तय करेंगे कि जिसकी जेब में ज्यादा पैसा हो वही मकान पाने का हकदार बने। यह तर्क दिया जा सकता है कि बैंकिंग प्रणाली में सुधार से मध्यम वर्ग के लोगों को वि8ाीय सुविधा मिली है, मगर मैं बात समाज के उस वर्ग की कर रहा हूं जिसे बैंक ऋण देने के लिए तैयार नहीं होते। हमने गरीबों के आवास की कई योजनाएं चला रखी हैं। इन योजनाओं का लाभ आज भी गरीबों को जबर्दस्त भ्रष्टाचार होने के बावजूद पहुंच रहा है, मगर फिलहाल सवाल कांग्रेसियों की इस सोच का है कि वे किसानों के लिए अधिक मुआवजे की मांग कर रहे हैं, उनके समग्र विकास की नीति इनके पास नहीं है। यह समग्र विकास की नीति शिक्षा के क्षेत्र से शुरू होती है और जब तक पूरे भारत के स्कूलों में गांवों से लेकर शहरों तक के विद्यालयों का शिक्षा स्तर एक समान नहीं बनाया जाता तब तक किसान का बेटा भारी मुआवजा लेने के बावजूद चपरासी की नौकरी करने के लायक ही रह जायेगा। राहुल गांधी को यदि पद यात्रा करनी है तो वे किसी गांव के स्कूल से शुरू करें और देखें कि दिल्ली में जिस स्कूल में वह पढ़े हैं उसके स्तर और भट्टा पारसौल के स्कूल के स्तर में 1या अन्तर है। मुनाफे की राजनीति करने की परंपरा कांग्रेस में नहीं रही है क्योकि इसी पार्टी के नेतृत्व में देश ने महान विकास यात्रा पूरी की है। मैं कई बार लिख चुका हूं कि राहुल गांधी को पहले कांग्रेस का पूरा इतिहास पढ़ कर उस पर मनन करना चाहिए और फिर उस पर अमल करना चाहिए। इस देश की जनता उन्हें सिर आंखों पर बिठायेगी मगर यह नहीं हो सकता कि भट्टा पारसौल में अपराधियों के साये तले किसानों को मुजरिम बनाने वाले लोगों के आंदोलन को वे चन्द नौसिखिये कांग्रेसियों के भरोसे उठा लें और देश के किसान उन्हें अपना मसीहा मानने लगेंगे। उन्हें सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि किसान का बेटा इंजीनियर और डाटर कैसे बनेगा। वह चार्टर्ड अकाउंटेट और क6प्यूटर इंजीनियर कैसे बनेगा? क6प्यूटर युग के इस दौर में हम पूरी दुनिया की खबर को इंटरनेट के माध्यम से मुट्ठी में तो कर सकते हैं मगर राजनीति के इस निष्ठुर सच को नहीं बदल सकते कि लोकतन्त्र में मतदाता एक बार ही मूर्ख बनता है और कांग्रेस पार्टी १९८४ में इस देश को मूर्ख बना चुकी है। अब हमें क6प्यूटर युग की सच्चाई का सामना करना है और वह यह है कि जो योग्य होगा वही अपना सिक्का गाड़ेगा जैसे कि भारत के युवकों ने सा3टवेयर की दुनिया में पूरे संसार में अपना सिक्का गाड़ा हुआ है। इसलिए आज की पीढ़ी के मतदाता किसी प्रकार के छलावे में आयेंगे यह सोचना कांग्रेसियों की मृगतृष्णा है।