हिंदू पक्ष हमेशा से कहता रहा है कि बाबरी मसजिद राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। कोर्ट ने कहा, भारतीय पुरातत्व सर्वे यानी एएसआई की रिपोर्ट से ऐसा कुछ नहीं साबित होता कि यह मसजिद राम मंदिर या कोई भी मंदिर तोड़कर बनाई गई थी।
कोर्ट ने माना कि मसजिद किसी ख़ाली ज़मीन पर नहीं बनाई गई थी। वहाँ किसी टूटे-फूटे मंदिर के अवशेष थे लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे इस ज़मीन पर हिंदू पक्ष का क़ब्ज़ा साबित नहीं होता। यानी कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी कि इस ज़मीन पर पहले कोई मंदिर होने के कारण इस भूमि पर हिंदुओं का अधिकार है।
कोर्ट ने यह भी माना कि 1855 से लेकर 16 दिसंबर 1949 तक वहाँ लगातार मुसलमान नमाज़ पढ़ते थे और मसजिद के अंदर यानी उस जगह पर जहाँ रामलला की प्रतिमा रखी गई है, वहाँ मुसलमानों का नियमित प्रवेश था। दूसरे शब्दों में यह परित्यक्त मसजिद नहीं थी और मुसलमानों का उसपर क़ब्ज़ा रहा है।
कोर्ट ने यह भी माना कि 23 दिसंबर 1949 की रात को मसजिद के अंदर मूर्तियाँ रखने की कार्रवाई ग़लत क़दम थी।
कोर्ट ने 6 दिसंबर 1992 को मसजिद के विध्वंस को भी ग़लत बताया।
कोर्ट ने हिंदू पक्ष की केवल यह दलील मानी कि मसजिद के बाहरी अहाते पर जहाँ राम चबूतरा, सीता रसोई आदि है, वहाँ लगातार हिंदुओं का क़ब्ज़ा रहा। लेकिन यह ऐसी दलील थी जिससे मुसलिम पक्ष ने कभी इनकार नहीं किया।
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