विनीत नारायण
मीडिया और मध्यवर्गीय समाज के लोग प्रायः जिन्हें धर्मयोद्धा बनाकर पेश करते हैं, वे असल में कागज के शेर होते हैं। जाहिर है, असली शेरों को लाकर वे अपने अस्तित्व के लिए खतरा पैदा नहीं करना चाहते। इसीलिए उनके हर प्रयास चर्चा में तो खूब रहते हैं, पर परिणाम तक नहीं ले जा पाते। परिणाम तक ले जाने का न तो उनका इरादा होता है और न ही जीवट। इसलिए वे लोग लड़ाई में कूदते नहीं, उसकी चर्चा भर करते हैं। शायद बाबा रामदेव इस तथ्य से परिचित नहीं। इसलिए प्रायः उनके मंचों पर वही चर्चित चेहरे दिखाई पड़ते हैं, जो टीवी चैनलों की बहसों में दिखते हैं। इन चेहरों का पेशा ही चर्चा में बने रहना है। किसी मुद्दे के प्रति समर्पण नहीं, पर हर मुद्दे पर राय देने को तैयार। बाबा रामदेव अगर धर्मसत्ता के ही दायरे में सीमित रहें और राजसत्ता, परिवार सत्ता और समाज सत्ता को मजबूत करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं, तो इस युग के इतिहास पुरुष बन सकते हैं।
मीडिया और मध्यवर्गीय समाज के लोग प्रायः जिन्हें धर्मयोद्धा बनाकर पेश करते हैं, वे असल में कागज के शेर होते हैं। जाहिर है, असली शेरों को लाकर वे अपने अस्तित्व के लिए खतरा पैदा नहीं करना चाहते। इसीलिए उनके हर प्रयास चर्चा में तो खूब रहते हैं, पर परिणाम तक नहीं ले जा पाते। परिणाम तक ले जाने का न तो उनका इरादा होता है और न ही जीवट। इसलिए वे लोग लड़ाई में कूदते नहीं, उसकी चर्चा भर करते हैं। शायद बाबा रामदेव इस तथ्य से परिचित नहीं। इसलिए प्रायः उनके मंचों पर वही चर्चित चेहरे दिखाई पड़ते हैं, जो टीवी चैनलों की बहसों में दिखते हैं। इन चेहरों का पेशा ही चर्चा में बने रहना है। किसी मुद्दे के प्रति समर्पण नहीं, पर हर मुद्दे पर राय देने को तैयार। बाबा रामदेव अगर धर्मसत्ता के ही दायरे में सीमित रहें और राजसत्ता, परिवार सत्ता और समाज सत्ता को मजबूत करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाएं, तो इस युग के इतिहास पुरुष बन सकते हैं।
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